गिलोय का काढ़ा बनाने की आयुर्वेदिक विधि
परिचय
नमस्कार दोस्तों, हम में से हर कोई चाहता है कि वह स्वस्थ रहें बीमारी ना हो हमारी इम्यूनिटी अच्छी रहें हम दीर्घायु रहें। तो इन सब में मदद करने वाली एक वनस्पति है जो हमारे लिए वरदान है। इसका नाम है गिलोय। गिलोय के उपयोग हम कैसे करें? इसका काढ़ा कैसे बनाएं? इसका सेवन की विधि क्या है? इन सब के बारे में जानेंगे इस टॉपिक में।
मेरे पास गिलोय की बेल है। यह आपको भारत में कहीं भी मिल सकती है। जहां पर आप रहते हैं आपके घर के आसपास भी आपको आसानी से मिल जाएगी।
गिलोय की पहचान
इसका जो संस्कृति नाम है अमृता, गुरुचि बेल, अमृतलता अमृतवल्ली रसायनी, ज्वरनाशी। हर नाम के पीछे इसका एक मतलब है जैसे अमृता अमृत के समान। देखने में यह सूखी हुई आपको लगेगी। अगर आप इसके टुकडे के ऊपर का पतला सा यह छिलका निकाल लेंगे तो अंदर से हरे रंग की निकलेगी। ऊपर की छाल आसानी से निकल जाती है। पतली सी छाल रहती है। यह अंदर हरे रंग की रहेगी। इसे अमृतलता अमृतवल्ली यानी के बेल भी कहते हैं और अमृता यानी यह संजीवनी देने वाली है।
ज्वरनाशनी रसायन के रूप में
इसके दूसरे जो नाम हैं चकरलक्षणा इसका भी मीनिंग है अगर हम इसका टुकड़ा लेंकर देखे तो इसमें चक्कर आकार शेप है इसके अंदर। इसका जो जो मतलब है उसकी हिसाब से इसके नाम हैं। इसका नाम ज्वरनाशनी यानी ज्वर, बुखार हर ज्वर को कम करने वाली बुखार की बूटी भी बोल सकते है। हर प्रकार के बुखार में यह आपके उपयोग में आएगी। इसका इसी वजह से जो नाम है ज्वरनाशनी। रसायन चिकित्सा आयुर्वेद ने वर्णन की हुई है। दीर्घायु प्राप्त करने के लिए हमेशा युवा रहने के लिए स्वस्थ रहने के लिए रसायन औषधि का प्रयोग होता है। यह गुरछि जो है यह रसायन औषधि में सबसे श्रेष्ठ है।
गिलोय तिक्त रसात्मक है
इसमें देखे इसमे छोटे-छोटे फल लगते हैं। पहले ये हरे रंग के रहते हैं। इसके बाद इसका लाल रंग हो जाता है। बहुत छोटे फल लगते हैं। इसके जो पत्ते दिल की शेप या पान के पत्ते की तरह होते हैं। तो इस तरह से जो भी नाम है उस हर एक के पीछे एक अलग सा मतलब है। गिलोय तिक्त रसात्मक है। यानी कड़वा रस इसके साथ-साथ इसका रस हल्का सा तीखा और कसैला भी रहता है।
गिलोय त्रिदोष नाशक है
यह उष्ण प्रकर्ति की है। यानी थोड़ा गर्म स्वभाव की है।गर्म प्रकृति की है। इसके जो गुण है उसमे ये स्निग्ध है।यह त्रिदोष अगन है। यह वात पित्त कफ इन तीनों दोषों के ऊपर इसका काम रहेगा। यानी आपको बीमारी हुई वात पित्त कफ इन तीनों दोषों की वजह से तो हर एक अवस्था में आप इसका सेवन कर सकते हैं। इसके साथ-साथ आपको कोई भी बीमारी नहीं है। आप स्वस्थ हैं तो भी आप इसका सेवन सकते हैं।
गिलोय का काढ़ा बनाने की विधि
तो आज हम देखते हैं इसका काढ़ा कैसे बनाना है। यह जो गिलोय है इसकी 9 से 10 इंच लंबी डंडी लेंगे। उसकी पतली छाल उतारेंगे। इसके बाद छोटे-छोटे टुकड़े बनाएंगे। फिर इसे धो लेंगे और खरल में डालकर बारीक कर ले।
