* क्या आप जानते हैं, संध्या के समय कौन से पांच कार्य निषेध माने गए हैं ?
" एताने पंचर्कर्माणी सन्धयांय वर्जेते बुधहे, आहारम् मैथुनम् निंद्रा, सहपाठ्म गतिध्वनि"। ये एक श्लोक आयुर्वेद के ग्रंथ से लिया गया और इसका मैं आपको अर्थ सहित बता रहा हूं और मुझे आशा है कि आप अपने जीवन में इन छोटी-छोटी चीजों को धारण करेंगे। जिससे कि आपको आरोग्य मिल सके, स्वास्थ्य मिल सके।
'पंचर्कमाणि' यानी पांच कर्म, 'सन्धयांय वर्जेते' यानी संध्या के समय वर्जित है। ऐसा लिखा गया। 'आहारम्' संध्या के समय आप आहार नही करें। अब कुछ लोग कहेंगे कि हमें तो संध्या के समय आहार करने के लिए कहा जाता है।
आयुर्वेद ये कहता है कि संध्या के उपरांत कर ले। कुछ 15-20 मिनट बाद में कर ले या संध्या होने के पूर्व यदि आप करते हैं तो वह आपके लिए सर्वोत्तम होता है। लेकिन आप संध्या का जो टाईम होता है 20 से 25 मिनट का आप उस समय जिस समय सूर्य लालिमा लिए हुए होता है, सूर्यास्त लिए होने वाला होता है आप उस समय भोजन ना करें।
दूसरा कर्म बताया है, मैथुनम्। जो व्यक्ति संध्या के समय सेक्सुअल एक्टिविटी करते हैं। वह बहुत गर्म विकार पैदा कर देता है और ट्रांजैक्शन फीड़ में ऐसा कहा गया। आयुर्वेद के ग्रंथों में ऐसा कहा गया कि ये जो संध्या का समय होता है, वह रात्रि का प्रारंभ और दिन का अंत होता है। इस समय यदि हम इस प्रकार की क्रियांए करते हैं तो वह हमारे जीवन को क्षीण करने वाला और होने वाली सन्तति की आयु का नाश करने वाला होता है।
यदि हम संध्या के समय सो जाते हैं। नींद ले लेते हैं तो ऐसा लिखा गया कि संध्या के समय सोने से हमें दरिद्रता की प्राप्ति होती है इसलिए हमें सदैव जागने की अवस्था में होना चाहिए।
पढ़ने से क्या होगा क्योंकि "सहपाठ्म" शब्द आया है। सहपाठ्म का अर्थ होता है, जो व्यक्ति संध्या के समय पढ़ता रहता है उस समय अपने विद्या अध्ययन को छोड़ कर धीरे-धीरे उस पल का आनंद लेना चाहिए, ध्यान या प्राणायाम में समय बिताना चाहिए। यदि हम पढ़ाई करते हैं संध्या के समय तो हमारी आयु की क्षीणता होती है और हमारे बल का क्षीण हो जाना प्रारंभ हो जाता है, जिससे कि हमारी आयु का नाश होता है।
और फिर संध्या के समय हमें बहुत ज्यादा तेज मात्रा में दौड़ने नहीं चाहिए। हम रास्ते में नहीं चले। बहुत ज्यादा मात्रा में दौड़े नहीं। योग का अभ्यास करें। प्राणायाम का अभ्यास करें तो हमारा शरीर पूर्णता स्वस्थ बनेगा और निरोग होगा। मुझे आशा है कि आप आयुर्वेद के इन छोटे-छोटे उपायों को अपने जीवन में धारण करेंगे और सभी निरोग रहेंगे।
हमारे दादा जी या दादाजी या नाना जी और नानी जी हमें ये बताती थी की कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिन्हें संध्या के समय नहीं करना चाहिए और वो हमारी परंपराओं के रूप में 'ज्ञान', एक दूसरी पीढ़ी में आगे बढ़ता जा रहा था। किंतु आजकल के युवा वर्ग में वह ज्ञान लुप्त प्राय होने लग रहा है, ऐसा प्रतीत होता है। आज मैं बात करूंगा कि संध्या के समय ऐसे पांच कर्म जो कभी नहीं करनी चाहिए और क्यों नहीं करने चाहिए इसका भी आयुर्वेद में वर्णन किया गया है। पांच कर्मों को जानने से पहले। मैं आपको वह श्लोक बता दो आयुर्वेद का। जिसमें इनके बारे में लिखा गया।
