जीवन बदल देने वाली अनमोल बातें - भाग 5

जीवन बदल देने वाली अनमोल बातें - भाग 5

१२०१- दुर्लभ मनुष्य-चोला पाकर और वेद-शास्त्र पढ़कर भी यदि मनुष्य संसार में फँसा रहे, तो फिर संसार-बन्धन से छूटेगा कौन?


१२०२- काम, क्रोध, लोभ और मोह को छोड़कर आत्मा में देख कि मैं कौन हूँ। जो आत्मज्ञानी नहीं हैं, जो अपने स्वरूप या आत्मा के सम्बन्ध में नहीं जानते, वे मूर्ख नर्कों में पड़े हुए सड़ते हैं। 
१२०३-जिसे किसी चीज की जरूरत नहीं, वह किसी की खुशामद क्यों करेगा? निःस्पृह के लिये तो जगत् तिनके के समान है। इसलिये सुख चाहो तो इच्छाओं को त्यागो।

१२०४- जो जितना छोटा है, वह उतना ही घमण्डी और उछलकर चलने वाला है, जो जितना ही बड़ा और पूरा है, वह उतना ही गम्भीर और निरभिमानी है, नदी-नाले थोड़े-से जलसे इतरा उठते हैं; किंतु सागर, जिसमें अनन्त जल भरा है, गम्भीर रहता है

१२०५- अभिमान या अहंकार महान् अनर्थों का मूल है। यह नाश की निशानी है।

१२०६- यह राज्य और धन-दौलत क्या सदा आपके कुल में रहेंगे या आपके साथ जायेंगे? विचारिये तो सही।

१२०७- हे मनुष्य ! जोश में आकर इतना श जोश-खरोश न दिखा; इस दुनिया में बहुत-से दरिया चढ़-चढ़कर उतर गये-कितने ही बाग
लगे और सूख गये।

१२०८- हे मनुष्य ! मौत से डर, अभिमान त्याग।

१२०९- मनुष्य के घमण्ड का कुछ ठिकाना है—किसी को कुछ नहीं समझता । मौत ने इसे लाचार कर रखा है, नहीं तो यह ईश्वर को भी कुछ नहीं समझता।

१२१०- अपने प्रबल शत्रु अभिमान का नाश करो।

१२११- मनुष्य को जो माँगना हो, सर्वशक्तिमान् भगवान से माँगना चाहिये, वही सबकी इच्छा पूरी कर सकता है।

१२१२- हे दास ! राम-जैसा मालिक तेरे सिर पर खड़ा है, फिर तुझे क्या अभाव है ? उसकी कृपा से ऋद्धि-सिद्धि तेरी सेवा करेंगी और मुक्ति तेरे पीछे फिरेगी।

१२१३- अगर सेवक दुखी रहता है तो परमात्मा भी तीनों कालों में दुखी रहता है। वह दास को कष्ट में देखते ही क्षणभर में प्रकट होकर उसे निहाल कर देता है।

१२१४- जिसकी गाँठ में राम हैं, उसके पास सब सिद्धियाँ हैं। उसके आगे अष्ट सिद्धि और नौ निधि हाथ जोड़े खड़ी रहती हैं।

१२१५- जैसे सूर्य में रात और दिन का भेद नहीं है, वैसे ही विचार करने पर अखण्डचित्स्वरूप केवल शुद्ध आत्मतत्त्व में न बन्धन है और न तो मोक्ष। कितने आश्चर्य की बात है, कि प्रभु को जो हमारे आत्मा के आत्मा हैं, हम पराया मानकर बाहर-बाहर ढूँढ़ते फिरते हैं।

१२१६- माँझी की अहसान मेरी बला उठाये, मैंने तो अपनी नाव ईश्वर के नाम पर छोड़ दी है और उसका लंगर भी तोड़ दिया है।

१२१७- जब मुझे बुद्धिमानों की सोहबत से कुछ मालूम हुआ। तब मैंने समझा कि मैं तो कुछ भी नहीं जानता।

१२१८- हे मलिन मन ! तू पराये दिल को प्रसन्न करने में किसलिये लगा रहता है ? यदि तू तृष्णा को छोड़कर संतोष कर ले, अपने में ही संतुष्ट रहे, तो तू स्वयं चिंतामणिस्वरूप हो जाय। फिर तेरी कौन-सी इच्छा पूरी न हो?

