क्या है द्रोणाचार्य और एकलव्य की अंगूठा मांगने वाली कथा का सत्य
परिचय
महाभारत के विषय में एक आम अवधारणा है कि द्रोणाचार्य ने एकलव्य गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया था। कारण यह दर्शाया जाता है की एकलव्य निषाद कुल में उत्पन्न अथवा हीन कुल में उत्पन्न हुए थे और अर्जुन से ज्यादा अच्छे तीरंदाज थे। अर्जुन से ज्यादा प्रेम होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनका अंगूठा मांग लिया था।
महाभारत से जानेंगे इस घटना के बारे में
दोस्तों क्या यह घटना ठीक है अथवा गलत है? महाभारत से समझने का प्रयत्न करें। उससे पहले थोड़ा सा समझने का प्रयत्न कीजिये यदि आपको पहले ही पता हो कि मदरसे में केवल मुस्लिम ही पड़ सकता है। तो क्या आप कभी मदरसे में जाएंगे पढ़ने के लिए?बिल्कुल नहीं जाएंगे। आप ना में ही इसका जवाब देंगे।
प्रवेश परिस्थिति के अनुसार
यदि आपको पता हो किसी स्कूल में केवल ब्राह्मण वर्ग के बालक का ही एडमिशन होगा। क्या आप वहाँ एडमिशन करने के लिए जायेंग? बिल्कुल नहीं क्योंकि आपको पता है कि आपको केवल वो ब्राह्मणों का ही स्कूल है। जो राजपूत का है या अन्य कामन्यूटी के लिए ,अन्य कामन्यूटी के लोगो का वो एडमिशन करते हैं तो आप कभी भी वहां एडमिशन के लिए नहीं जाएंगे।
महाभारत का श्लोक इस घटना पर
अब महाभारत आदि पर से बहुत पुरषआर्थ करके मशक्कत करके एक श्लोक मैंने ढूंढा है। जिसे यह पूरी की पूरी घटना एकदम शीशे की तरह स्पष्ट हो जाएगी। अर्थात गुरु द्रोणाचार्य के पास अंधक वंशज से लेकर क्षत्रियो से लेकर सूूूत पुत्र तक भी उनके पास विद्या अध्यन करने के लिए आए।
द्रोणाचार्य सभी को शिक्षा देते थे
यहां पर सीधा सीधा यह बात है। यदि गुरु द्रोणाचार्य के विषय मे सूूूत पुत्र को पता होता तथा हीन कुल वालों को ये पता होता कि द्रोणाचार्य केवल क्षत्रियों के बालकों को ही अस्त्र शस्त्र की विद्या देते हैं। तो क्या उनके पास विद्या अध्ययन करने जाते? कभी भी नहीं जाते। जब आपको पहले ही पता है मदरसे में केवल मुस्लिम बालक की पड़ते हैं। कोई हिंदू वहां पर कोई अन्य मंद पंथ वाला नहीं जाएगा। इसी प्रकार जब वे लोगों को पहले ही पता है कि द्रोणाचार्य केवल क्षत्रिय वंश के राजाओं को या राजकुमारों को शिक्षा देते हैं। तो सूूूत पुत्र उनके पास कभी भी विद्या अध्ययन करने नहीं जाता।
शिष्य के रूप में स्वीकार किया गया
उनके पास वो आए और द्रोणाचार्य ने उनको अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया। यही श्लोक का अर्थ मैंने आपको बताया है। दोस्तो कहां से यह प्रश्न आ गया कि एकलव्य को निषाद कुल और हीन कुल में उत्पन्न होने के कारण उनका अंगूठा गुरु दक्षिणा में गुरु द्रोणाचार्य ने मांग लिया।
गुरु शिष्य को को भी हानि नहीं पहुंचा सकता
यहां पर महाभारत पर जितने भी एकलव्य के गुरु दक्षिणा से संबंधित जो किस्सा आये है। जो अध्यन आये है। वह पूरा का पूरा मिलावटी है। यह महाभारत में जातिवाद सिद्ध करने के लिए ब्राह्मणों को बदनाम करने के लिए उनको क्रूर कर्म आदि दिखने के लिए यह सारी की सारी मिलावट जातिवादी की गयी है।
क्योंकि कोई भी गुरु अपने किसी भी शिष्य को हानि नहीं पहुंचा सकता। उसका अंगूठा तो कभी भी गुरु दक्षिणा में नहीं मांग सकता। इसीलिए गुरु दक्षिणा में अंगूठे की जो बात आई आख्यान है।
एकलव्य की कहानी निश्चित रूप से मिलावटी है
एकलव्य का वह निश्चित रूप से मिलावटी है और जो यह कहे कि सुत पुत्र कर्ण है। सुत पुत्र नहीं था वह क्षत्रिय पुत्र था। यह मैं भी मानता हूं। तो आप एकलव्य को भी निषाद कुल उत्पन्न नहीं मान सकते क्योंकि देव शर्मा वासुदेव के भाई थे। उनका पुत्र एकलव्य था अर्थात श्री कृष्ण का चचेरा भाई था एकलव्य। ब्रह्मपुराण में भी इस प्रकार का पूरा प्रकरण आया है देव शर्मा का पुत्र एकलव्य श्री कृष्ण का चचेरा भाई था अर्थात वह भी क्षत्रिय कुल उत्पन्न था।
जातिवाद सिद्ध करने के लिए की गई मिलावट
ऐसा यदि कोई कहे कि नीच कुल उत्पन्न होने के कारण उनका अंगूठा मांग लिया तो यह सारा का मिलावट का आख्यान है। ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। यह सारी की सारी मिलावट जातिवाद सिद्ध करने के लिए महाभारत में मिलाई है। ऐसी मिलावट रामायण में भी हुई है। यह श्लोक यहां पर निश्चित रूप से सिद्ध करता है। कि गुरु द्रोणाचार्य के पास सभी प्रकार के शिष्य की विद्या ग्रहण करने के लिए आते थे।
गुरु द्रोणाचार्य योग्यता के अनुसार शिष्य के रूप में ग्रहण करते थे
हां इतना अवश्य है कि गुरु द्रोणाचार्य किसी को भी अपने शिष्य नहीं स्वीकार करते थे। उनके योग्यता के आधार पर उनको शिष्य स्वीकार करते थे। आपको यह श्लोक यदि महाभारत से मिल जाए और यह जानकारी ठीक लगे तो आप इस टॉपिक को जितना हो सके शेयर जरूर करें।
धन्यवाद।।
क्या है द्रोणाचार्य और एकलव्य की अंगूठा मांगने वाली कथा का सत्य
Reviewed by Tarun Baveja
on
August 04, 2021
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