युधिष्ठिर और कुत्ता : अद्भुत कहानी

 

युधिष्ठिर और कुत्ता : अद्भुत कहानी

भारत के एक महाराजा थे। नाम था उनका युधिष्ठिर। वे सत्य के मार्ग के अडिग राही थे। कहा जाता है कि वे हिमालय की चढ़ाई चढ़ रहे थे, ताकि उनका शरीर बर्फ में पिघल जाय। किसी कारणवश वे अपने परिवार के साथ, हिमालय की चोटियों पर आरोहण कर रहे थे।

युधिष्ठिर और कुत्ता : अद्भुत कहानी


कहा जाता है कि युधिष्ठिर नेकी अर्थात् सत्यता के मार्ग पर चल रहे थे। वे सत्य की खोज कर रहे थे। क़दम-कदम निरन्तर आगे बढ़ रहे थे। उनका छोटा भाई उनका अनुसरण कर रहा था। इस छोटे भाई के पीछे दूसरा भाई और इसी प्रकार ठीक क्रम के अनुसार परिवार के अन्य लोग पीछे-पीछे आरोहण कर रहे थे। उनके भाइयों के पीछे उनकी पत्नी चल रही थी। वे स्वयं सबसे आगे थे। उनका मुंह लक्ष्य की ओर था। उनकी आँखें सत्य के ऊपर लगी हुई थीं।

उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी, जो उनके पीछे आ रही थी, रो रही थी। वह लड़खड़ा कर गिर पड़ी थी। थक-टूट कर बेहाल हो गयी थी। उनका अनुसरण नहीं कर सकती थी और मृत्यु से जूझ रही थी। महाराजा युधिष्ठिर ने उसकी ओर मुड़कर न देखा। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि कुछ ही फुट दौड़कर उनके पास पहुंच जाय, वहां से उसे अपने साथ ते चलेंगे- "ऊपर मेरे पास चढ़ आओ, ऊपर-ऊपर मुझ तक पहुंच जाओ।"

उनकी पत्नी और ऊपर न चढ़ सकी। तीन फुट-मात्र फासला था, जो ऊपर न जा सकी। वह उनसे पिछड गयी थी। उन तक ऊपर चढ़ जाने की उसमें हिम्मत रह नहीं गयी थी और वह पीछे भी न लौटी। सत्य से एक पग भी पीछे हटने की आज्ञा नही थी। महाराजा युधिष्ठिर कभी कदापि एक पग तक पीछे नहीं हटते थे। उनकी पत्नी लुढ़क गयी थी, परन्तु उसकी खातिर महाराज सत्य के मार्ग से पीछे नही लौटे।

पिछले जन्मों में आपकी हजारों पत्नियां रह चुकी थीं और यदि आप 'भविष्य में भी जन्म ग्रहण करते रहेंगे, तो नही जानते आप कितनी बार फिर ब्याह करेंगे। आपके कितने सम्बन्धी पहले जन्म में थे और न जाने 'भावी जन्मों में और कितने सम्बन्धी बनेंगे। इन सम्बन्धों, रिश्ते-नातों की खातिर आपको सत्य से पीछे हटना नही होगा-नही हटना होगा। आगे बढ़िये, आगे बढ़िये। कुछ भी हो जाय, आपको पीछे नहीं हटना। और संसार की कोई शक्ति आपको पीछे हटा न सके। आप अपनी पत्नी से अधिक सम्मान सत्य का कीजिये। ईश्वर के लिए अधिक निष्ठा ग्रहण कीजिये। सत्य का सम्बन्ध सम्पूर्ण मानव-जाति से है। ईश्वर या सत्य निरन्तर-प्रति समय सम्बन्ध रखता है-अविरत प्रभावी है। इसका सम्बन्ध सदा सर्वदा वर्तमान है-अनादि अनन्त है। और आपके सांसारिक सम्बन्ध और रिश्ते ऐसे नहीं हैं-सर्वदा क्षण-भंगुर हैं।

