एक नियम और पूरा आयुर्वेद समझ जाओ
नमस्कार मित्रोंकहते हैं कि आयुर्वेद एक विशाल समुंद्र की तरह है जिसे समझने में पूरा जीवन भी लगा दिया जाए तो भी एक व्यक्ति इसे पूरा नहीं समझ सकता और जो व्यक्ति इस समुंद्र में जितना गहरा गोता लगाएगा उसे उतना उतने ज्यादा मोती मिलते जाएंगे। ऐसा आयुर्वेद के बारे में कहा जाता है। पर आज हम कह रहे हैं कि अगर आप एक नियम आयुर्वेद का समझ जाए तो आप पूरे का पूरा आयुर्वेद समझ जाएंगे।
क्या सच में ऐसा हो भी सकता है कि केवल एक नियम समझने से हम पूरे का पूरा आयुर्वेद का शास्त्र समझ लें क्योंकि आयुर्वेद में तो इतने हजार श्लोक लिखे गए हैं।इतने सारे सूत्र लिखे गए हैं। उन सारे सूत्रों का सार केवल एक नियम में हो सकता है। जी हां आज का अगर यह नियम आप समझ जाएंगे तो आप पूरे का पूरा आयुर्वेद हमेशा के लिए समझ जाएंगे वह नियम क्या है चलिए जानते हैं।
आयुर्वेद को लेकर लोगों में कन्फ्यूजन
आयुर्वेद को लेकर सबसे ज्यादा लोगों को यह कंफ्यूजन रहता है कि आयुर्वेद में हर चीज विरोधाभास है। कोई कहता है घी खाना चाहिए। कोई कहता है घी नहीं खाना चाहिए। कोई कहता है दिन में सोना चाहिए। कोई कहता है दिन में नहीं सोना चाहिए। अभी कुछ महीने पहले कह रहे थे दही नहीं खाना चाहिए। 2 महीने बाद कह रहे हैं दही खाना चाहिए। कोई बीमारी में कहता है ये करो।
कोई बीमारी में कहता है वो करो। यह हमेशा गड़बड़ घोटाला है। कुछ समझ नहीं आता। कभी कहते हैं कुछ चीजें अच्छी हैं। कभी कहते हो वो चीजें खराब है। कभी कहते हो इस बीमारी में यह चीज जरूर खाओ। कभी कहते हैं इस बीमारी में यह चीज बिल्कुल भी नहीं खाना।यह आयुर्वेद वाले लोगों को क्या प्रॉब्लम हैं। इनको क्या समझ नहीं आता या फिर इनका कुछ फिक्स नहीं है या आपस में लड़ते ही रहते हैं। ऐसे बहुत से लोगों को लगता है कि आयुर्वेद में कुछ फिक्स नही है और जिसके जो मन में आता है वह कहता है तो चलिए समझते हैं ऐसा क्यों है?
आयुर्वेद एक विज्ञान
आयुर्वेद का जो शास्त्र है या आयुर्वेद का जो साइंस है वो केवल एक शब्द पर टिका हुआ है। जी हां केवल एक शब्द पर उस शब्द का नाम है समता। समता अर्थात बैलेंस आयुर्वेद का पूरे का पूरा शास्त्र जो कुछ भी लिखा है वह सब का सब बैलेंस पर टिका हुआ है और आयुर्वेद की चिकित्सा में ऐसे कहा गया है कि जो भी चीज बड़ी हुई है उसे घटाकर कंट्रोल कर दो। जो चीज घटी हुई है उसे बढ़ाकर कंट्रोल कर दो और जो चीज बैलेंस में हैं उस बैलेंस को मेंटेन रखो। इन्हीं चीजों को धातु समतु या दोष समतु तो इस तरह के शब्द कहे गए हैं।
आयुर्वेद के अनुसार दिन में सोना अच्छा है या बुरा
