* उद्गीथ प्राणायामः उद्गीथ, प्रणव और ओंमकार ये सभी एक ही नाम है। इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है, केवल उद्बोधन के लिए या केवल संकेत करने के लिए ऐसे ही प्रणव कहा जाता है इसे ही ओंमकार कहा जाता है, इसे ही उद्गीथ कहा जाता है। आइए सीख लेते हैं.. उद्गीथ प्राणायाम किस प्रकार से करते हैं।
सीधे बैठ जाइए, कमर, गर्दन को सीधा करिए। दोनों हाथ ध्यान मुद्रा में अच्छे से, आपके जो थम्म हैं और आपकी जो इंडेक्स फिंगर है उसके टिप्स को मिलाइए। 'ध्यान मुद्रा' केवल अपने टिप्स को मिलाकर बाकी उंगलिया सीधी करके, कमर, र्गदन सीधी करके। अपनी गर्दन को कुछ ऊपर रखिए और सहजता से श्वास भरिए। नाक की एक तरफ से धीरे से श्वास लीजिए और दूसरी तरफ से फिर धीरे से श्वास को छोड़िए। पूरा श्वास भरते हुए ओंमकार करियें।
जिनको एंजायटी, डिप्रैशन, या बहुत ज्यादा क्रोध आने की समस्या होती है, इनशोमिया की समस्या होती है। ब्रेन में दर्द रहता हो ईस्कल पार्ट में दर्द रहता हो वो लोग इस प्रकार का अभ्यास करें तो यह उनके लिए बहुत ही सुखद होगा। इस प्रकार से आप इस प्राणायाम को लगातार 5 मिनट, 10 मिनट, 15 मिनट, आधे घंटे तक जितनी आपकी कैपेसिटी हो, आप उतना करिए।
अपने श्वेम से जुड़ने के लिए उद्गीथ प्राणायाम सर्वश्रेष्ठ है। अपनी आत्म शांति के लिए आत्म अनुशासन के लिए, self-realization के लिए। उद्गीथ प्राणायाम सर्वश्रेष्ठ है। इससे उत्तम कुछ भी नहीं बताया गया क्योंकि यह ओंमकार उस ईश्वर का नाम है उसे ईश्वर की एक आकृति समान उसी का स्वरूप है, हम उसी का ध्यान करते हैं और उसी का स्मरण हर पल में, हर क्षण में करते हैं; क्योंकि ईश्वर हर कण में विद्यमान हैं, हर क्षण में विद्यमान हैं।
सीधे बैठ जाइए, कमर, गर्दन को सीधा करिए। दोनों हाथ ध्यान मुद्रा में अच्छे से, आपके जो थम्म हैं और आपकी जो इंडेक्स फिंगर है उसके टिप्स को मिलाइए। 'ध्यान मुद्रा' केवल अपने टिप्स को मिलाकर बाकी उंगलिया सीधी करके, कमर, र्गदन सीधी करके। अपनी गर्दन को कुछ ऊपर रखिए और सहजता से श्वास भरिए। नाक की एक तरफ से धीरे से श्वास लीजिए और दूसरी तरफ से फिर धीरे से श्वास को छोड़िए। पूरा श्वास भरते हुए ओंमकार करियें।
ध्यान रखने की आवश्यकता है ओम का जो साउंड होता है वह किस आवर्ती में होता हैं और किस प्रकार हो यह जरूरी है हमारे लिए। तो आप "औ" की ध्वनि की गति को ऊपर ले जाते हुए "म्ं" की गति को नीचे लाने के साउंड में कीजिए तो आपको अपना जो सकल है उसमें रिजुनेस ज्यादा फील होगा उद्गीथ प्राणायाम में और यह सर्वश्रेष्ठ लाभकारी होता है।
जिनको एंजायटी, डिप्रैशन, या बहुत ज्यादा क्रोध आने की समस्या होती है, इनशोमिया की समस्या होती है। ब्रेन में दर्द रहता हो ईस्कल पार्ट में दर्द रहता हो वो लोग इस प्रकार का अभ्यास करें तो यह उनके लिए बहुत ही सुखद होगा। इस प्रकार से आप इस प्राणायाम को लगातार 5 मिनट, 10 मिनट, 15 मिनट, आधे घंटे तक जितनी आपकी कैपेसिटी हो, आप उतना करिए।
लगभग 6 से 7 मिनट तक करने के बाद आपकी बॉडी में आपको एक ऊर्जा का आलंबन महसूस होने लगता है। आपकी ईस्कल पार्ट में रिजुनेस महसूस होने लगती है। किन्तु यह तभी संभव है जब आप एकांत में हो कहीं पर भी बाहर की आवाज आपको प्रभावित ना करती हो और कहीं साउंड का रिजोनेंस बनता हो। जैसे कहीं हम खाली रूम में बैठ जाए या फिर जो ऊपर गुंबद का हिस्सा हो, झोपड़ी बनी हुई हो किसी भी प्रकार की। जो साउंड वाइब्रेट होती है, वह वापस आकर हमारे ब्रेन को रिएट करती है। तो आप दो-तीन मिनट के अभ्यास के बाद भी आप उसको महसूस करने लगते।
यदि आप खुले में बैठे हैं तो आपको साउंड लाउडली रखना होगा, जितना तेज साउंड होगा, आपका। उतना ही अंतमन की जो इंद्रियां होती है, हमारी। काम करने की जो क्षमता होती हमारी ब्रेन के साथ में वह बहुत जल्दी ही डेवलप होती है और आपको इसकी फीलिंग महसूस होने लगती है।
अपने श्वेम से जुड़ने के लिए उद्गीथ प्राणायाम सर्वश्रेष्ठ है। अपनी आत्म शांति के लिए आत्म अनुशासन के लिए, self-realization के लिए। उद्गीथ प्राणायाम सर्वश्रेष्ठ है। इससे उत्तम कुछ भी नहीं बताया गया क्योंकि यह ओंमकार उस ईश्वर का नाम है उसे ईश्वर की एक आकृति समान उसी का स्वरूप है, हम उसी का ध्यान करते हैं और उसी का स्मरण हर पल में, हर क्षण में करते हैं; क्योंकि ईश्वर हर कण में विद्यमान हैं, हर क्षण में विद्यमान हैं।
यही मानकर हम उसकी उपासना करते हैं। इसलिए नियमित रूप से अपनी जीवनचर्या में, दिनचर्या में ओमकार को सम्मिलित करिए, प्रणव प्रणायाम नियमित रूप से करिए जो कि आपके जीवन को बदल दे।
सबसे शक्तिशाली प्राणायाम
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 21, 2020
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