क्या प्रकृति हमें सबक सिखा रही है?
मैंने हाल ही में पढा है कि इटली में डॉल्फिंस समुंद्रतट के करीब आ रही हैं। पोलैंड में हिरण सड़कों पर टहल रहे हैं चीन और कई दूसरे देशों में प्रदूषण का स्तर कम हो गया है।क्या यह हमें सबक सीखने का प्रकृति का तरीका है?
क्या यह हमें सबक सीखने का प्रकृति का तरीका है? हमें human being कहा जाता है इस ग्रह के किसी भी दूसरे प्राणी को being नहीं कहा जाता। हम human beings है। यानी कि मूलभूत क्वालिफिकेशन यह है कि हम जानते हैं कि how to be. अफसोस की मानवता इसे गलत साबित करने की पूरी कोशिश कर रही है।

जनसंख्या बढ़ना प्रकर्ति के दोहन का सबसे बड़ा कारण
मैं इस बात को कई कई तरीकों से कहता रहा हूं। अगर हम जागरुकता के साथ चीजों को सही तरीके से करना नहीं सीखते। तो प्रकृति हमें बहुत ही क्रूर तरीके से सबक सिखाएगी। इन सबसे महत्वपूर्ण चीज है जनसंख्या। अभी कोरोना के सारे चक्कर में कौन सी चीज हमें सबसे ज्यादा परेशान कर रही हैं। लोगों की आबादी इतनी ज्यादा धनी है कि यह हर जगह कूद फांद कर रहा है। लेकिन कोई बात नहीं करना चाहता।
आमतौर पर दुनिया के नेताओं ने जनसंख्या के बारे में कोई बात नहीं की
आमतौर पर दुनिया के नेताओं ने इस बारे में कोई बात नही की है क्योंकि कोई भी उन धार्मिक समुदायों के खिलाफ नही जाना चाहता जो इसके खिलाफ हैं। उनके जो भी कारण हो यह बहुत लंबे से समय से चलता रहा है तो एक मूलभूत चीज है जनसंख्या। अगर आप मुझसे पूछे तो बस यही एक समस्या है कि हम अच्छे हैं लेकिन हम बहुत सारे हैं।
हमने मृत्यु को अपने हाथ में ले लिया है विज्ञान की मदद से
अब हमने मौत को अपने हाथों में ले लिया है। मेडिकल साइंस vaccination आदि की मदद से जब मौत को अपने हाथों में ले लेते हैं। तो जन्म को भी अपने हाथों में लेना बस साधारण सी समझदारी है। हमें लगता है जन्म भगवान का काम है। मौत के लिए हम पक्का करना चाहते हैं कि हम जिम्मेदार हैं हम इस से निपटेगे। जन्म के साथ भी इसी तरह निपटना चाहिए। अगर मौत को पीछे धकेला जाता है तो जन्म को भी पीछे धकेलना चाहिए।
इंसान ने दूसरे जीवों की जगह छीन ली है
इंसान की मौजूदगी इतनी ज्यादा बड़ी हो गई है। इतनी ज्यादा कि दूसरे प्राणियों के जीने के लिए जगह ही नहीं बची है। अब शायद यह बात वैज्ञानिक रूप से सच ना हो। शायद ये नहीं है। लेकिन मान लीजिए कि आप एक वायरस होते, मान लीजिए एक वायरस है और आप दूसरे जानवरों के शरीर में रहते हैं और जानवरों की तादाद कम से कम होती जा रही है। दूसरे जीवों की जनसंख्या बहुत तेजी से कम हुई है तो क्या आप रहने के लिए क्या दूसरी जगह नहीं ढूंढ लेंगे। शायद वायरस ने यही किया है क्योंकि पर्याप्त जानवर मौजूद नहीं है।
जानवरों के मरने से नकारात्मक ऊर्जा आती है
एक बात तो यह है जंगल में रहने वाले जानवरों की तादाद एक बहुत ही दुखद तरीके से कम हुई है। दूसरी बात यह है कि हर दिन जानवरों को मारा जाता है। साल भर में हम खाने के लिए 70 अरब जानवरों की हत्या करते हैं। 7 अरब लोग दुनिया भर में 70 अरब जानवरों की हत्या कर रहे हैं। मुझे यकीन है हम उतना खा नहीं रहे। लेकिन इतनी ही बेहूदगी के साथ जी रहे हैं।
