ब्रह्मचर्य की प्राचीनता
ब्रह्मचर्य-प्रथा के आविष्कार-काल के सम्बन्ध में कुछ कहने
के लिये, विश्व का इतिहास मूक है । इसलिये यह बात निश्चय
रूप से नहीं कहीजा सकती कि यह प्रथा अमुक समय में ही प्रचलित
हुई थी। पर हाँ, इतना तो कई उदाहरणों से जान पड़ता है कि
इसका सूत्रपात वैदिक काल से पहले हो चुका था। जैसा कि
निम्नलिखित मन्त्र से भी सूचित होता है:दया.
इन्द्रोह ब्रह्मचर्येण, देवेभ्यः स्वराभरत् ॥
(अथर्ववेद)
ब्रह्मचर्य के तपोबल से देवों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की,
और इन्द्र को इसी ब्रह्मचर्य के पुण्य प्रताप से सुरों में उच्चासन
मिला।
वास्तव में हमारे वेद-कालीन आर्यों ने इसका पूर्ण रूप से विकास
तथा सार्वभौम प्रचार किया था उस समय की आश्रम-प्रणाली
से भी यह बात स्पष्ट-स्पष्ट झलकती है। यह प्रथा पौराणिक काल
तक अधिक मर्यादित रही. और यहीं फिर इसकी धीरे-धीरे अवनति
होने लगी और इस दशाको पहुँची।
सृष्टि-सम्बत् पर बहुत मत-भेद है। यदि लोकमान्य तिलक
के मत से वैदिक सभ्यता का समय ८००० वर्षों से पूर्व मानें, तो
भी हमारी ब्रह्मचर्य-प्रथा इससे विशेष प्राचीन ठहरेगी। वेदों में कई
स्थानों पर ब्रह्मचर्य विषयक मन्त्र आये हैं। उनमें कहीं सङ्केत
और कहीं प्रकट रूप से ब्रह्मचर्य के वर्णन हैं। प्रथम तीन वेदों
सें
सूक्ष्म
रीति से ब्रह्मचर्य का वर्णन है, पर चौथे वेद (अथर्वण)
में इसका उल्लेख बहुत सार-गर्मित रूप में किया गया है, जो आगे
यथास्थान दिया जायगा ।
वेदों के पश्चात् उपनिषदों की गणना है। हमारे कई उपनिषदों
में ब्रह्मचर्य-विषय की आख्यायिकायें आई हैं, और उन्हीं के अन्तर्गत इस सम्बन्ध के मनोहर उपदेश भी दिये गये हैं, जिन्हें हम
प्रसङ्ग-प्रसङ्ग पर पाठकों के लिये उपस्थित करेंगे ।
वेद तथा उपनिषदों के पश्चात् पुराण, रामायण, महाभारत
और विविध धर्मशास्त्र, प्रमाण-कोटि के ग्रन्थ हैं-इन अन्थों में
भी ब्रह्मचर्य की कथायें, पालन की शिक्षायें, विविध प्रशंसायें तथा
निश्चित की हुई. विधियाँ मिलती हैं । इसलिये ऐसी अवस्था
इसकी प्राचीनता में कोई सन्देह ही नहीं रह जाता। प्राचीन ग्रन्थों
में ऐसा कोई विरला ही ग्रन्थ होगा, जो ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में
अपना भिन्न मत रखता हो, और कुछ न कुछ उपदेश न देता हो ।
से
५०००
वर्ष पहले हमारी रामायण और महाभारत
के समय में भी अनेक पुरुप ब्रह्मचर्य के पालन में श्रादर्श स्वरूपहो
गये हैं। पुरुप ही नहीं, बहुत सी स्त्रियाँ भी इस अलौकिक धर्म
की दृढ़ अनुयायिनी थीं । हिन्दू-राजाओं के अधःपतन-काल में भी
उस ब्रह्मचर्य का दीपक कहीं-कहीं टिमटिमा रहा था। वास्तव में
ब्रह्मचर्य का इतिहास भारतीय सभ्यता के इतिहास से कम प्राचीन
नहीं है। इसका उत्थान और पतन सभ्यता के साथ ही साथ
होता आया ।
४. ब्रह्मचर्य की प्राचीनता
Reviewed by Tarun Baveja
on
November 20, 2021
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