काढ़ा में पानी की मात्रा
आपको रात में पानी में भिगोना है इसे। आपने 4 कप पानी में रात भर भिगोकर रखा फिर से उबालने के लिए रखें। आयुर्वेद में जो काढ़ा बनाने के लिए कहा है एक चतुर्थअंश या अष्टम अंश यानी अगर यह 4 कप पानी है तो उबल कर एक कप रह जाए। अगर एक अष्टमअंश यानी 4 कप पानी है तो आधा कप बचाना चाहिए।
गिलोय का सत्व बनाने की विधि
जब तक यह काढ़ा बन रहा है। तब तक गिलोय का सत्व कैसे बनाना है यह भी हम जान लेते हैं। जैसे हमने अभी छोटे गिलोय के छोटे टुकड़े किए हैं। ऐसे ही कूट लिया खरल में। ऐसे ही आपको कूटना है। उसमें अगर 1 किलो गिलोय हैं तो 4 लीटर पानी लगेगा। जो पूरा पेस्ट बनाया है उसका। उसको पानी में अच्छी तरह से मिला देना है।
उसको थोड़ी देर रखकर अच्छी तरह निचोड़ कर फिर उसे छानना है जो भी पानी बचेगा। उसको आपको प्लेट में रख कर थोड़ा धूप में उसको सूखना है। पांच या छ घंटे उसे धूप में रख सकते है।
वो जो प्लेट है उसको आप ढक कर भी रखिए उसके बाद उसका ऊपर का जो पानी है उसे हम निकाल लेंगे। उसके नीचे आपको दिखेगा पूरा सफेद पाउडर जैसा नीचे जम जाता है। इसको भी फिर से सुखना पड़ता है। जो बाद में बचेगा वह रहेगा गिलोय का सत्व। इसको भी फिर अच्छी तरह से खरल करके इसका एकदम बारीक चूर्ण जो है हमने भर कर रखना है। जो गिलोय का जो सत्व है सफेद रंग का होता है यह भी बहुत गुणकारी रहता है।
किन रोगों में गिलोय फायदेमंद है
अब देखते हैं गिलोय का उपयोग किन किन विकारों में कर सकते हैं। सबसे पहले हमने जैसे आपको बताया है कि हर प्रकार के बुखार में यह उपयुक्त है। कोई भी बुखार हो चाहे मलेरिया हो, डेंगू हो, स्वाइन फ्लू, चिकनगुनिया या फिर जीर्ण ज्वर बुखार है।
बुखार को दूर करने में फायदेमंद
बुखार कम ज्यादा हो रहा है। उसका निदान भी नहीं हो रहा है। ऐसी हर एक अवस्था में गिलोय का सेवन कर सकते हैं। इसमें आप गिलोय का काढ़ा या गिलोय का सत्व है। उसका सेवन कर सकते हैं। इसके साथ-साथ यह रक्तवर्धक है यह खून को बढ़ाने वाला है। अगर डेंगू में प्लेट्स कम होती हैं तो इसमें गिलोय का सत्व या गिलोय का काढ़ा आप ले सकते हैं। पपीते का रस या गिलोय की डंडी का रस इन दोनों को मिलाकर आप इनका सेवन भी कर सकते हैं।
पीलिया या हेपिटाइटिस रोग में लाभकारी
पीलिया या फिर हेपिटाइटिस जिसे कहते हैं। इसमें भी गिलोय बहुत लाभदायक है। ये लीवर के लिए बल देने वाली है। यहां तक अगर फैटी लीवर हो या कोई भी लीवर से संबंधित से विकार हो इसमे भी गिलोय बहुत फायदेमंद है। गिलोय हमारी रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में बहुत फायदेमंद है। इसीलिए कैंसर टी वी जैसे विकारों में भी यह बहुत फायदेमंद है। इसके साथ-साथ पाचन से संबंधित सभी विकार फिर चाहे वो भूख ना लगना या खाना अच्छे से हजम ना होना, उल्टी जैसा लगना, एसिडिटी होना, पेट में दर्द रहना या फिर खून की कमी होना जैसे यह सभी विकारों में फायदेमंद है।
