अजेयता का रहस्य : अद्भुत कहानी

 

 

अजेयता का रहस्य : अद्भुत कहानी

शास्त्रों में तीन व्यक्तियों की एक बहुत ही शानदार व प्रभावशाली कहानी का वर्णन किया गया है। वे व्यक्ति असुर कहलाते थे। वे तीनों असुर आश्चर्यजनक शक्तियों से भूषित थे। वे असाधारण योद्धा थे। कोई भी व्यक्ति उन पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता था।वे अद्भुत व्यक्ति थे। लोग मैदान में उतरे, उन तीनों से लड़े और तुरन्त मुंह की खाकर रह गये; शत्रुओं के दल आक्रमणकारी हुए, परन्तु सभी शत्रुओं की पराजय हुई। उनसे लड़ने वाले लोग हजारों की संख्या में आये। परन्तु उन्हें इन तीनों से हार खानी ही पड़ी। शत्रुओं ने बार-बार पराजित होने के पश्चात् एक महात्मा के चरणों में आकर प्रार्थना की कि इनको कोई ऐसा ढंग बताने की कृपा करें, जिससे उन तीनों असुरों को हराया जा सके।


अजेयता का रहस्य : अद्भुत कहानी


महात्मा ने इनसे कहा कि उन असुरों की अजेयता के कारणों का पता लगाना चाहिये। आखिर वे अजेय क्यों है ?

बहुत प्रयत्नों और कष्टों के बाद उनकी अजेयता का रहस्य खुला, अजेयता का रहस्य यह है कि वे अपने मन में यह विचार कभी उठने नहीं देते कि वे कर्ता है या भोगता है, अर्थात् वे तीनों बड़ी-से-बड़ी विजय प्राप्त करके भी खुशियां मनाने या हर्षोल्लास के समारोह रचाने नहीं बैठ जाते। जब जीत उनके चरण चूमती-जब विजय, उनके माथे पर गौरव का तिलक करती तो उनके मन पर कुछ भी असर नहीं होता। वे विजय का विचार तक भी मन में नहीं लाते। जब वे लड़ रहे होते हैं, तो यह ख्याल कि " मै, इस शरीर के रूप में, लड़ रहा हूँ" उनके पास फटकता तक नहीं और यह भाव कि "मैं लड़ रहा हूँ," उन्हें छू नहीं पाता। इस प्रकार के बहादुर योद्धा ये वे इस संसार में। 

आप जानते हैं कि युद्ध में प्रत्येक योद्धा जब लड़ रहा होता है, जिस प्रकार लोग कहते हैं, "मैं पूर्णरूपेण या मूर्तिमान श्रवण शक्ति हूँ," उसी प्रकार उस समय योद्धा मूर्तिमान कर्म अर्थात् युद्ध-कर्म होता है। यहाँ इस विचार की गुंजाइश नहीं रहती कि "मैं कर रहा हूँ।" यहाँ शरीर कहने को एक यन्त्र होता है अर्थात् शरीर यंत्रवत् होता है। वह मूर्तिमान कर्म है, इस अवस्था में उसका सिर और पांव ईश्वरत्व में-भगवान् में डूबे होते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति जब भी युद्ध लड़े, मूर्तिमान कर्म-युद्ध कर्म-बन गए। उन्होंने एक क्षण के लिए भी इस विचार को पास नहीं आने दिया कि "मैं कर रहा हूँ-या लड़ रहा हूँ।" जिस प्रकार एक यंत्र या मशीन काम करती है, ठीक उसी प्रकार उनके शरीरों ने किया ईश्वर की मशीन या यंत्र के रूप में। उनके शरीरों ने प्रेम की मशीन के रूप में युद्ध किया। यही रहस्य था उन तीन असुरों की सफलता का विजय का। कोई भी व्यक्ति उन्हें जीत न सका। 

अब उनकी अजेयता का रहस्य मालूम हो गया था, महात्मा ने उन असुरों के शत्रुओं को असुरों पर विजय पाने का ढंग बता दिया। महात्मा ने कहा कि वे लोग असुरों के साथ युद्ध छेड़ दें और लड़ते-लड़ते हठात् मैदान छोड़कर भाग जायें। इसके बाद फिर जाकर असुरों को युद्ध के लिए ललकारें और जब वे इन पर आक्रमण आरंभ करें, तो ये फिर मैदान छोड़कर भाग आएं, यह जताने के लिए कि असुर जीत गये हैं। बस इस प्रकार असुरों के साथ युद्ध छेड़ने और बाद को मैदान से भाग जाने का यह खेल जारी रखें। 

