शाकाहारी और मांसाहारी भोजन, गीता के अनुसार

 *  शाकाहारी और मांसाहारी भोजन गीता के अनुसार।

      व्यक्ति का भोजन शाकाहारी हो या मांसाहारी हो। दोनों में से कौन-सा हमें लेना चाहिए। इस पर गीता ने क्या कहा है हम आपको प्रमाणो द्वारा बताने जा रहे हैं।

      विश्व में लगभग सभी लोग इस बात पर चर्चा करते होंगे कि शाकाहारी रहना है या मांसाहारी रहना है, या दोनों। तो गीता में श्रीकृष्ण ने क्या कहा है, शाकाहारी और मांसाहारी भोजन के बारे में हम आपको विस्तारपूर्वक प्रमाण द्वारा बताने जा रहे हैं।

      सबसे पहले गीता सत्र 2 में श्री कृष्ण जी कहते हैं कि "देहधारी जीव द्वारा अर्जित गुणों के अनुसार उसकी श्रद्धा तीन प्रकार की हो सकती है, सतोगुणी, रजोगुणी अथवा तमोगुणी। यह संसार भी इन्हीं तीन गुणों के द्वारा बना है। त्रिगुणात्मिक माया के द्वारा बना है। 

      अतवः इस संसार में 3 प्रकार के भोजन भी होंगे। श्री कृष्ण ने आगे कहा सत्र 17.7 में, यहां तक कि "प्रत्येक व्यक्ति जो भोजन पसंद करते हैं वह भी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार का होता है" सात्विक आहार, राजसी आहार और तामसी आहार।

      पहले सात्विक आहार के बारे में श्री कृष्ण कहते हैं, गीता 17.8 में "जो भोजन सात्विक व्यक्तियों को प्रिय होता है, वह आयु बढ़ाने वाला, जीवन को शुद्ध करने वाला, बल, स्वास्थ्य, तथा तृप्ति प्रदान करने वाला होता है। ऐसे भोजन रसमय, चिकने, स्वास्थप्रद तथा त्रिदेव को भाने वाले होते हैं" अर्थात भोजन का उद्देश्य आयु को बढ़ाना, मस्तिष्क को शुद्ध करना तथा शरीर को शक्ति पहुंचाना है। ऐसा भोजन दीर्घायु को बढ़ावा देते हैं। 

   प्राचीन काल में जो विद्वान लोग थे, वह ऐसा ही भोजन चुनते थे जो स्वास्थ्य तथा आयु को बढ़ाने वाला हो। यथा दूध के व्यंजन, दालचीनी, सेम, चावल, गेहूं, फल, तरकारीयां अथवा सब्जियां और अन्य शाकाहारी भोजन इनमें शामिल थे। इनमें ऐसे भोजन रसदार  प्राकृतिक रूप से स्वादिष्ट, हल्के और फायदेमंद है। उपयुक्त जो भोजन है वह सतगुणों व्यक्ति को प्रिय होते हैं; क्योंकि यह सात्विक आहार है। इनमें अधिक मिर्च मसाला इत्यादि नहीं होता। यह भोजन 'उपयोग' के लिए होते हैं। 'उपभोग' के लिए नहीं बनते। खाने में अच्छा लगे यह भोजन इसलिए नहीं होते। हमारे शरीर को लाभदायक रहे ये भोजन ऐसा होता है। अतवः यह सात्विक भोजन को आप शुद्ध शाकाहारी भोजन समझिए।

      यह शुद्ध शाकाहारी भोजन मनुष्य के आध्यात्मिक जीवन के लिए भी अनुकूल होता है। अतवः जो भक्त लोग हैं। वह सात्विक शुद्ध शाकाहारी भोजन करना ही पसंद करते हैं।