१२१९- जब आँखों में प्यारे कृष्ण की मनमोहिनी छवि समा जाती है, तब उसमें और किसी की छवि के लिये स्थान ही नहीं रहता।

१२२०- जिस तरह सराय को भरी हुई देखकर उसमें कोठरियाँ खाली न पाकर, मुसाफिर लौट जाते हैं, उसी तरह नयनों में मनमोहन की बाँकी छवि देखकर संसारी मिथ्या खूबसूरतें आँखों के पास भी नहीं फटकतीं।

१२२१- जिस सुख के लिये मनुष्य इतनी आफतें उठाता है, उस सुख का सच्चा स्रोत तो स्वयं उसके दिल में मौजूद है।

१२२२- यों तो संसार में जरा भी सुख नहीं। सर्वत्र भय-ही-भय है, पर दुष्ट और नीचों का भय सबसे भारी है।

१२२३- अगर आपको साँप डॅसे, बिच्छू काटे और हाथी मारे तो कुछ हर्ज मत समझो। आग में जलने, जल में डूबने और पहाड़ से गिरने में भी कोई हानि न समझो, ये सब भले हैं। इनसे हानि नहीं, हानि और खतरा है, दुष्ट की संगति से, इसलिये दुर्जन की सोहबत मत करो।

१२२४- हमारी सुबुद्धि हमसे कह रही है, कि मनरूपी शैतान के भरमाने में मत आओ। मन की राह पर न चलो, बल्कि मन को अपनी राहपर चलाओ । सच्चा सुख वैराग्य में ही है। इस महावाक्य को क्षणभर भी न भूलो।

१२२५- कमल के पत्तेप र ठहरी हुई जल की बूंद के समान क्षणभङ्गुर प्राणों के लिये, मूर्खतावश धनमद से निःशंक धनी मनुष्यों के सामने बेहया
होकर अपनी तारीफ आप करने का घोर पाप करने वाले हम लोगों ने कौन-सा पाप नहीं किया?

१२२६- जिस तरह पानी का बुलबुला उठता और क्षणभर में नष्ट हो जाता है, उसी तरह आदमी पैदा होता है और क्षणभर में नष्ट हो जाता है।

१२२७- यह मनुष्य उसी तरह अदृश्य हो जाएगा, जिस तरह सबेरे का तारा देखते-देखते गायब हो जाता है।

१२२८- जिस तरह देखते-देखते हौज का पानी मोरी की राह से निकलकर बिला जाता है, उसी तरह यह जीवात्मा देह से निकल जाएगा, दस-पाँच दिन की देर समझिये।

१२२९- ऐसे चंचल जीवन के लिये अज्ञानी मनुष्य नीच-से-नीच कर्म करने में संकोच नहीं करता-यह बड़ी ही लज्जा की बात है। अगर मनुष्यों को हजारों, लाखों बरस की उम्र मिलती अथवा सभी काकभुसुण्डि होते, तो न जाने मनुष्य क्या-क्या पापकर्म न करता?

१२३०- मनुष्यों ! आँखें खोलकर देखो और कान लगाकर सुनो ! मिट्टी और पत्थर अथवा लकड़ी वगैरह की बनी चीजों की कुछ उम्र भी है, पर तुम्हारी उम्र कुछ भी नहीं। अतः इस क्षण-स्थायी जीवन में पापकर्म न करो।

१२३१- हे भाई ! कैसे कष्ट की बात है ! पहले यहाँ कैसा राजा राज करता था, उसकी राजसभा कैसी थी, उसके यहाँ कैसे-कैसे शूर, सामन्त और सेना एवं चन्द्रानना स्त्रियाँ थीं, पर आज सब सूना
सबको काल खा गया।

