वीर्य क्या है और वीर्य कैसे बनता है
वीर्य से शरीर का क्या सम्बन्ध है और वह शरीर के किन-किन कामों में आता है, यह जान लेना वी बहुत आवश्यक है। जब तक किसी की योग्यता और प्रतिभा नहीं जानी जाती तब तक उसका सम्मान नहीं किया जा सकता। यदि हमको वीर्य के सम्बन्ध की पूर्ण जानकारी हो-वह जीवन में हमारे किन-किन कामों में आता है, यह हम जानते और समझते हो, तो यह कभी सम्भव नहीं है कि हम उसका सम्मान न कर सकें, उसका संरक्षण न कर सकें। यह निर्विवाद है कि हमको उसका यथावत् ज्ञान नहीं है और यह उसकी मान-मर्यादा का परिचय न होने के कारण ही हम उसकी प्रतिष्ठा नहीं करते। फल यह होता है कि न केवल हम उसके उपकारों से वंचित रहते हैं, प्रत्युत हम अपने जीवन में उसको खोकर निराधार, निर्बल और पुरुषार्थहीन हो जाते हैं।
जिसके मान-मर्यादा की हम प्रतिष्ठा करने जा रहे हैं वह क्या है और उसकी उत्पत्ति क्या है, यह जान लेना भी उसके साथ-साथ उपयोगी है। हम जो कुछ खाते हैं, वह आमाशय में जाता है, आमाशय का काम है उसे परिपक्व बना देना। जितना वह परिपक्व होता जाता है, वह एक छोटी-सी अंतड़ी में चला जाता है, अंतड़ी पक्वाशय कहलाती है। भोजन में जो मल और विकार होता है, पक्वाशय उसको पृथक करके मल और मूत्र के रूप में मलाशय और मूत्राशय में भेज देता है। विकार के पृथक हो जाने पर रस रह जाता है, यह रस रुधिर में सम्मिलित हो जाता है और वह फिर जठराग्नि के द्वारा पकता है। उस रस में भी कुछ विकार होता है। अतएव उसके पक जाने पर उसका विकार का, मुख के पानी और थूक, और आँखों के जल के रूप में पृथक होकर अपनेअपने मार्ग से बाहर निकल जाता है। रस से जब ये विकार पृथक होजाते हैं तो फिर वह शेष बचा हुआ अंश रुधिर बन जाता है। उसके रुधिर बनने के पूर्व उस रसके दो भाग हो जाते हैं, सूक्ष्म और स्थूल। सूक्ष्म भाग का रुधिर बन जाता है और स्थूल भाग जठराग्नि के द्वारा फिर पकता है। उससे फिर मल पृथक होता है। शरीर में पित्त का जो अंश हुआ करता है, वह इस स्थूल भाग का विकार है। इससे पित्त के पृथक होजाने पर वह फिर दो भागों में हो जाता है, सूक्ष्म और स्थूल। सूक्ष्म भाग मांस बन जाता है और स्थूल भाग शेष रहकर फिर पकता है। इस बार पकने से उसका विकार फिर पृथक होता है। यह विकार शरीर के सूचम अवयवों कान आदि के द्वारा बाहर आता है और शेष भाग चरबी बन जाता है। यह चरबी फिर पकती है जिससे उसका मल और विकार पृथक होता है। शरीर का पसीना, जिह्वा और दांतों का मैल चरबी का विकार कहलाता है। इन विकारों के पृथक होने पर उसके दो भाग हो जाते हैं, एक भाग से हड्डियाँ बनती और पुष्ट होती हैं और शेष भाग फिर पकता है। उसका मल उससे पृथक होता है। शरीर में जो रोम, बाल और नख होते हैं, वे उसके मल हैं। इनके पृथक हो जाने पर शेष भाग मजा बन जाता है। इसके पश्चात् मजा पकती है। पकने पर उसका विकार नाक, आँख के द्वारा बाहर होता है। अब शेष भाग वीर्य बन जाता है। इस प्रकार वीर्य की उत्पत्ति होती है।
No comments: