पानी कब पिएं कब ना पिएं


            "महान उपकारी जल तत्व"

   जल कितनी सर्व सुलभ वस्तु है, किंतु जीवनशक्ति के लिए कितनी बहुमूल्य, कितनी उपयोगी। ईश्वरीय सृष्टि का यह नियम है, कि जीवन के लिए जो-जो तत्व बहुमूल्य हैं, वे उतनी ही आसानी से सर्व सुलभ कर दिए गए हैं। जल, धूप, मिट्टी, वायु इत्यादि ऐसे ही बेशकीमती प्राण तत्व हैं।'


* रोग नाशक जल :--

   कम जल का परिणाम कब्ज होता है, तरावट कम हो जाती है और बदहजमी खुश्की रहने लगती है। रात-दिन में कम से कम अढ़ाई सेर जल शरीर में पहुँचाना चाहिए, जिससे अंदर की मशीन सुचारु रूप से काम कर सके। आंतरिक मशीनरी की रचना कुछ इस प्रकार है, कि दूध इत्यादि पेय तत्व जल्दी पचते हैं। ठोस भोजन भी दांतों और लार द्वारा जल से मिलकर दूध सरीखा बन जाता है। जो कम जल पीते हैं, उनका भोजन ठोस पड़ा रहता है और मंदाग्नि उत्पन्न करता है। जल पसीने के रूप में निकलकर त्वचा के सूक्ष्म रंधों को स्वच्छ रखता है। मूत्र के रूप में निकलकर अंदर की गंदगी, विष और अनावश्यक चीजों को बाहर निकालता है।
पर्याप्त जल लेने से त्वचा लाल रहती है, तरावट बनी रहती है, कब्ज नहीं होने पाता, मन प्रसन्न रहता है और रक्त पतला रहता है ।

   वेदों में जल रोग नाशक औषधि बताया गया है -

     आपो इद्धउ भेषजोरापो अभीव चातनाः ।
   आपः सर्वस्य भषजोस्तास्तु कृरावंतु भेषजम ॥

अर्थात जल ही परमौषधि है, जल रोगों का दुश्मन है, यह सभी रोगों को दूर करता है, इसलिए यह तुम्हारे सब रोगों को दूर करे।

अथर्व वेद में लिखा है --
'जल ही दवा है, जल रोगों को दूर करता है, जल सब का संहार करता है। इसलिए यह जल तम्हें कठिन रोगों के पंजे से छुड़ावे ।"

   भगवान ने स्वयं आदेश दिया है-  "जल से अभिसंचन करो, जल सर्वप्रधान औषधि है। इसके सेवन से जीवन सुखमय बनता है और शरीर की अग्नि भी आरोग्यवर्धक होती है।"

   वेदों में एक स्थान पर प्रार्थना में जल का इस प्रकार उल्लेख किया गया है -- "जल हमको सुख दे, सुखोपभोग के लिए हमें पुष्ट करे, बड़ा और दृढ़ करे। जिस प्रकार माताएं अपने दुधमुंहे बच्चों को दूध पिलाती हैं, हे जल ! उसी प्रकार तुम हमें अपना मंगलकारी रस पान कराओ। तुम हमारे मलों का नाश करो, और योग्य संतान प्राप्त करने में सहायक हो। हे परमेश्वर ! हम तुमसे अन्नादिक पदार्थों के स्वामी, मनुष्य मात्र के रक्षक तथा रोग मात्र की औषधि जल माँगते हैं।

   जल में अमृत है, जल में औषधियाँ हैं। हे ईश्वर ! दिव्य गुणों वाला जल हमारे लिए सुखकारी हो, अभीष्ट पदार्थों की प्राप्ति करावे। हमारे पीनेक्षके लिए हो, संपूर्ण रोगों का नाश करे तथा रोगों से उत्पन्न होने वाले भय को न उत्पन्न होने दे और निरंतर हमारे सामने बहे ।

   "हे परमात्मा ! मुझ में जो पाप ( बाहर या भीतर ) हैं, मैंने जो द्रोह, विश्वासघात किया है या मैंने जो अपशब्द कहे हैं या मैं जो झूठ बोलता हूँ,
उन सबको जल बहा ले जाए।"

* जल के अमृतोमय गुण :--

   जल में पौष्टिक एवं रक्षात्मक तत्व प्रचुरता से विद्यमान हैं। शीतलता, तरलता, हल्कापन एवं स्वच्छता इसके प्राकृतिक गुण है। भ्रम, क्लाति, मूर्छा, पिपासा, तंद्रा, वमन, निद्रा को दूर करना, शरीर को बल देना, उसे तरावट देकर तृप्त करना, हृदय को प्रफुल्लित रखना, शरीर के दोषों को दूर करना, छ: प्रकार के रसों को प्रदान करना और प्राणियों के लिए अमृततुल्य होना, आंतरिक मल पदार्थों को धो डालना, स्नान द्वारा बाह्य शरीर को स्वच्छ बनाना, शरीर के विजातीय तत्वों का (मूत्र,
पसीना) बाहर निकालना, आमाशय, गुर्दो, त्वचा को स्वच्छ और क्रियाशील बनाना, शरीर में खाद्य का काम देना आदि-आदि। जल के कुछ गुण हैं।