१२३२- जिन मकानों में तरह-तरह के बाजे बजते और गाने गाये जाते थे, वे आज खाली पड़े हैं। अब उन पर कौवे बैठते हैं।

१२३३- जिसे सूर्य कहते हैं, वह भी एक ऐसा चिराग-दीपक है, जो हवा के सामने रखा हुआ है और अब बुझा, अब बुझा हो रहा है, तब औरों की तो बात ही क्या? संसार की यही दशा है।

१२३४- एक दिन इस जगत का ही अस्तित्व नहीं रहेगा, तब और किसकी आस्था की जाय? यह जगत् ही भ्रममात्र है !

१२३५- बारी-बारी से सभी प्यारे और मित्र चल बसे ! अब तेरा नंबर भी नित्य निकट आ रहा है।

१२३६- काल-देवता अपनी पत्नी काली के साथ, संसाररूपी चौपड़ में दिन-रातरूपी पासों को लुढ़का-लुढ़काकर और इस जगत के प्राणियों की गोटी बना-बनाकर खेल रहा है।

१२३७- मनुष्य-जीवन बहुत ही थोड़ा है। इसलिये मनुष्य को जबतक दम रहे सब कुछ तजकर एकमात्र परमात्मा का भजन करना चाहिये।

१२३८- जिस तरह कच्चे घड़े को फूटते देर नहीं, उसी तरह इस शरीर को नाश होते देर नहीं।

१२३९- बाहरी युक्ति और तर्कोक द्वारा जो भगवान के अस्तित्व का निरूपण किया जाता है, वह केवल बाह्य-वाणी का विकास-मात्र है, उससे भगवान का यथार्थ बोध नहीं हो सकता।

१२४०- आज तुम्हारा शरीर आरोग्य है, आश्चर्य नहीं कल तुम बीमार होकर मरण-शय्यापर पड़े हो अथवा मर ही जाओ। इसलिये चेत करो, होश सँभालो और आगे की सफर का इसी क्षण बन्दोबस्त करो।

१२४१- जो यहाँ बोओगे वही वहाँ काटोगे । यहाँ अच्छा करोगे, तो वहाँ अच्छा पाओगे।

१२४२- यह जीवन सपने के समान है।

१२४३- जिस तरह रात के स्वप्नन को मिथ्या समझते हो, उसी तरह दिन के दृश्यों को भी मिथ्या समझो।

१२४४- इस दुनियाँ में काम बहुत है और उसका यह हाल है, कि पलक मारने भर का भरोसा नहीं। इस क्षणभर की जिन्दगी में आपको कौन-सा काम करना चाहिये, जिससे आगे की यात्रा में सुख-ही-सुख मिले। विचारिये तो सही।

१२४५- संसार में आकर दो काम कर लो-
(१) भूखे को भोजन दो और
(२) भगवान का नाम लो।

१२४६- जगत में तीन-छः (३६) की तरह और भगवान के चरणों में छ:-तीन (६३) की तरह रहो।

१२४७- संसारी माया-जाल में सुख नहीं है।संसार में जो सुखी दीखते हैं, वे वास्तव में दुःखी हैं। उनका सुख दिखावटी सुख है, सच्चा सुख नहीं।

१२४८- प्रेम में जो तन्मय हो जाते हैं उन्हीं का प्रेम-प्रेम है। बिना तन्मयता के प्रेम थोथा है।

१२४९- भगवान को जानने के लिये चरित्र की शुद्धि अत्यन्त आवश्यक है। विशुद्ध चरित्र हुए बिना कोई भी उनको न तो पहचान ही सकता है और न देख ही सकता है।

१२५०- ईश्वर-उपासना करने वाले को सबसे पहले अपने चित्त और इन्द्रियों को उनके विषयों से हटाकर अपने अधीन कर लेना चाहिये।
जीवन बदल देने वाली अनमोल बातें - भाग 5 जीवन बदल देने वाली अनमोल बातें - भाग 5 Reviewed by Tarun Baveja on January 10, 2021 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.