प्राकृतिक आहार से सभी रोगों को दूर करें

    "प्राकृतिक आहार"
    
* फल, शाक, अनाज और तरकारियाँ :--

   अपने प्राकृतिक रूप में आहार पूर्ण पौष्टिक एवं आयु बल प्रदान करने वाला होता है। पशु-पक्षी जलचरों में सर्वत्र बिना पके हुए नैसर्गिक रूप में आहार चबाकर खाने की प्रथा है। प्रकृति जब किसी जीव को उत्पन्न करती है, तो स्वयं नैसर्गिक रूप में उसके आहार का भी प्रबंध करती है। प्रत्येक जीव के भोजन की व्यवस्था हमें प्रकृति के आँचल में मिल जाती है।


   साधारणतः जीवधारी दो प्रकार के हैं :--
(१) मांसाहारी ।
(२) शाकाहारी या फलाहारी ।

   मांसाहारियों की श्रेणी में वे हिंसक जीव जंतु
आते हैं, जो छोटे जीवों का शिकार करते हैं और कच्चे मांस पर निर्वाह करते हैं।

   मनुष्य दूसरी श्रेणी का (अर्थात शाकाहारी) जीव है। उसका मुख्य खाद्य अन्न, फल और तरकारियाँ हैं। प्रकृति फल खाने का आदेश देती हैं, उसके प्रति मानव के मन में सहज, आकर्षण है। फलों की जीवनदायनी शक्ति, प्रचुरता में पाए जाने वाले विटामिन और रासायनिक लवण हमारा सर्वोत्तम आहार बनाते हैं। फल साक्षात अमृत सदृश है। अन्न के जीवाणु तत्व तो अग्नि पर जलाने, भूनने, सेकने से नष्ट भी हो जाते हैं। किंतु फलों के लिए इस प्रकार की कोई आवश्यकता नहीं होती। प्रकृति
स्वयं उन्हें ऐसे प्राणतत्वों से परिपूर्ण करके भेजती है, कि उन्हीं के बल पर मनुष्य पूर्ण स्वस्थ रह सकता है।

   फलाहार ऋषियों, विचारकों दार्शनिकों तथा मानसिक कार्य करने वालों का सर्वोत्तम आहार है। हल्का, मृदु, रोग नाशक, स्फूर्तिदायक और प्राण शक्ति से भर देने वाला प्राकृतिक भोजन है। शीघ्र पाची होने के कारण फलाहारी का स्वास्थ्य, यौवन, सौंदर्य और रोगों से युद्ध करने की शक्ति बनी रहती है।

* फल तथा मेवे :--

   फलाहार के अन्तर्गत हम दो प्रकार के विभाग कर सकते हैं- फल तथा मेवा। फलों में ताजगी तथा तरलता रहने के कारण वे दूसरे वर्ग की अपेक्षा शीघ्र पाची हैं। कुछ फल रसीले होते हैं। जल का मिश्रण होने केक्षकारण इनका पाचन आसान है। इस वर्ग में नारंगी, अंगूर, आम, टमाटर,
मीठा, खट्टा, नीबू, मौसमी, गन्ना इत्यादि आते हैं। इनका रस अमृत संजीवनी तुल्य है। इससे पेट में भारीपन नहीं होता, जीर्ण कब्ज दूर हो जाता है। जिससे जितना बन पड़े रसीले फल अवश्य प्रयोग में लाने चाहिए। बाजार की मिठाई मत खाइए, संतरे, आम, अंगूर, मौसमी खाइए।

   दूसरी श्रेणी में वे फल आते हैं, जिनमें गूदा अधिक है। ये देर से पचते हैं। पर पौष्टिक हैं- अमरूद, अंजीर, नासपाती, सेब, बेल, शरीफा, ककड़ी, खरबूजा ,तरबूजा, बेर, पपीता, केला, इत्यादि अपने-अपने स्थान पर पौष्टिक हैं। इनसे रासायनिक लवण पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं।

   फलों की दूसरी श्रेणी मेवे हैं। मेवा में किशमिश, बादाम, पिस्ता, अखरोट, काजू, गिरी, मुनका, बेल, छुहारा, चिलगोजे, सूखे अंजीर आते हैं। बादाम और मूंगफली इत्यादि पौष्टिक हैं। इनमें प्रोटीन और चिकनाई विशेष रूप में होते हैं। मेवों के रासायनिक विश्लेषण से विदित होता है, कि इनमें चिकनाई, कैल्शियम ( चूना), लोहा इत्यादि प्राकृतिक लवण प्रचुर मात्रा में होते हैं। इनमें कोई मिलावट या गंदगी का भी भय नहीं रहता। उन्हें चाहे कच्चे खाएं सा पीसकर लें। समान गुणकारी हैं। मेवों का प्रयोग करते हुए यह न मानना चाहिए, कि ये दुष्पाच्य हैं। ये दूध की अपेक्षा आठ नौ गुने पुष्टिकारक हैं।