इस नियम-इस विधान-को याद रखिये कि जो चीज आपके लिए वास्तव में अच्छी है-श्रेयस्कर है, निश्चय ही वह आपकी पत्नी या आपके बन्धुओं, साथियों के लिए भी वास्तव में मंगलकारी होनी चाहिये। यदि आप देखते हैं कि आपके लिए अपनी पत्नी से अलग रहना सचमुच ही 'श्रेयस्कर है, तो याद रखिये कि आपकी पत्नी के भी लिए आपसे अलग रहना वास्तव में श्रेयस्कर है। यह प्रकृत नियम है-अटल विधान है। वही एक ईश्वर या सत्य है जो आपके व्यक्तित्व की तरह में रहता है, वही आपकी पत्नी के व्यक्तित्व के अन्तःस्थल में भी वर्तमान है।

महाराजा युधिष्ठिर की पत्नी गिर पड़ी और चल बसी, परन्तु महाराजा सीधा आगे बढ़ते गये। अपने भाइयों से उन्होंने कहा कि उनका अनुसरण करें। वे सारे भाई महाराजा के पीछे कुछ समय तक दौड़ते चले गये, परन्तु सबसे छोटा भाई उनके साथ और आगे चढ़ाई न चढ़ सका। वह लड़खड़ाने लग गया। थकान ने उसे दबोच लिया और गिरने ही को था कि चिल्ला उठा, "भैया ! भैया युधिष्ठिर ! मैं मृत्यु के हाथों में फंस गया हूँ। मुझे बचा लीलिये-मुझे बच लीजिये।"

महाराजा युधिष्ठिर ने अपने लक्ष्य से आंखे मोड़कर पीछे की ओर न देखा--सत्य से नजर हटा कर उन्होंने भाई की सुधि न ली। वे बढ़ते गये आगे-आगे ही बढ़ते चले गए। उन्होंने केवल अपने छोटे भाई को आवाज दी, "हिम्मत बनाए रखो, साहस अपने भीतर बटोर कर मुझ तक ऊपर पहुंच जाओ, दो-तीन फुट ही का तो फासला है, तय कर लो, इस शर्त पर मैं तुम्हें अपने साथ ले चलूंगा। परन्तु मैं किसी तौर पर भी तुम्हें संभालने या उठाने के लिए एक पग भी पीछे नहीं हटूंगा।"

युधिष्ठिर आगे बढ़ते गये। सबसे छोटा भाई चल बसा। कुछ समय के पश्चात् दूसरा भाई, जो रस्से की छोर पर था, चिल्लाया और गिरने ही वाला था। उसने सहायता के लिए पुकार कर कहा, "भैया, भैया युधिष्ठिर ! मेरी सहायता कीजिये, सहायता कीजिये भया ! मैं गिर चला' . हूँ।" परन्तु भैया युधिष्ठिर ने मुड़कर न देखा। वे आगे बढ़ते चले गये। इस तरह से सभी भाई मौत की गोद में सो गये हमेशा-हमेशा के लिए। परन्तु महाराजा युधिष्ठिर एक पग भी पीछे न हटे-बढ़ते चले गये आगे आगे। आगे बहुत दूर चले गये सत्य के मार्ग पर!

कहानी में बताया गया है कि महाराज युधिष्ठिर जब सत्य के शिखर पर पहुंचे, जब उन्होंने अपने लक्ष्य को पा लिया, ईश्वर स्वयं मूर्तिमान होकर उनके सामने प्रकट हुए-सत्य स्वयं मानव रूप धारण करके सामने उपस्थित हुए। जैसा कि हम बाइबल मे पढते हैं कि ईश्वर पेण्डुकी (फाख्ता) के रूप में प्रकट हुए, वैसे ही हिन्दुओं के शास्त्रों में हम कई व्यक्ति के सामने देवदूत के रूप या स्वर्ग के राजा (इन्द्र या विष्णु) के रूप में ईश्वर के प्रकट होने की कहानियाँ पढ़ते हैं।

कहानी में कहा गया है कि जब महाराजा युधिष्ठिर सत्य के शिखर पर पहुँच गये, सत्य मूर्तिमान होकर प्रकट हुआ और उनसे बोला कि वे सशरीर स्वर्ग में जाएँ-शरीर के साथ देवलोक में आरोहण करें। जैसा कि हम बाइबल में कई व्यक्तियों के जीवित रूप में स्वर्ग पहुँचने की 'कहानी पढ़ते हैं, उसी प्रकार युधिष्ठिर की कहानी में उनसे जीवित अवस्था में (सशरीर) स्वर्ग में आरोहण करने के लिए कहा गया है।

युधिष्ठिर ने जब अपने सीधे हाथ को दिशा में देखा, तो उन्होंने अपने साथ एक कुत्ते को पाया। महाराज युधिष्ठिर बोले, "हे ईश्वर, हे सत्य! यदि आप मुझे उच्चतम स्वर्ग में ले जाना चाहते हैं, तो इस कुत्ते को भी मेरे साथ ले चलिये। इस कुत्ते को भी मेरे साथ उत्कृष्टतम स्वर्ग में चलने दीजिये।"

मूर्तिमान ईश्वर या सत्य बोले, "राजा युधिष्ठिर, यह हो नहीं सकता। कुत्ता उच्चतम स्वर्ग में प्रवेश पाने का अधिकारी नही है। कुत्ते को अभी कई योनियों में से गुजरना है। कुत्ते को अभी मनुष्य योनी प्राप्त नहीं हुई। इसे मनुष्य योनि में पहुंचना होगा और सच्चा जीवन जीना होगा। एक पवित्र, शुद्ध, निष्कलंक मनुष्य का जीवन बिताना होगा। कुत्ता, अभी, इस अवस्था में नही पहुँचा है, तब इसे कैसे उच्चतम स्वर्ग में ले जाया जा सकता है। तुम तो उच्चतम स्वर्ग में सशरीर ले जाये जाने के योग्य एवं अधिकारी हो, परन्तु यह कुत्ता नही।"

इस पर युधिष्ठिर ने कहा, "हे सत्य, हे ईश्वर ! मैं आपके केवल आपके ही लिए यहाँ आया हूँ, स्वर्ग के लिए नही-वैकुण्ठ के लिए नहीं। यदि आप मुझे उच्चतम स्वर्ग में ले जाना चाहते हैं और वहाँ सिंहासन पर बिठाना चाहते हैं, तो आपको मेरे साथ इस कुत्ते को भी ले जाना होगा। मेरी पत्नी मेरा साथ नहीं दे सकी। वह सच्चाई के मार्ग में डगमगा गयी। मेरा सबसे छोटा भाई मेरे साथ नही चल सका, वह भी सच्चाई के मार्ग में सुढ़क गया। मेरे दूसरे भाई भी मुझ तक न पहुंच सके, मुझे छोड़ गये। उन्होंने दुर्बलता के सामने हथियार डाल दिये। उन्होंने कामनाओं को छुट्टी दे दी कि कहीं वे उन पर अधिकार न जमा लें। मेरे साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल सके, परन्तु देखिये, यह अकेला कुत्ता यहाँ तक मेरे साथ आ गया है, यह कुत्ता देखिये ना। इसने मेरे साथ दुःखों, कष्टों को बांटा है। इसने संघर्षों में मेरा साथ दिया है, इसने मेरी लड़ाइयां लड़ी हैं। इसने मेरे परिश्रम और वेदनाओं में हिस्सा लिया है-इस कुत्ते ने मेरा साथ दिया है। यदि यह कुत्ता मेरे साथ मेरी कठिनाइयों को बांटता है-झेलता है, मेरी भीषण लड़ाइयों में संघर्षों में शरीक होता है, तो यह मेरे स्वर्ग–मेरे देवलोक-सुखों का उपभोग क्यों न करे?"

