अंधकार को दानव मानने की भूल : अद्भुत कहानी
हिमालय के किसी भाग में असभ्य जाति के लोग रहते थे। वे असभ्य लोग कभी आग नहीं जलाते थे। संसार के प्राचीन असभ्य लोग भी आग नहीं जलाते थे। वे नही जानते थे कि आग कैसे जलायी या पैदा की जाती है। वे लोग सूखी मछलियां खाकर पेट भर लेते थे। खाना पकाते नहीं थे, धूप से गर्मी लेते या सुखा लिया करते थे।

सायंकाल अंधेरा फैलने से पहले ही वे सो जाया करते थे और सूर्य के उदय के साथ जाग उठते थे। इस प्रकार उन्हें भौतिक अँधेरे में घूमने फिरने का अवसर नहीं मिलता था। वह जानते ही न थे कि अंधकार भी कोई चीज होती है।
उस स्थल के निकट एक बहुत बड़ी गुफ़ा थी। वे असभ्य लोग समझते थे कि उनके कुछ अत्यन्त पूज्य पूर्वज उस गुफा में रहा करते थे। वास्तव में उन लोगों के कुछ पूर्वज इस अंधेरी गुफा में घुसे थे और इसके अन्दर दलदल में फंसकर मर गये या संभवतः गुफा के अन्दर की दीवारों के आगे बढ़े हुए पत्थरों के कोनों से सिर फुड़वा कर प्राणों से हाथ धो बैठे थे।
वे असभ्य लोग इस गुफा को बहुत पवित्र स्थान मानते थे, परन्तु चूंकि उन्हें अंधेरे से कभी वास्ता नहीं पड़ा था, इसलिए गुफा के अन्दर का अंधकार, उनके लिए एक भीषण महाकाय दानव था, जिससे वे छुटकारा पाना चाहते थे। (यह बात बड़ी बेहूदा तथा मूर्खतापूर्ण जान पड़ती है परन्तु आज के लोग इससे भी अधिक या दही मूर्खता की बातें करते है।)
खैर, किसी ने उन लोगों को बता दिया था कि यदि वे इस गुफ़ा की पूजा किया करेंगे, तो वह विकराल दानव गुफ़ा से चला जायगा। अतः ये गुफ़ा के सामने गये और दण्डवत् प्रणाम-पूर्वक लेट गये। बरसों तक यह क्रम जारी रहा, परन्तु इस पूजा-प्रणाम का कुछ प्रभाव न हुआ, दानव गुफ़ा से न गया।
इसके पश्चात् किसी व्यक्ति ने उन्हें बताया कि यदि वे इस दानव को सतायेंगे, इससे युद्ध लड़ेंगे, तो वह गुफा से भाग जाएगा। फिर क्या था, उन असभ्य लोगों ने सब प्रकार के तीर, तरह-तरह की लाठियां, चट्टानों के टुकड़े, सब तरह के हथियार, जो उन्हें मिल सके, ले लिए और गुफा पर आक्रमण कर दिया। गुफा के अन्दर तीरों की झड़ी लगा दी और लाठियों से अंधेरे को रूई की भांति धुन डालने के लिए प्रहार पर प्रहार किये, परन्तु अंधकार टस से मस न हुआ, ज्यों का त्यों डटा रहा, कहीं न गया।
एक अन्य व्यक्ति ने सलाह दी, "अनशन करो, अनशन। तुम्हारे अनशन से दानव (अंधकार) चला जाएगा। इतने वर्षों तक तुमने कोई कदम नहीं उठाया–यथार्थ उपाय नहीं किया। आवश्यकता है अनशन की, बस अनशन करो।"
बेचारे असभ्य लोगों ने अनशन किया-निरन्तर अनशन किया। अनशन द्वारा बलिदान किये, परन्तु अंधकार न गया--विकराल दानव ने गुफ़ा छोड़ने का नाम तक न लिया।
फिर किसी व्यक्ति ने बताया कि खैरात बाँटो-दान करो, तब यह दानव गुफा का परित्याग करेगा। उन्होंने खैरात बांटना शुरू किया, जो कुछ पास था बाँट दिया दान के रूप में, परन्तु दानव था कि किसी तरकीब से भी गुफ़ा से टलने का नाम न लेता था। अन्त में वहां एक व्यक्ति आया। उसने कहा, "यह चला तो जायगा, किन्तु उस अवस्था में कि जब तुम लोग मेरे कहने के अनुसार काम करोगे।"
असभ्यों ने उस व्यक्ति से पूछा कि निर्देश क्या है ?