आयुर्वेद के विज्ञान को एक उदाहरण से समझते हैं। चलो चलिए एग्जांपल से समझते हैं। दिन में सोना अच्छा या बुरा। कुछ लोग कहेंगे अच्छा है कुछ लोग कहेंगे बहुत बुरा है। पर आयुर्वेद कहेगा कि यह कंडीशन पर डिपेंड करता है। कंडीशन अर्थात ऐसी कंडीशन या ऐसी समस्याएं जब शरीर में वात और पित्त बड़ा रहता है। जैसे कि गर्मी के मौसम में या फिर कुछ बीमारियां हैं जिसमें वात पित्त बढ़ा हुआ है। आदमी बहुत कमजोर है।दुर्बल है। किसी बीमारी के कारण बहुत ज्यादा वीक हो गया है। ताकत नहीं है। ऐसी व्यक्ति को आयुर्वेद में कहा जाएगा कि आप दिन में जरूर सोना। दिन में सोने से उसका जो कफ़ है वह बढ़ेगा और वात पित्त कफ का बैलेंस में होकर उसका शरीर ठीक हो जाएगा।
आयुर्वेद के अनुसार घी तेल खाने के नियम
अब कोई व्यक्ति ऐसा है जिसका ऑलरेडी का बढ़ा हुआ है। वह मोटे शरीर का है बहुत ज्यादा तेल, घी खाता है। हाइपो थायराइड का है। फैटी लीवर का है। शरीर में ब्लॉकेज है। ऐसे व्यक्ति को दिन में सोना अच्छा होगा क्या? आप भी सोचिए आप कहेंगे नहीं नहीं। जब पहले से ही इसका कफ़ बड़ा है। मोटापा बड़ा है। ऐसे व्यक्ति को दिन में नहीं सोने देना चाहिए। तो आप अब बताइए दिन में सोना अच्छा है या बुरा। आप भी कहेंगे दिन में सोना अच्छा या बुरा नहीं है। डिपेंड करता है कंडीशन या बीमारी के ऊपर।
आयुर्वेद के अनुसार एक चीज अच्छी या बुरी दोनों हो सकती है परिस्थिति के अनुसार
यही आयुर्वेद भी कहता है कि कोई भी चीज अच्छी या बुरी नहीं है। डिपेंड करता है कंडीशन पर। उस चीज का उपयोग हम इसलिए कर रहे हैं कि जो भी वात पित्त या कफ जो धातुएं हैं। रस, रक्त, मांस, मज्जा, शुक्र आदि यह धातुएं इमबैलेंस है ऊपर नीचे हैं। उन्हें बैलेंस करना। क्यों बैलेंस करना।
चरक संहिता सूत्र स्थान के 16 अध्याय के 38 श्लोक है उसमें वह ऐसा कहते हैं कि जब हमारे शरीर में वात, पित्त, कफ और धातुएं बैलेंस में रहती हैं तभी उस व्यक्ति को स्वस्थ मिलता है। आरोग्य मिलता है या वह व्यक्ति सुखी रहता है। इसलिए जब आप स्वस्थ की डेफिनेशन पूछेंगे कि आयुर्वेद में हम किस को स्वस्थ कहते हैं। डब्ल्यूएचओ को पूछेंगे कि स्वस्थ कौन है तो उनका भी यही कहना है समता वाला व्यक्ति। हर एक चीज के आगे देखिए सम वर्ड आया है समता अर्थात बैलेंस सम दोष भी बैलेंस में हो। आयुर्वेद का जो शास्त्र है वह पूरे का पूरा सम का अर्थात बैलेंस पर टिका हुआ है।
आयुर्वेद के दो तीन उदाहरण
एक या दो और एग्जांपल समझते हैं जिससे आप और अच्छे से समझ सकेंगे कि आयुर्वेद में कभी क्यों चीजों को मना किया जाता है। कभी कहते हैं कि इस चीज को जरूर लो जैसे दूध पीना अच्छा है या बुरा है तो आप कहेंगे दूध पीना तो अच्छा है। पर क्या दूध पीना सबके लिए अच्छा है। जी नहीं अगर वात पित्त का रोगी है तो दूध बहुत अच्छा है क्योंकि वात पित्त को कम करता है। किसी व्यक्ति को बहुत ज्यादा सर्दी खासी कफ हो रहा है या डायबिटीज का रोगी है। मोटापे का रोगी है। उसके लिए दूध अच्छा है क्या? बिल्कुल भी नहीं ऐसे व्यक्ति को आयुर्वेद में दूध मना किया जाता है। तो अब आप बताइए दूध अच्छा है या बुरा आप भी कहेंगे कंडीशन पर डिपेंड करता है।