*  दूसरा भोजन आता है, राजसी आहार: श्री कृष्ण ने कहा 17.9 में की "अत्यधिक खट्टे, नमकीन, गर्म, चटपटे, शुष्क तथा जल्न उत्पन्न करने वाले भोजन रजोगुणी व्यक्तियों को प्रिय होते हैं। ऐसे भोजन दुख, शोक तथा रोग उत्पन्न करने वाले होते हैं"। जब शाकाहारी भोजन कड़वा, अत्यधिक खट्टा, नमकीन, शुष्क, अत्यधिक मिर्ची, चीनी, नमक अर्थात मसाले आदि के साथ पकाया जाता है। तो वो राजसी बन जाते हैं। ऐसे भोजन बीमार, स्वास्थ, निराशा उत्पन्न करते हैं। ये भोजन खाने में अच्छा तो लगता है लेकिन इसका परिणाम समय-समय पर रोगों के रूप में प्रकट होता है। अतः जो आहार अधिक मिर्च मसाले द्वारा पकाए गए हो, वो आहार राजसी आहार के अंतर्गत आते हैं। 

* तामसी आहार: गीता 17.10 में श्री कृष्ण जी कहते हैं कि "खाने से 3 घंटे पूर्व बनाया गया स्वादहीन, वियोजित, एंव सड़ा, जूठा तथा अस्पृश्य अर्थात वो चीजें जो छूने योग्य ना हो वस्तुओं से युक्त भोजन उन लोगों को प्रिय होता है, जो तामसी होते हैं। अर्थात तामसी भोजन अशुद्ध व बासी होता है वह संदूषण या रोगों को बढ़ाने वाला होता है"। खाने के 3 घंटे पूर्व कोई भी भोजन, चाहे भले वो शाकाहारी हो, क्यों ना हो। लेकिन भगवान और सिद्ध महापुरुष को अर्पित जूठन अथवा प्रसाद को छोड़कर तामसी माना जाएगा। बिगड़ने के कारण उससे दुर्गंध आती है। जिससे तामसी लोग प्रायः आर्कष्ट होते हैं।

      मशरूम, शराब, प्याज, लहसुन सभी पैकेट में बंद भोजन इस तामसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं। यहां तक कि अशुद्ध भोजन अर्थात् तामसी भोजन में सभी प्रकार के मांस उत्पादों को भी शामिल किया जाता है। अतवः मांसाहारी तामसी भोजन है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि.. मनुष्य का शरीर मांसाहारी भोजन के लिए नहीं बना है, क्यों जरा विचार कीजिए जो मनुष्य की आंते हैं वो काफी बड़ी है और जो मांसाहारी जानवर है उनके आंते काफी छोटी है; क्योंकि मांस जो है, जल्दी सड़ने लग जाता है। 

   इसलिए मांसाहारी जीव की आंते छोटी है जल्दी से निकल जाती है, बाहर। लेकिन चूंकि मनुष्य की आंते काफी लंबी है, इसलिए वह जो मीट है वो ज्यादा समय तक मनुष्य के पेट में रहता है, जिसके कारण से उसे कई प्रकार के रोंग होते हैं। अतवः मनुष्य का शरीर मांसाहारी भोजन के लिए नहीं है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि.. यह मेडिकल फैक्ट है कि जो मांस खाते हैं उनको कैंसर होने के चांसेस बढ़ जाते हैं। अतवः हमें शाकाहारी होना चाहिए। यघपि यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या खाना चाहते हैं।

      बहुत फेमस लोग जैसे कि महात्मा गांधी, पाइथागोरस, रामानुज ऐसे लोग शाकाहारी ही थे।

      गीता में सात्विक आहार, राजसी आहार और तामसी आहार के बारे में आपको बता दिया है और यह भी बता दिया है कि किन-किन प्रकार के लोग किस भोजन में आर्कष्ट होते हैं। इन भोजन में आप शुद्ध शाकाहारी, शाकाहारी, मांसाहारी व बासी शाकाहारी के रूप में समझिए और यह आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चाहते हैं। यहां ध्यान रहे.. कि आप जो कहते हैं उसका प्रभाव आपके मन पर पड़ता है।
शाकाहारी और मांसाहारी भोजन, गीता के अनुसार शाकाहारी और मांसाहारी भोजन, गीता के अनुसार Reviewed by Tarun Baveja on July 21, 2020 Rating: 5

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