व्यक्ति बोला, "कुछ छड़ियाँ लाकर दो मुझे, लम्बे-लम्बे बाँसों की और कुछ सूखी घास भी इन छड़ियों के सिरों पर बांधने के लिए तथा कुछ मछली का तेल।" फिर उसने उन लोगों से कहा, "कुछ तिनके या कपड़े या अन्य कोई वस्तु भी जलाने के लिए संग्रह करो।"
उस व्यक्ति ने कपड़े, घास-फूस आदि को बाँस की छड़ियों के सिरों पर बांध लिया और मछली का तेल उन बंधे सिरों पर डाल दिया। इसके पश्चात् उसने पत्थर के ऊपर एक अन्य पत्थर के टुकड़े का प्रहार करके चिनगारियां पैदा की और उनसे बांस की छड़ियों के सिरों से बंधे घास-फूस या कपड़ों को आग लगा दी।
इस प्रकार आग पैदा कर ली गयी और यह दृश्य उन असभ्य लोगों के लिए बहुत ही अनोखा था, क्योंकि यह पहला अवसर था कि उन्होंने आग देखी थी। इसके बाद उस व्यक्ति ने उन लोगों से कहा कि उन बाँस की छड़ियों को, जिनके सिरे जल रहे थे। अपने हाथों में उठा लें और गुफा के भीतर भाग कर जायें तथा इन मशालों के द्वारा दानव को कानों से पकड़कर गुफा के बाहर घसीट लायें। यदि वह अंधकार-दानव उन्हें मिल जाय तो उसे छोड़ें नही।
असभ्य लोगों ने पहले तो उस व्यक्ति के इस सुझाव या विचार में विश्वास न किया और कहा, "यह बात या तरीका ठीक नहीं हो सकता, क्योंकि उनके पितामहों ने बताया था कि गुफा का दानव उसी समय जायेगा, जब हम उसके आगे दण्डवत् प्रणाम करेंगे या हम अनशन अर्थात् उपवास करेंगे या खैरात बांटेंगे, और ये सब उपाय हम कर चुके हैं, कई वर्षों से करते चले आ रहे हैं, लेकिन दानव मे आज तक गुफा को छोड़ा नहीं।"
"और अब," उन्होंने कहा, "यह व्यक्ति अजनबी है, अपरिचित है। निश्चित ही यह कोई ठीक सलाह नहीं दे सकता-ठीक उपाय नहीं बता सकता। इसकी सलाह व्यर्थ है। हमें इसकी बात को नहीं सुनना चाहिये।"
उन्होंने आग बुझा दी। परन्तु उनमें से कुछ ऐसे व्यक्ति भी थे, जिनके मन में पक्षपात या विरोध नहीं था। उन्होंने कुछ जलती हुई छड़ियाँ, या मशालें हाथों में उठा ली और गुफा के भीतर घुस गये। उन्होंने देखा, वहाँ कोई दानव नहीं था। वे गुफ़ा के भीतर और आगे बढ़े और आगे दूर तक चले गये क्योंकि यह गुफ़ा बहुत लम्बी थी। परन्तु उन्हें कही भी दानव दिखाई न दिया। तब उन्होंने सोचा कि दानव कही छिपा बैठा होगा गुफ़ा के गढ़ों में-छिद्रों में। उन्होंने जलती हुई छड़ियों को छिद्रों में घुसेड़-घुसेड़ कर देखा, परन्तु दानव कही न था। ऐसा प्रतीत होता या कि जैसे वह कभी यहाँ या ही नही।
ठीक इसी प्रकार अविद्या-अन्धविश्वास-अज्ञान-दानव है-अन्धकार है, जो हमारे हृदयों की गुफ़ा में घुसा हुआ है और हंगामा उठा रहा है, विपत्तियां पैदा करके हमारे जीवन को नरक बना रहा है। समस्त दुःख, कष्ट और दर्द इसी के मारे हमारे अन्दर बसे हुए हैं, वे कही बाहर से नही आते।
निष्कर्ष
अन्धविश्वास, अज्ञान या अन्धकार केवल ज्ञान द्वारा ही या आत्मज्ञान द्वारा ही दूर किया जा सकता है, खाली तपस्या, उपवास, अनशन आदि से नहीं।

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