दस्त और यूरिक एसिड की समस्या में लाभकारी
इसके साथ साथ किसी को दस्त हो रहे हैं। यह मल को बांधने वाली है। सभी प्रकार के पाचन से संबंधित विकारों में यह बहुत ही लाभदायक है। अगर आपको कोई त्वचा से संबंधित कोई विकार है या बालों की बीमारी है। फोड़े फुंसी या गर्मी से होने वाले कोई विकार है तो इसमें भी गिलोय का सेवन बहुत फायदेमंद है। तो आप इसका सेवन कर सकते हैं। मानसिक विकारों में गिलोय लाभदायक है। इसमें आप गिलोय का सत्व, ब्राह्मी चूर्ण और शहद मिलाकर इसका चटान ले सकते हैं।
इसके साथ-साथ किसी को जोड़ों की कोई बीमारी हो दर्द हो या अथॉरिटीज है या वात रक्त यानी यूरिक एसिड का लेवल बढ़ जाता है। इसमें भी गिलोय बहुत फायदेमंद है।
आप गिलोय का जो काढ़ा है उसमें सोंठ का चूर्ण मिलाकर ले सकते है। इसके साथ-साथ स्त्रियों में मासिक धर्म बंद होने के बाद कुछ तकलीफ रहती हैं उनको कम करने के लिए भी गिलोय का सत्व और कामदुधा रस शतावरी का चूर्ण मिलाकर लेने से बहुत फायदा मिलता है।
गिलोय को कितनी मात्रा में सेवन करना चाहिए
अब देखते हैं इसका सेवन कितनी मात्रा में करना अगर आप चूर्ण ले रहे हैं 3 से 5 ग्राम आप ले सकते हैं। अगर आप इसका काढ़ा ले रहे है तो 40 से 80 एमएल या ज्यादा से ज्यादा 100 एमएलए लेना है। अगर गिलोय सत्व का इस्तेमाल करें 500 मिलीग्राम से लेकर 1 ग्राम तक आप ले सकते हैं लेकिन आप के विकारों के अनुसार और प्रकृति के अनुसार आपको इसका सेवन करना जरूरी है। ऐसा नहीं है कि यह बहुत लाभदायक है तो आप कितनी भी मात्रा में से ले सकते हैं। इसके लिए सबसे बढ़िया यह रहेगा की आप अपने आसपास के आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह से आप इसका सेवन कीजिए।
काढ़ा बनकर तैयार हो चुका है
अब हमारा यह काढ़ा अच्छी तरह से उबल कर और जैसा हमने आपको बताया कि हमने 4 कप पानी लिया तो इसने आधा कप या एक कप बचाना है। अब यह सिर्फ एक ही कप बचा है। अभी हम गैस बंद कर लेंगे। इसका रंग हल्का हरा है। इसको छान लेंगे। इसका स्वाद बहुत कड़वा रहता है। इसमें आप काला नमक, काली मिर्च, शहद, या सोंठ स्वाद के लिए मिला सकते हैं। आज का यह टॉपिक जो हमने बनाया था यह बनाने के पीछे हमारा उद्देश्य यह था कि आयुर्वेद में जो विधि बताई है वह सही तरीके से आपको पता चल सके। आप खुद के लिए और अपने परिवार के लिए इसका लाभ ले सकें। इसके लिए हमने आपको बनाकर बताया तो आज का यह टॉपिक आपको कैसा लगा अच्छा लगा तो शेयर जरूर करें।
धन्यवाद।
गिलोय का काढ़ा बनाने की आयुर्वेदिक विधि
Reviewed by Tarun Baveja
on
August 04, 2021
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