भीष्म प्रतिज्ञा क्या थी और उन्होंने प्रतिज्ञा क्यों ली थी

भीष्म प्रतिज्ञा क्या थी और उन्होंने प्रतिज्ञा क्यों ली थी

चार वर्ष बीत गए। एक दिन राजा शान्तनु जमुना तट की तरफ घूमने गए तो वातावरण को अनैसर्गिक सुगन्धि से भरा पाया। उन्हें आश्चर्य हुआ कि ऐसी मनोहारिणी सुवास कहां से आती होगी। इस बात का पता लगाने के लिए वह जमुना तट पर इधर-उधर खोजने लगे कि इतने में अप्सरा-सी सुन्दर एक तरुणी खड़ी दिखाई दी। राजा को मालूम हुआ कि उसी सुन्दरी की कमनीय देह से यह सुवास निकल रही है और सारे वन-प्रदेश को सुवासित कर रही है। तरुणी का नाम सत्यवती था। पराशर मुनि ने उसे वरदान दिया था कि उसके सुकोमल शरीर से दिव्य गन्ध निकलती रहेगी।

गंगा के वियोग के कारण राजा के मन में जो विराग छाया हुआ था वह इस सौरभमयी कामिनी को देखते ही हवा में उड़ गया। उस अलौकिक सुन्दरी को पत्नी बनाने की इच्छा उनके मन में बलवती हो उठी। उन्होंने सत्यवती से प्रेम-याचना की। राजा को प्रेम-याचना के उत्तर में सत्यवती बोली-- "मेरे बाप मल्लाहों के सरदार हैं। उनको अनुमति ले लो तो मैं साथ चलने को तैयार हूं।" उसकी मीठी बोली उसके सौंदर्य के अनुरूप ही थी। पर केवट-राज बड़े चतुर निकले। राजा शान्तनु ने जब अपनी इच्छा उन पर प्रकट की तो दाशराज ने कहा-- "जब लड़की है तो इसका विवाह भी किसी-न-किसी से करना ही होगा। और इसमें सन्देह नहीं कि आपके जैसा सुयोग्य वर इसको और कहां मिलेगा? पर मुझे एक बात का वचन देना पड़ेगा।" राजा न कहा--"जो मांगोगे दूंगा, यदि वह मेरे लिए अनुचित न हो।" केवटराज बोले- "मेरी लड़की का पुत्र आपके बाद हस्तिनापुर के राज-सिंहासन पर बैठे। क्या इस बात का आप मुझे वचन दे सकते हैं ?" केवटराज की शर्त राजा शान्तनु को नागवार लगी। काम-वासना से राजा की सारी देह विदग्ध हो रही थी। फिर भी उनसे ऐसा अन्यायपूर्ण वचन देते न बना। 

गंगा-सुत को छोड़कर अन्य किसी को राजगद्दी पर बिठाने की कल्पना तक उनसे न हो सकी। निराश और उद्विग्न मन से नगर को लौट आए । किसी से कुछ कह भी न सके। पर चिन्ता उनके मन को कोड़े की तरह खाने जाने लगी। वह दिन-पर-दिन दुबले होने लगे। देवव्रत ने देखा कि पिता के मन में कोई-न-कोई व्यथा समाई हुई है। एक दिन उसने शान्तनु से पूछा--- "पिताजी, संसार का कोई ऐसा सुख नहीं जो आपको न हो । फिर भी इधर कुछ दिन से आप शोकातुर प्रतीत हो रहे हैं। आपका चेहरा पीला पड़ रहा है और शरीर दुबला हो रहा है। आपको किस बात की चिन्ता है ?" शान्तनु को सच्ची बात कहते जरा झेंप आई। फिर भी कुछ-न-कुछ तो बतलाना ही था। बोले--"बेटा ! तुम मेरे एकमात्र पुत्र हो। और युद्ध का तो मानो तुम्हें व्यसन-सा हो गया है। किसी-न-किसी दिन तुम युद्ध में जाओगे अवश्य । और संसार में किसी बात का ठिकाना नहीं है । परमात्मा न करे तुम पर कुछ बीत जाय तो फिर वंश का क्या होगा? इसीलिए तो शास्त्रज्ञ कहते हैं कि एक पुत्र का होना-न-होना बराबर है। मुझे केवल इसी बात की चिन्ता है कि वंश की यह कड़ी बीच ही में न टूट जाय।" यद्यपि शान्तनु ने गोलमोल बातें बनाई फिर भी कुशाग्न-बुद्धि देवव्रत ने ताड़ लिया कि पिता को चिन्ता का क्या कारण है। 