हमने दूसरों जीवो का घर छीनकर अपना बना लिया है
अगर जानवरों के शरीर कम हो रहे है। तो वायरस इंसान के शरीर में जीने के लिए खुद में बदलाव ला रहा है। मैं विज्ञान की बात नहीं कह रहा। यह बस सरल सा लॉजिक है। अगर आप एक वायरस होते तो क्या आप ऐसा नहीं करते। निश्चित रूप से आप ऐसा करते क्योंकि आपके रहने का ठिकाना गायब हो रहे है। तो आप नये ठिकाने खोजना चाहेंगे। जिंदा रहने के लिए नयी जगह। तो एक तरह से वायरस यही कर रहा है लेकिन अभी इन चीजों की बातें करने का समय नहीं है।
हमे जागरूकता लानी है ताकि हम इस बीमारी पर विजय प्राप्त कर सकें
अभी यह कहने का समय नहीं है कि तुमने यह किया इसलिए तुम्हारे साथ यह हो रहा है। तुम इसी के लायक हो। नहीं, अभी इन बातों का समय नहीं है। अभी समझदारी भरे काम का समय है। अगर लोगों को इंफेक्शन लग गया है अगर वह पीड़ा में है तो उन्हें आपकी करुणा और आपके ध्यान की जरूरत है। इन चीजों की बात करने का समय नही है। लेकिन लंबे समय में हमें इन चीजों के बारे में सोचना चाहिए कि अगर हम इस ग्रह पर हर दूसरे प्राणी के जिंदा रहने की जगह नहीं बनाते तो फिर आप देखेंगे कि हम भी जिंदा नहीं रह पाएंगे। क्योंकि हमारा जीवन बाकी के सारे प्राणियों से अलग नहीं है।
हम माइक्रोऑर्गन्सम के बिना नही जी सकते
माइक्रोऑर्गन्सम भी हमारे जीवन का एक हिस्सा है। आप अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के बिना भी जी सकते हैं। लेकिन आप माइक्रो ऑर्गन्सम के बिना नहीं जी सकते। वह कई सारी चीजें कर रहे हैं शायद ऐसा हो जाए कि समय के साथ-साथ यह वाला वायरस भी हमारा मददगार बन जाए। क्योंकि यह जीवाणु और विषाणु ऐसे ही काम करते हैं। वह जीवन के फलने फूलने के लिए एक जगह ढूंढ रहे हैं। इसलिए उनके गतिविधि एक खास तरीके से चल रही है।
क्या यह एक सबक है?
देखिए हर परिस्थिति में सीखने के लिए कुछ होता है अगर हम सीखने के लिए तैयार हो। अगर आप सीखने के लिए तैयार हो तो जरूरी नहीं कि आपदाएं आए। हर दिन हर पल एक सबक मौजूद है। सीखने के लिए हमेशा कुछ न कुछ है। अब लेकिन अफसोस हम सीखते नहीं हैं। हम आपदाओं के होने का इंतजार करते हैं और फिर हम इसके बारे में philosophy बनाना चाहते हैं। कृपया philosophy ना बनाएं।
हमें इस बीमारी को बचाने के लिए हर जरूरत कदम उठाना है
कृपया यह कहते हुए कि हमें यह मिला है। हम वास्तव में इसी के लायक हैं। जिन लोगों ने यह किया है वह इसी के लायक हैं। इस बकवास को छोड़ दीजिए। यह हमें कहीं नहीं पहुंचाने वाली। अभी महत्वपूर्ण बात यह है कि कैसे वायरस आगे ना बढ़े। महत्वपूर्ण बात यह है कि आप इस के वाहक ना बने। आप इफेक्टेड ना हो जाए। यह पक्का करें कि कोई दूसरा भी इफेक्टेड ना हो। अभी आसान सी चीज है दूरी बना कर रखना। हर चीज से दूरी यह अकेले होने का समय है। भीतर की ओर मोड़ने का समय है। मैं लंबे समय से आपको आध्यात्मिक दिशा में ले जाने की कोशिश करता रहा हूं। ऐसे लगता है की आपके लिए एक वायरस की जरूरत थी।
क्या प्रकृति हमें सबक सिखा रही है?
Reviewed by Tarun Baveja
on
August 05, 2021
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