गोमूत्र का उदाहरण
ऐसे ही गोमूत्र अच्छी है या बुरी चीज है तो सिंपल सी बात है जिसको वात और कफ बढ़ा हुआ है उनके लिए तो गोमूत्र बहुत अच्छा है क्योंकि गोमूत्र गर्म है नेचर में। छेदन, भेदन यह सब कार्य करता है। वात कफ को कम करता है। पर जो गर्म नेचर का है पित्त प्रकृति का है उसके शरीर से ब्लीडिंग हो रही है या प्रेग्नेंट वुमन है ऐसे लोगों के लिए गोमूत्र बिल्कुल भी अच्छा नहीं है। तो इस तरह आयुर्वेद की जो भी नियम कहे जाते हैं।
वसंत ऋतु में कफ का उदाहरण
वह सब के सब एक ही उद्देश्य होता है कि हर चीज का बैलेंस बनाना जैसे मार्च-अप्रैल का टाइम आता है वसंत ऋतु होती है उस समय कहते हैं कि मीठा मत खाओ क्योंकि कफ़ बढ़ेगा। क्योंकी हमारे देश में हर दो 2 महीने में मौसम बदलता है। जैसे ही वसंत ऋतु मार्च-अप्रैल में आती है हमारे शरीर में कफ बढ़ जाता है। सर्दी खासी यह सब होने लगते हैं। पर जैसे ही 2 महीने बाद वसंत ऋतु जाती है और गर्मी आती है तो गर्मी के मौसम में कफ खत्म हो जाता है इसलिए कहते हैं कि गर्मी के मौसम में मीठा जरूर खाओ और विशेष रूप से मीठा खाओ।
अल्कोहल का उदाहरण
आयुर्वेद में तो सारी चीजों का एक ही नियम होता है कि इस कंडीशन में यह सूटेबल है तो यूज़ करो। नहीं है तो नहीं करो क्योंकि बैलेंस बनाना है। एक लास्ट दारु पीने से लिवर खराब होता है। हम सभी जानते हैं। जी हां पर आयुर्वेद में लीवर की कुछ बीमारियों में आसव और अरिष्ट पीने के लिए कहे गए हैं जिनके अंदर नेचुरल अल्कोहल होता है। तो आप बोलेंगे दारू से तो लीवर खराब होता है। फिर आसव अरिष्ट जिस में नेचुरल और अल्कोहल बनते समय पैदा हो जाता है उसे क्यों दिया जा रहा है क्योंकि हम एक चीज जानते हैं जो अल्कोहल है वह लीवर खराब कर रहा है। इसका मतलब यह तो है वह अल्कोहल लिवर तक जाता है। इतना तो हमें समझ में आ रहा है। तो आयुर्वेद इसी सिद्धांत को यूज करके क्या करता है जब अल्कोहल लीवर तक पहुंच सकता है। तो कुछ ऐसी औषधियां डाल दो जो लीवर को ठीक करने का काम करती हैं। उसके साथ अगर यह दवा दी जाए तो यह दवा अल्कोहल के साथ लीवर तक पहुंचेगी।उस लीवर को ठीक करने का काम करेगी।
निष्कर्ष
यह पूरे का पूरा साइंस, यह विज्ञान समता या बैलेंस पर टिका हुआ है। तो उम्मीद है अब आपको ऐसे लगे कि इस जगह पर आपको यह मना किया था तो सारी चीजों का एक ही नियम होता है कि इस कंडीशन पर डिपेंड करती है। आशा करता हूं आज का टॉपिक आपको अच्छे से समझ आ गया होगा।
धन्यवाद।
एक नियम और पूरा आयुर्वेद समझ जाओ
Reviewed by Tarun Baveja
on
August 04, 2021
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