उन्होंने राजा के सारथी से पूछ कर पता लगा लिया कि उस दिन जमुना के किनारे केवटराज से क्या बात हुई थी। यह जानकर देवव्रत केवटराज के पास गए और अपने पिता के लिए सत्यवती को मांगा । केवटराज ने वही शर्त दुहराई जो उन्होंने शान्तनु के सामने रक्खी थी। देवव्रत ने कहा--- "यदि तुम्हारी आपत्ति का कारण यही है तो मैं वचन देता हूं कि मैं राज्य का लोभ नहीं करूंगा। सत्यवती का ही पुत्र मेरे पिता के बाद राजा बनेगा।" लेकिन केवटराज इससे सन्तुष्ट न हुए। उन्होंने दूर की सोची। बोले- "आर्यपुत्र, निःसन्देह आप बड़े वीर है। आपने आज एक ऐसा कार्य किया है जो राजवंशों के इतिहास में निराला है। अब आप ही मेरी कन्या के पिता बन जायं और इसे ले जाकर राजा शान्तनु  को ब्याह दें। मेरे मन में एक और सन्देह है। उसे भी दूर कर दें तो फिर मुझे कोई आपत्ति न होगी । "इस बात का तो मुझे पूरा भरोसा है कि आप अपने वचन पर अटल रहेंगे। किन्तु आपको सन्तान से मैं वही आशा कैसे रख सकता हूं ? आप जैसे वीर का पुत्र भी तो वीर ही होगा! बहुत संभव है कि वह मेरे नाती से राज्य छीनने का प्रयत्न करे । इसके लिए आपके पास क्या समाधान केबटराज का प्रश्न लाजवाब था। उसे संतुष्ट करने का यही मतलब हो सकता था कि देवव्रत अपने भविष्य का बलिदान कर दें। 

पितृभक्त देवव्रत विचलित न हुए। सोच-समझकर गंभीर स्वर में उन्होंने यह भयंकर प्रतिज्ञा की--"मै जीवन भर ब्याह न करूंगा--ब्रह्मचारी रहूंगा, ताकि मेरे सन्तान ही न हो।" किसी को आशा न थी कि तरुण राजकुमार ऐसा कठोर व्रत धारण करेंगे। खुद दाशराज के रोमांच हो आया । देवताओं ने फूल बरसाये। दिशायें “धन्य भीष्म, धन्य भीष्म" के घोष में गूंज उठीं। भयंकर कार्य करने वाले को भीष्म कहते हैं। देवव्रत न भयंकर प्रण किया था, इसलिए उस दिन से भीष्म ही उनका नाम पड़ गया । वाशराज ने सानन्द अपनी पुत्री को देवव्रत के साथ विदा किया। सत्यवती से शान्तनु के दो पुत्र हुए-चित्रांगद और विचित्रवीर्य । शान्तनु के देहावसान पर चित्रांगद और उनके मारे जाने पर विचित्रवीर्य हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे। विचित्रवीर्य के दो रानियां थीं अम्बिका और अम्बालिका । अम्बिका के पुत्र थे धृतराष्ट्र और अम्बालिका के पाण्डु । धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाये और पाण्डु के पाण्डव । महात्मा भीष्म शान्तनु के बाद से लेकर कुरुक्षेत्र-युद्ध के अन्त तक उस विशाल राजवंश के सम्मान्य कुलनायक और पूज्य बने रहे।

भीष्म प्रतिज्ञा क्या थी और उन्होंने प्रतिज्ञा क्यों ली थी भीष्म प्रतिज्ञा क्या थी और उन्होंने प्रतिज्ञा क्यों ली थी Reviewed by Tarun Baveja on April 17, 2021 Rating: 5

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