केले के पत्ते या अन्य पत्तों पर खाना खाने के वैज्ञानिक कारण

 

केले के पत्ते या अन्य पत्तों पर खाना खाने के वैज्ञानिक कारण

नमस्कार दोस्तों 
जहर सस्ता आता है तो जरूरी नहीं उसी पिया जाए। आज भारत की हर उस वैज्ञानिक साइंटिफिक चीज को प्राचीन और बैकवर्ड बोलकर उसे हमारे समाज वाले दिनचर्या और घरों से निकाल दिया गया है। जो साइंटिफिक थी जो हमारी संस्कृति की धरोहर थी और हमारे स्वास्थ्य के लिए अति महत्वपूर्ण और लाभदायक थी।
केले के पत्ते या अन्य पत्तों पर खाना खाने के वैज्ञानिक कारण

 

विषय पर आते हैं। आज आप कहीं भी चले जाएं। किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में, धार्मिक कार्यक्रम में या पारिवारिक कार्यक्रम विवाह या किसी भी अन्य कार्यक्रम आदि में जब हम जाते हैं। तो देखते हैं जो खाना फूड सर्व होता है। वह प्लास्टिक के बर्तनों में होता है। इसने कुछ समय पहले ही हमारे भारत में एंट्री की है।

प्लास्टिक के बर्तन पर्यावरण की दुश्मन

प्लास्टिक मार्केट में आई है और हमने अपने जीवन में इनको अपना लिया। इससे पहले पत्रावली पत्तल का इस्तेमाल होता था। जो पेड़ों के पत्तों से बनती थी। स्वास्थ्य के लिए लाभदायक थी और पर्यावरण के लिए अच्छी थी।  जिस पर आज पूरा विश्व चलने की कोशिश कर रहा है। वो हमारी प्राचीन संस्कृति थी। नो डिफेक्ट, नो इफेक्ट पर हम विश्वास रखते थे। बरगद और अन्य पेड़ों के पत्ते से, केले के पेड़ के पत्तों से यह हमारी पत्रावली पत्तल बनते थे। जिनमें खाना सर्व होता है। 

दक्षिण भारत में आज भी अपनी प्राचीन संस्कृति को पकड़ रखा है 

दक्षिण भारत में आज भी काफी मंदिरों में भगवान को प्रसाद चढ़ाया जाता है। तो किस भी प्लास्टिक ढोने या प्लेट का इस्तेमाल नही होता। वहाँ पत्तल में पत्रावली में ही भगवान को भोग लगाया जाता है।

खाने के लिए केले के पत्ते या अन्य पत्तों के प्रयोग का वैज्ञानिक कारण

जो समाज का हिस्सा हमारे वेद शास्त्रों को नहीं मानता। तो उसके लिए हम वैज्ञानिक तथ्य लेकर आते है। इंडियन जर्नल ऑफ ऑक्यूपेशन एनवायरमेंटल मेडिसिन ने यह कहा है कि प्लास्टिक की कोई भी वस्तु कोई भी स्टोरी आइटम, पैक्ड आइटम, किसी भी, कोई भी वस्तु उसको बनाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग में लीचिंग ऑफ डिफरेंट केमिकल्स प्रयोग होते हैं। वो केमिकल हमारे शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं और इन से कैंसर जैसी बीमारी होती है। बर्थ डिफेक्ट होते हैं। एंडोक्राइन डिस्फंक्शन होते हैं। यह सभी बीमारियों को न्योता देते हैं जब किसी भी प्लास्टिक का हम इस्तेमाल करते हैं खाने में या अन्य चीजों में।

प्लास्टिक के बर्तनों का दुष्प्रभाव

डॉक्टर फ्यूजी मोटो इन्होंने रिसर्च करके बताया। जब हम प्लास्टिक में किसी भी खाने को रखकर उसे ठंडा या गर्म करते हैं। तो उस प्लास्टिक में डायोक्सिंस रिलीज होते हैं। यह डायोक्सिंस हमारे शरीर में इन बीमारियों को न्योता देते हैं। जो मैंने आपको पहले बताया जैसे कैंसर।  

प्लास्टिक का विकल्प हमारे पास है 

विकल्प हमारे पास है ही जैसे मैंने बताया आज पूरा विश्व हमारा बायोडिग्रेडेबल के ऊपर रिसर्च करके उसे अपनाने की कोशिश कर रहा है। भारत में हमें यह कदम उठाना होगा। आज जर्मनी में एक कंपनी रएफले पब्लिक वह पेड़ों के पत्तों से बने प्लास्टिक के प्लेट्स और अन्य यूटेन्स बनाकर प्रमोट कर रही है। अपने देश में और काफी अच्छा मुनाफा कमा रही है। 

रोजगार के पॉइंट से भी पत्तों के बर्तन फायदेमंद है 

अगर हम रोजगार के पॉइंट से देखें तो लोगों को मिल रहा है। पर्यावरण के लिए वह अच्छा है। 28 दिन में डिग्री लेवल होकर पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए पृथ्वी से नष्ट हो जाती है। वही प्लास्टिक हजारों साल तक रहता है। मैं नहीं कह रहा विज्ञानिक कह रहे हैं। 

पर्यावरण और जीवो पर प्लास्टिक का दुष्प्रभाव 

एक और इनका हानिकारक प्रभाव पर्यावरण के साथ-साथ जब आप प्लास्टिक की थैली इधर-उधर फेंक देते हैं तो उनको पशु खा लेते हैं और वह तड़प तड़प कर मरते हैं। आप पाप के भी भोगी इसमे होते हैं। उस से भी बचने के लिए आप इनका प्रयोग आज से ही बंद करें।

जागरूकता लाएं और कार्यक्रमों में प्लास्टिक उपयोग बिलकुल बंद कर 

अगर आप किसी भी ऐसे कार्यक्रम में जाते हैं या किसी भी ऐसे कार्यक्रम को होस्ट करते हैं। जहां इनका इस्तेमाल होता है। तो प्लास्टिक का इस्तेमाल इन प्लास्टिक की प्लेटों का इस्तेमाल बंद करे। पत्रावली पत्रों या ऐसे अन्य विकल्प तलाशें जो हमारी संस्कृति का भी हिस्सा है जो सेहत के लिए भी अच्छा है। आप अपने स्तर पर प्रयास करें। आज ही प्लास्टिक का प्रयोग बंद करें। सेहत के लिए भी अच्छा होगा और देश के लिए भी आपका कदम महत्वपूर्ण होगा।

केले के पत्ते या अन्य पत्तों पर खाना खाने के वैज्ञानिक कारण केले के पत्ते या अन्य पत्तों पर खाना खाने के वैज्ञानिक कारण Reviewed by Tarun Baveja on August 05, 2021 Rating: 5

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