युधिष्ठिर ने अनुरोधपूर्वक दृढ़ शब्दों में कहा, "मैं आपके स्वर्ग या देवलोक में कदापि नहीं जाऊँगा, यदि आप स्वर्ग या देवलोक में इस कुत्ते को मेरा पूरा हिस्सादार नही बनायेंगे। आपका स्वर्ग मेरे किसी काम का, नहीं, यदि आप इस कुत्ते को मुझे अपने साथ ले जाने की आज्ञा नहीं देंगे।"

मूर्तिमान सत्य या ईश्वर ने एक बार फिर युधिष्ठिर से कहा, "कृपया, मुझे ऐसा करने को न कहिये, यह मत कहिये कि इस कुत्ते को आपके साथ स्वर्ग में ले जाया जाय।"

परन्तु युधिष्ठिर ने कहा, "दूर हो जाइये ब्रह्मा ! आप सत्य या ईश्वर के मूर्तिमान स्वरूप नहीं हैं, आप कोई दानव हैं। आप ईश्वर या सत्य नहीं हो सकते। क्योंकि यदि आप सत्य हैं, तो अपने सामने अन्याय की कोई बात क्यों होने देते हैं ? क्या आप इस बात की ओर ध्यान नहीं देते कि यदि आप मुझे तो स्वर्ग के विशेष सुखों के उपभोग की आज्ञा देते हैं और इस कुत्ते को उस उपभोग में मेरा साथी नहीं बनाते, तो आप कुत्ते के प्रति अन्याय का व्यवहार करते हैं, जिसने मेरे दुःखों, कष्टों में हिस्सा बांटा है ? यह बात ईश्वर या सत्य के लिए शोभा की बात नहीं।" 

युधिष्ठिर का यह अजेय हठ देखकर मूतिमान ईश्वर या सत्य अपने प्रकृत रूप में प्रकट हो गये और एकदम उसी समय यह कुत्ता कुत्ते के रूप में न देखा गया, प्रत्युत इस कुत्ते के स्थान पर सर्वशक्तिमान ईश्वर को स्वयं उनकी सम्पूर्ण महिमा-श्री के सहित साक्षात् देखा गया। 

वास्तव में महाराज युधिष्ठिर की परीक्षा ली गयी थी। वे अंतिम परीक्षा में सफल हो गये। वे चरम परीक्षा की कसौटी पर शत-प्रतिशत पूरे उतरे। 

यह है तरीका जिससे आपको सत्य के मार्ग पर चलना है। यदि आप का प्रिय से प्रिय सम्बन्धी, अत्यन्त घनिष्ठ से घनिष्ठ बन्धु, सखा आदि कोई भी व्यक्ति सत्य के मार्ग में आपके साथ कदम मिलाकर नहीं चल सकता, तो आप उनकी ओर प्रियजन या घनिष्ठ बन्धु के रूप में पीछे मुड़कर नहीं देखिये और यदि कुत्ता इस सत्य-मार्ग में आपका साथ देता है, तो इस कुते को अपना निकटतम बन्धु, प्रियतम सम्बन्धी समझिये। इस प्रकार आप उन लोगों को अपना मित्र, अपना सगा-सम्बन्धी बनाइये, जो सत्य-निष्ठा के सिद्धान्त पर आपके साथ पूरे उतरते हैं। जो सत्य के पालन में आपका समर्थन करते हैं-साथ देते हैं। आप अपने लिए दोस्तों या बन्धुओं का निर्वाचन इस सिद्धान्त पर मत कीजिये, कि वे आपकी बुरी प्रकृति का समर्थन करते हैं-उसमें आपका पक्ष लेते हैं। यदि आप इस सिद्धान्त पर अपने मित्रों का चुनाव करते हैं कि वे उसी प्रकार की बुरी व खराब प्रवृत्तियां रखते और उपभोग करते हैं, जैसे तुम करते हो, तो समझ लीजिये आपके दुःखों, कष्टों, विपत्तियों की कोई सीमा, कोई ठिकाना नही रहेगा।

निष्कर्ष

यदि आप विपत्तियों व दुःखों से मुक्त होना चाहते हैं- यदि आप परम आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो सत्य का मार्ग ग्रहण कीजिये, क्योंकि सत्य ही ईश्वर-स्वरूप-सच्चिदानन्द-स्वरूप है। इस मार्ग पर सदा चलते रहिये, यह मत देखिये कि कोई आपका साथ देता है या नहीं। 




युधिष्ठिर और कुत्ता : अद्भुत कहानी युधिष्ठिर और कुत्ता : अद्भुत कहानी Reviewed by Tarun Baveja on August 13, 2021 Rating: 5

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