असुरों के शत्रुओं ने ठीक यही युद्ध-नीति अपनायी। ये असुरों के पास जाते, उन्हें युद्ध के लिए ललकारते। असुर मैदान में उतरते, तो ये भाग खड़े होते। इन लोगों ने असुरों के साथ यह तमाशा बार-बार किया। असुरों को युद्ध के लिए चुनौती देते और युद्ध के या आक्रमण के आरंभ होते-होते ये पीठ दिखाकर भाग जाते। इस प्रकार उन असुरों के शत्रुओं ने और भी कई बार हार खायी। 

इसका प्रभाव यह हुआ कि धीरे-धीरे वे तीनों अजेय असुर योद्धा अपनी वास्तविक स्थिति से विमुख हो गये, यूं कहिये कि इस ढंग से उन्हें उनकी सच्ची स्थिति से बाहर निकाल लिया गया- उन्हें उनकी प्राकृतिक अजेयता से बाहर धकेल दिया गया। उनमें यह विश्वास पैदा कर दिया गया कि वे विजेता हैं। उन्हे यह विश्वास करने पर विवश कर दिया गया कि वे महान् हैं और विजेता हैं। निरन्तर प्राप्त हुई विजयों ने उनके मन में यह भाव भर दिया कि वे विजेता हैं, वे अजेय हैं। सरांश यह कि उन तीनों अजेय असुरो को उनकी ऊँची स्थिति से नीचे उतार कर शरीर के पिंजरे में बन्द कर दिया गया, उन तीनों को उनकी देह की चारदीवारी में बन्दी बना दिया गया। यह विचार कि "मैं कर रहा हूँ," यह भाव कि "मैं महान् हूँ," उन तीनों पर हावी हो गया। इस भाव ने उन्हें पकड़ कर कैद में डाल दिया। अन्त मे जहाँ भगवान् का निवास था। जहाँ उनके रोम-रोम मे सर्वशक्तिमान प्रभु बसा हुआ था, वहाँ उसके स्थान पर एक अल्पशक्ति अभिमान-अहंकार ने डेरा जमा लिया। अब उन पर विजय पाना कोई कठिन कार्य नही रह गया था। अब उन्हे पकड़ लेना तथा बन्दी बना लेना बच्चों का सा खेल बन गया था। 

अब उन असुरों पर उनके शत्रुओं ने आक्रमण किया और उन्हें शीघ्र ही पराजित कर दिया गया और तुरन्त पकड़ लिया गया। 

जब तक आप इस तरह से काम करते रहते हैं कि आपका शरीर भगवान् के हाथ में एक मन्त्र है-एक मशीन है, आपका व्यक्तित्व ईश्वरत्व में डूबा रहता है। जब तक आप ऐसी स्थिति में रहते हैं, आप उन तीनों असुरों की भांति अजेय हैं, आप उन असुरों के समान इस विचार से ऊपर उठ जाते हैं, "मैं भोग रहा हूँ, मैं कर रहा हूँ।" आप अजेय हैं, परन्तु जब लोग आपके पास आते हैं और आपकी प्रशंसा के पुल बांधने लग जाते हैं, आपको आकाश पर चढ़ा देते हैं, आपकी खुशामद करते हैं, सब पहलुओं से आपको मक्खन लगाते हैं, आपकी हाँ में हाँ मिलाते हैं, आपके मन में यह विश्वास पैदा कर देते हैं कि आप विजेता हैं, आप बहादुर हैं, आपके प्रभुत्व की तूती बोल रही है, और अन्य सभी लोग पराजित हैं, आपके प्रतिद्वन्द्वी आपके विरुद्ध हैं। आप इन्ही तीनों असुरों के समान हैं। यह विचार कि "मैं कर रहा हूँ" और कि "मुझे कर्म का उपभोग करना चाहिये," "मैं भोक्ता हूँ," यही विचार आपको बन्दी बना लेता है, आपको नीचे उतार कर शरीर के पिंजरे में बन्द कर देता है। आप खत्म हो जाते हैं, निर्जीव हो जाते हैं और शक्ति नष्ट हो जाती है। पिंजरे से बाहर निकल आइये और देखिये आप शक्ति-सम्पन्न हैं। पिंजरे के भीतर फिर चले जाइये, आप देखेंगे कि आप खत्म हो गये हैं। 

निष्कर्ष

अपने आपको ईश्वर में, परम सत्य में, खो दीजिये, देखिये आप परम शक्तिशाली हैं, अजेय हैं और अपने आपको ईश्वर से बाहर खींच लीजिये, और देखिये आपका कहीं ठिकाना नही, कदम-कदम पर हार की मार पड़ती है, विपत्तियां, दु:ख दबोच लेते हैं और आप तबाह हो कर रह जाते हैं 



अजेयता का रहस्य : अद्भुत कहानी अजेयता का रहस्य : अद्भुत कहानी Reviewed by Tarun Baveja on August 13, 2021 Rating: 5

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