" एताने पंचर्कर्माणी सन्धयांय वर्जेते बुधहे, आहारम् मैथुनम् निंद्रा, सहपाठ्म गतिध्वनि"। ये एक श्लोक आयुर्वेद के ग्रंथ से लिया गया और इसका मैं आपको अर्थ सहित बता रहा हूं और मुझे आशा है कि आप अपने जीवन में इन छोटी-छोटी चीजों को धारण करेंगे। जिससे कि आपको आरोग्य मिल सके, स्वास्थ्य मिल सके।
'पंचर्कमाणि' यानी पांच कर्म, 'सन्धयांय वर्जेते' यानी संध्या के समय वर्जित है। ऐसा लिखा गया। 'आहारम्' संध्या के समय आप आहार नही करें। अब कुछ लोग कहेंगे कि हमें तो संध्या के समय आहार करने के लिए कहा जाता है।
आयुर्वेद ये कहता है कि संध्या के उपरांत कर ले। कुछ 15-20 मिनट बाद में कर ले या संध्या होने के पूर्व यदि आप करते हैं तो वह आपके लिए सर्वोत्तम होता है। लेकिन आप संध्या का जो टाईम होता है 20 से 25 मिनट का आप उस समय जिस समय सूर्य लालिमा लिए हुए होता है, सूर्यास्त लिए होने वाला होता है आप उस समय भोजन ना करें।
दूसरा कर्म बताया है, मैथुनम्। जो व्यक्ति संध्या के समय सेक्सुअल एक्टिविटी करते हैं। वह बहुत गर्म विकार पैदा कर देता है और ट्रांजैक्शन फीड़ में ऐसा कहा गया। आयुर्वेद के ग्रंथों में ऐसा कहा गया कि ये जो संध्या का समय होता है, वह रात्रि का प्रारंभ और दिन का अंत होता है। इस समय यदि हम इस प्रकार की क्रियांए करते हैं तो वह हमारे जीवन को क्षीण करने वाला और होने वाली सन्तति की आयु का नाश करने वाला होता है।
यदि हम संध्या के समय सो जाते हैं। नींद ले लेते हैं तो ऐसा लिखा गया कि संध्या के समय सोने से हमें दरिद्रता की प्राप्ति होती है इसलिए हमें सदैव जागने की अवस्था में होना चाहिए।
पढ़ने से क्या होगा क्योंकि "सहपाठ्म" शब्द आया है। सहपाठ्म का अर्थ होता है, जो व्यक्ति संध्या के समय पढ़ता रहता है उस समय अपने विद्या अध्ययन को छोड़ कर धीरे-धीरे उस पल का आनंद लेना चाहिए, ध्यान या प्राणायाम में समय बिताना चाहिए। यदि हम पढ़ाई करते हैं संध्या के समय तो हमारी आयु की क्षीणता होती है और हमारे बल का क्षीण हो जाना प्रारंभ हो जाता है, जिससे कि हमारी आयु का नाश होता है।
और फिर संध्या के समय हमें बहुत ज्यादा तेज मात्रा में दौड़ने नहीं चाहिए। हम रास्ते में नहीं चले। बहुत ज्यादा मात्रा में दौड़े नहीं। योग का अभ्यास करें। प्राणायाम का अभ्यास करें तो हमारा शरीर पूर्णता स्वस्थ बनेगा और निरोग होगा। मुझे आशा है कि आप आयुर्वेद के इन छोटे-छोटे उपायों को अपने जीवन में धारण करेंगे और सभी निरोग रहेंगे।
ये पांच काम संध्या के समय नहीं करना चाहिए
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 21, 2020
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