   मानव शरीर में ६६ प्रतिशत जल ही है। खाद्य पदार्थों के पश्चात हमारा शरीर जल पर ही निर्भर रहता है। केवल जल पीकर हम एक मास बखूबी जीवित रह सकते हैं। हमारे ही शरीर को नहीं, वनस्पतियों का भी यह जीवन-दाता है। जल में रहने वाले जीवों का तो यही जीवनाधार है। पृथ्वी जल-तत्व से ही उत्पन्न हुई है।

   गीता में भगवान ने निर्देश किया है- "रसोऽहमप्सु कौन्तेय" (७-८) हे अर्जुन ! मैं जल में रस रूप में रहता हूँ । अर्थात जल में जीवन चलाने वाला जो रस (प्राण) है, वह मैं हूँ।

   जल में और कई विशेषताएँ हैं, जैसे - गर्मी सोख लेने की शक्ति, चीजोंहको अपने में मिला लेने और रूप परिवर्तन की शक्ति। शरीर के विकारों को धो डालने के लिए तरल रूप में इसका उपयोग किया जाता है। यह शरीर से विषैले यूरिक ऐसिड और आकजेलिक ऐसिडों को निकाल बाहर करता है।

* दैनिक जीवन में जल का प्रयोग - दैनिक जीवन में पर्याप्त जल का प्रयोग करना चाहिए। प्रात:काल
उषा पान आधे सेर जल से लेकर सायंकाल सोने से पूर्व तक ढाई सेर तक जल शरीर में पहुँचाना चाहिए। भोजन करने से आध घंटे पूर्व आध सेर जल का प्रयोग गुणकारी है। जल धीरे-धीरे स्वाद सहित समुचित लार सम्मिश्रित कर दूध की भाँति पिएँ और "यह जल मुझे स्वास्थ्य, बल, स्फूर्ति जीवन देगा" ऐसी पवित्र भावना मन में रखें।

   भोजन के आध घंटे पश्चात जल पीना प्रारंभ करें और घंटे भर के अंतर से पाव-पाव भर शीतल जल पीते रहें। गर्मियों में अधिक जल की आवश्यकता होती है। उपवास काल में पर्याप्त जल का उपयोग करने से अंदर की मशीनरी अच्छी तरह धुल जाती है। यदि नीबू का रस मिश्रित कर लिया जांए, तो ओर भी गुणकारी है। प्रतिदिन सोने से पूर्व आध सेर जल पिया करें।

* जल कब न पिएँ :-- जलपान के कुछ आवश्यक नियम डा० लक्ष्मीनारायण टंडन ने इस प्रकार दिये हैं। आप लिखते हैं, "हमें यह भी जानना चाहिए, कि जल कब न पीना चाहिए -

(१) भोजन के तुरंत पहिले या तुरंत बाद जल न पिएँ ।

(२) पानी पीकर तुरंत पेशाब नहीं करना चाहिए । 

(३) ऐनिमा लेने के १५ मिनट पूर्व या १५ मिनट पश्चात तक जल न पिएं ।
(४) चिकनी चीजें दूध मलाई, मक्खन, घी, तथा मेवे, भुने चने, फल, मिठाई आदि के बाद जल न पिएँ। खीरा ककड़ी, खरबूजा, इत्यादि के ऊपर जल न पिएँ हैजा होने का भय है। फल आदि के ऊपर जल पीने से सर्दी, नजला, जुकाम इत्यादि हो सकता है ।
(५) सोकर उठने पर तुरंत पानी पीने से जुकाम, सर दर्द तथा तबियत भारी होने का डर रहता है ।
(६) गर्म चीजों चाय, दूध आदि के ऊपर जल न पिएँ ।
(७) जुलाब आने पर जल न पिएँ, क्योंकि; तब आंत कमजोर होती हैं और मल बाहर फेंकने का काम करती हैं ।
(८) स्त्री संग के पश्चात तुरंत जल न पिएँ, क्योंकि शरीर यकायक गर्म और सनसनाहट के बाद स्तब्ध-सा हो चुकता है। अत: तुरंत ठंडक पहुँचाना ठीक नहीं ।
(९) व्यायाम, कड़ी धूप, कठिन परिश्रम या लू के बाद तुरंत जल न पिएं। गर्मी सर्दी एक साथ पहुँचाना ठीक नहीं है।"

   उपरोक्त अवसरों को छोड़कर पर्याप्त जल का प्रयोग करें। बुखार में जल गर्मी कम कर देता है। ठंडा पानी रक्त चाप घटाता तथा त्वचा के रंध्रों को क्रियाशील बनाता है, स्नायु तथा नाड़ियों को हल्के तौर पर प्रभावित करता है और शरीर का पोषण करता है।

पानी कब पिएं कब ना पिएं पानी कब पिएं कब ना पिएं Reviewed by Tarun Baveja on October 30, 2020 Rating: 5

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