* कुछ उत्कृष्ट फल :--

   कुछ फलों का विशेष रूप से उल्लेख करना
आवश्यक है। सर्व प्रथम नीबू को लें। नीबू चाहे मीठा हो, खट्टा हो, या मौसमी हो परम उपकारी फल है। इसके रस से पेट का पाचन दुरुस्त होता है और मंदाग्नि नहीं होने पाती। प्रतिदिन कागजी नीबू के जल से कुल्ले करने से रस को मसूडों पर मलने से दांत ठीक हो जाते हैं और मसूड़ों से रक्त नहीं आता। प्रात:काल नीबू के रस को गर्म जल में सेवन करने से कब्ज दूर होता है, त्वचा स्वच्छ और सुंदर निकल आती है ।

   अंगूर में पोटेशियम, लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस, गंधक, सिलिकन आदि महत्वपूर्ण खनिज तत्व होने के कारण इसमें आरोग्य दायक शक्ति है। अंगूर की शक्कर सरलता से पच जाती है। अंगूर का रस पीने से अंत: मार्ग की सफाई होती है, रक्त वृद्धि और रक्त शुद्धि होती है। रोगियों को मजबूत बनाने में इस फल का सर्वाधिक महत्व है।

   पोषण के लिए संतरे खाया कीजिए। संतरे और नीबू में विटामिन ए०, बी०, सी०, और डी० पाए जाते हैं। विटामिन सी० के अभाव में सिर दर्द, बेचैनी, पाचन की खराबी, दांतों के विकार, अंगों के जोड़ों की कमजोरी, स्कर्वी नामक रोग हो जाता है। संतरे के प्रयोग से इस रोग की रोक थाम हो जाती है।

   पपीता कब्ज दूर करने की रामबाण औषधि है। खीरा, ककड़ी इत्यादि का भी इसमें विशेष महत्व है। फलों में टमाटर अतीव उपयोगी एवं गुणकारी पदार्थ है। वह मंदाग्नि को दूर कर पेट की तजनित शिकायतें दूर करता है। टमाटर में प्राकृतिक लवण भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं। लोहे की मात्रा दूध से दूनी होती है और सेब, संतरे, अंगूर, खरबूजे और ककड़ी में मिलने वाले लोहे से अधिक हैं। चूने में यह सेब और केले से श्रेष्ठ है। यह सभी रोगों में हितकर है।

   आम में खाद्य तथा रोग नाशक रासायनिक तत्वों की प्रचुरता होने के कारण शरीर को पुष्ट और निरोगी बनाने में इसका बड़ा महत्व है। इसमें क्षारों और विटामिनों का आधिक्य होता है। शरीर के अनेक रोग विशेषतः क्षार अथवा विटामिन की कमी के कारण हो जाते हैं और बहुत से रक्त में अम्लता बढ़ जाने से आम रक्त में क्षारों को बढ़ा कर अम्लता को दूर कर देता है। आम एक प्राकृतिक खाद्य है, जिसमें शर्करा स्वाभाविक रूप में रहती है। आम रस के शरीर में पहुँचते ही रक्त बनना आरंभ हो जाता है, जो पाचन शक्ति गरिष्ठ खाद्यों के प्रयोग में लाने से क्षीण हो जाती है। वह पुनः तीव्र हो जाती है। आम के साथ दूध का प्रयोग कर आम्र कल्प करें। जिससे दुर्बलता, रक्ताभाव, स्नायुदौर्बल्य, धातुदौर्बल्य, अग्निमधि, आरंभिक अवस्था का क्षय, अनिद्रा, रक्तचाप की कमी या अधिकता, गठिया, दमा, हृदय की कमजोरी इत्यादि बीमारियाँ दूर होती हैं। आम मीठे, पतले रस वाले ( चूसने वाले ) ही लीजिए । डाल के आमों में अमृत तत्व विशेष मात्रा में मौजूद रहते हैं। चूसने से पर्याप्त थूक का मिश्रण हो जाता है, इसलिए जल्दी पचता है। चाकू से काट कर खाया जाने वाला आम यदि खूब चबा-चबा कर स्वाद के साथ धीरे-धीरे खाया जाए, तो समान गुणकारी है।

   बेल देखने में कठोर पर गुणों में जादू जैसा है। यह कब्ज दूर कर कोठे को साफ कर उसे सजीव बनाता है। पतले दस्तों में दिए जाने पर यह मल को बाँधता है। नाशपाती रेचक है। इसके रस की प्राकृतिक मिठास शरीर द्वारा तुरंत उपयोग में आ जाती है। यह आँतों में एकत्रित पुराने आँव को भी निकालता है। टमाटर, मौसमी, संतरे यदि खट्टे न हों, मीठे आम, खजूर श्रेष्ठ फल हैं। केला, नाशपाती सेब आदि कुछ फल कब्ज करते हैं। आँवले की हिंदू शास्त्रों में बड़ी महिमा है ।

प्राकृतिक आहार से सभी रोगों को दूर करें प्राकृतिक आहार से सभी रोगों को दूर करें Reviewed by Tarun Baveja on October 30, 2020 Rating: 5

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