कब्ज शब्द का अर्थ है, कब्ज अर्थात जो शरीर पर कब्जा कर ले। जिस प्रकार से एक चोर तुम्हारे घर पर घुस आए और आप सभी को डरा धमका कर तुम्हारे सामने तुम्हारा सामान चुरा ले जाए। उसी प्रकार से जीभ रूपी चोर के वशीभूत होकर हम कब्ज को निमन्त्रण देते हैं। कब्ज रहने के मुख्य कारण गलत वस्तुओं का मिश्रण, गलत ढंग से खाद्य पदार्थों को बनाना, गलत ढंग से खाना एवं श्रम का अभाव होना है।
शरीर में जितने प्रकार के रोगों की उत्पत्ति होती है, उसका मुख्य कारण कब्ज है। जब शरीर में किसी प्रकार का रोग होता है, तब समझते हैं, कि मुझे रोग हुआ है और उसकी चिकित्सा करते रहते हैं। जैसे- किसी वृक्ष की डाली काटते रहें और जड़ में पानी खाद देते रहे, तो वृक्ष हरा बना रहता है। यदि जड़ को काट दिया जाए, तो सारा पेड़ ही सूख जाता है। इसी प्रकार यदि कब्ज को दूर कर दिया जाए, तो सारे रोग अपने आप चले जाते हैं।
"गलत भोजन"
गलत भोजन, अधिक भोजन और श्रम के अभाव में कब्ज होता है। भारतवर्ष में रोटी, चावल, दाल का मुख्य भोजन है। मशीन का पीसा महीन आटा, मशीन का छटा कन रहित चावल, बिना छिलके की दाल, उसमें भी आटे से चोकर अलग कर देना, चावल से माँड़ निकाल देना, दाल को खूब मल-मलकर घोना, सब्जी का छिलका निकाल देना, भुजिया बनाने के लिए पत्ती वाले साग को उबाल कर पानी फेंक देना और खूब घी, मिर्च मसाले से
भूनकर खाना, इसी गलत भोजन से आंतों में मल रुकता है। रुका हुआ मल रक्त दूषित कर देता है। जिससे अनेक रोगों की उत्पत्ति होती है।
भोजन के पदार्थो में मिर्च, मसाला, चीनी, मिठाई होने के कारण पेट भर कर खाने की आदत बन जाती है। यही सब आदतें कब्ज का मुख्य कारण हैं। इसके कारण आँतों की दुर्दशा होती है।
चोकर, चावल के कन मांड़ में सब्जी के छिलकों में, तथा हरी पत्ती वाले साग में मल के त्याग करने की अपूर्व शक्ति पाई जाती है। इनमें पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के लिये अत्यन्त उपयोगी होते हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिये आटे से चोकर न निकालें, चावल से कन और माँड़ न निकालें, सब्जी का छिलका और पानी न फेंके, अधिक मिर्च, मसाला, घी, तेल डाल कर न खाइये, इन थोड़े से नियमों से आप को सभी रोगों में लाभ होगा।
"कब्ज की पहचान"
(१) भूख न लगना।
(२) शरीर में सुस्ती रहना।
(३) शौच की हाजत बनी रहना, शौच जाने पर थोड़ा सा मल निकलना।
(४) शौच में अधिक देर लगना ।
(५) पेट में भारीपन ।
(६) सिर में दर्द होना।
(७) वायु का बढ़ना।
(८) कभी-कभी घबड़ाहट होना।
(९) अन्य रोगों की उत्पत्ति ।
"कब्ज के न होने की पहचान"
समय पर अच्छी भूख लगना जिसमें भूख की व्याकुलता न हो। दो बार शौच हो जाना, शौच जाने के ५ मिनट पहले हाजत हो और उस हाजत को हम रोक न सकें। शौचालय में बैठते ही पूरा मल गोल रस्सी की भांति निकल जावे, मल न कड़ा हो न पतला हो। शौच में अधिक जोर न लगाना पड़े। पूर्ण शुद्ध शौच की पहचान तो यह है,, कि गुदा द्वार में मल चिपका न रहे यानी उसे साफ करने की आवश्यकता न हो।
कब्ज की प्रारम्भिक अवस्था
आंतें फूलकर बड़ी हो जाती हैं अथवा अधिक देर तक मल आंतों में पड़ा रहता है, तो सूख जाता है, जिसके कारण शौच के समय पूरी सफाई नहीं हो पाती है। यहीं से कब्ज का प्रारम्भ होता है। जब कभी आंतों में मल रुकेगा, प्रकृति इसकी सूचना सिर दर्द के रूप में देती है। दूसरी सूचना भूख बन्द कर देती है, परन्तु मनुष्य दोनों की उपेक्षा करता है। जिससे कब्ज बढ़ता जाता है और कब्ज के साथ-साथ रोग भी बढ़ते जाते हैं।
जब कभी सिर में भारीपन हो, तो यह समझना चाहिए कि आंतों में मल रुका हुआ है। आंतों में रुके हुए मल की सफाई करने का प्रयास करना चाहिए। इसकी विधि आगे बताई जाएगी। कहावत है, कि "आंत भारी तो माथ भारी।"
"मल विसर्जन"
शौच में बैठने की भारतीय पद्धति ही सर्वोत्तम है, इससे मल त्याग करने में विशेष सुविधा होती है। कब्ज नहीं होने पाता आधुनिक कुर्सी या कमोड का तरीका उत्तम नहीं है।
जो भोजन हम करते हैं, उसका मल १८ से २४ घंटे तक बाहर निकल जाना चाहिए। इससे अधिक मल के रुकने से कब्ज हो जाता है। इसकी परीक्षा इस प्रकार की जा सकती है। एक दिन दोपहर के भोजन में हरी पत्ती वाले साग खाइये और दूसरे दिन यदि १८ से २४ घन्टे के अन्दर मल का रंग हरा रहे, तो समझना चाहिए कि कब्ज नहीं है। इससे अधिक देर से आने पर कब्ज है। ऐसा समझना चाहिए। मल में किसी प्रकार की दुर्गन्ध नहीं होना चाहिए।
"कब्ज में जुलाब"
कब्ज के लिए किसी प्रकार का जुलाब लेना हितकर नहीं है, क्योंकि; जुलाब की दवा मुह से खाई जाती है और मल बड़ी आंतों में रुकता है। जुलाब लेने पर लाभ के स्थान पर हानि ही होती है। मल को साफ करने के लिये एनिमा से बढ़ कर अन्य कोई दूसरा उपाय नहीं है।
"कब्ज में एनिमा"
कब्ज में एनिमा लाभकारी है। परन्तु एनिमा का प्रयोग थोड़े ही दिन करना चाहिए। अधिक दिन एनिमा का प्रयोग करना हानिकर भी हो जाता है। उपवास या रसाहार के अवसर पर एनिमा का प्रयोग करना हितकर है। भोजन करते हुए, जो शौच होने के लिये एनिमा लेते हैं, उन्हें एनिमा की आदत पड़ जाती है। उनकी आंतें कमजोर पड़ जाती हैं। एक दो दिन एनिमा का प्रयोग करना लाभप्रद ही होता है ।

No comments: