फलों की रोग निवारक शक्तियाँ
फलों में प्रकृति ने जीवन शक्ति की अभिवृद्धि के लिए उत्कृष्ट आहार दिया है। भर पेट लें, मिठाई के स्थान पर फल खरीदा करें। यदि बच्चों में मिठाई के स्थान पर फल खाने की आदत डाली जाए, तो बड़ी शुभ और स्वास्थ्यवर्धक है।
श्री एडोल्फ जुस्ट का कथन है, "फलों विशेषकर मेवों का भोजन शरीर को सब प्रकार की शक्तियों से पूर्ण करता है। उसकी मानसिक शक्तियाँ उन्नत होती हैं और देवताओं की सी क्षमता प्राप्त होती है। प्रकृति में जो सर्वांग सुंदर पौष्टिक तत्व है, वह फलों में भर दिया गया है।"
महात्मा गाँधी जी की सलाह मानिए, "ऋतु के फल जितने मिल सकें खाएं। आम के मौसम में आम, जामुन के मौसम में जामुन, अमरूद, पपीता, संतरा, अंगूर, खट्टे-मीठे नीबू, मौसमी इत्यादि फलों का उचित उपयोग होना चाहिए। फल प्रातः खाना अच्छा है। जिनका खाने का वक्त जल्दी का है, उन्हें सवेरे केवल फल खाना चाहिए।
प्राकृतिक चिकित्सा के आचार्य श्री विठ्ठल दास मोदी के विचार देखिए, "फलों में न श्वेतसार होता है, न चिकनाई, प्रोटीन की मात्रा बहुत कम होती है पर उनमें विटामिन, प्राकृतिक लवण और मिठास की प्रधानता रहती है। इस मिठास के कारण फल पचा हुआ भोजन कहलाता है। स्वाद के लिए खट्टे रसों में शहद, किशमिश, मुनक्का, अंजीर आदि का रस भी मिलाया जा सकता है। फलों के रस कृमि नाशक होते हैं, उनके संपर्क में कीटाणु एक क्षण के लिए नहीं ठहर सकते। नीबू और खट्टे सेब
का रस तो इस काम को और भी तेजी से करता है। मोटापा और पित्त दोष में फल गुणकारी है। ज्वर के रोगी को यदि कोई भोजन दिया जा सकता है, तो वह फलों का रस ही है। जर्मनी में ऐसे रोगियों को किशमिश, मुनक्का आदि फलों को उबाल कर उसका पानी छानकर पिलाने की प्रणाली चली आ रही है। गुर्दे की बीमारी में फलों का रस शरीर शुद्धि में सहायक होता है। गठिया, अनिद्रा, कब्ज, पुराने सिर दर्द के रोगी आदि अधिकतर फलों का व्यवहार करें ।"
फलों में बीमारियों से चंगा करने की अद्भुत शक्ति है, जिसका परिचय ऊपर दिया गया है। फलों के प्रति आरंभ से ही बच्चों में रुचि उत्पन्न करनी चाहिए। छोटे बच्चों को ऐसे फल आरंभ से ही दिया करें, जिन्हें दाँत से कुचल कर खा सकें। खीरा, ककड़ी, नाशपाती, सेब, अंगूर इत्यादि लाभदायक है।
फलों के अमृत सदृश रस का उल्लेख किया गया है। जिन फलों का रस आप सरलता से ले सकते हैं। वे अंगूर, अनार, संतरे, टमाटर, मौसमी इत्यादि हैं। फलों का रस सुपाच्य होने के कारण बच्चों को बीमारियों से बचाता है। गन्ने का रस भी अद्भुत शक्ति वाला है। फल भोजन के साथ अंत में खाने का नियम रखना चाहिए। अनन्नास, अनार, नीबू, नारंगी, सेब, अंगूर, मकोय, मुनक्का आदि के रस को पानी में मिलाकर ज्वर के रोगी को लाभ सहित दिया जा सकता है ।
* फलों के बीज पौष्टिक खाद्य :--
फलों के बीज खाद्य अन्न का काम दे सकते हैं। खरबूजे, तरबूज, खीरे, ककड़ी, कद्दू के बीज में ऊँचे और बढ़िया प्रकार की घुलनशील चिकनाई, प्रोटीन तथा प्राकृतिक लवण विद्यमान हैं। इन खाद्यों को भूनकर या तलकर खाने से इनके विटामिन नष्ट हो जाते हैं। अतएव इनके पेय काम में लाना श्रेयस्कर है। कच्चे बीजों को पीसकर बादाम पिस्ता इत्यादि मिश्रित कर ठंडाई के रूप में लें, तो शरीर के मांस-मज्जा की वृद्धि में सहायता मिलती है। इनकी चिकनाई में फास्फोरस मिला
होता है, जिससे स्नायु शक्ति की अभिवृद्धि होती है।
श्री टी० डा० ला० टोर अपने अनुभव वर्णन करते हुए लिखते हैं, ''मुझे जब इन बीजों का पुष्टिकारक गुण ज्ञात हुआ, तो मैं इन बीजों के छिलकों को पृथक करने की खोज में लगा। मैने बीजों को आटा पीसने वाली चक्की में पीसा तथा फिर पानी में उबालकर छानकर पिया। सिल बट्टे से भी यही काम लिया जा सकता है। इस प्रकार बने शर्बत में इच्छानुसार शहद या गुड़ मिलाया जा सकता है। लोग बादाम पिस्ते की ठंडाई बनाया करते हैं, पर इन बीजों की बनी ठंडाई किसी प्रकार कम नहीं है। मेवों की बनी ठंडाई बच्चों के लिए भारी पड़ती है, पर इन बीजों की ठंडाई तो उन्हें दूध की तरह या दूध की जगह नित्य दी जा सकती है।
बीज सहित फलों ( जैसे अमरूद, खीरा, ककड़ी ) को खाने की आदत डालनी चाहिए। बाजार से एकत्रित कर गर्मी में इन्हीं की ठंडाई सेकाम चलाया जा सकता है।
* तरकारियां अधिक लीजिए :--
तरकारी का दूसरा तात्पर्य है, खनिज लवणों का प्रयोग। लोहा, सल्फर, फास्फोरस, कैल्शियम इत्यादि आवश्यक लवण हम तरकारियों से प्राप्त किया करते हैं। तरकारी का रस भी फलों का नैसर्गिक गुण रखता है।
सलाद, पालक, मेथी, बथुआ, नैनुआ, पातगोभी, शलजम, मूली इत्यादि शाक विशेष गुणकारी हैं। इनमें खनिज लवण विशेषतः चूना अधिक मात्रा में रहता है। विटामिन 'ए०' इनमें अधिक रहता है। ये
शरीर के संरक्षक आहार तत्व हैं, इनमें कोई संदेह नहीं है। भोजन में क्षार की कमी होने से आंतें कमजोर होकर भीतरी झिल्लियाँ मृतप्रायः हो जाती हैं। किंतु सप्राण तरकारियों के प्रयोग से उनमें सजीवता लौट आती है। तरकारियों के छिलके खाद्य पदार्थ से परिपूर्ण होते हैं। इनमें विटामिन भी बहुत होते हैं। अत: जिन तरकारियों का उपयोग आप बिना छिलके उतारे कर सकें, उन्हें कदापि न छीलें। छिलके वह रक्षात्मक आवरण हैं, जिनमें प्राण शक्ति कूट-कूट कर रखी गई हैं।
साग तरकारियों का भोजन हल्का और सुपाच्य है। प्रतिदिन दोनों समय के भोजनों में एक पाव तरकारी की व्यवस्था प्रत्येक को रखनी चाहिए, क्योंकि; साग भाजियों का अवशिष्ट अंश क्षार धर्मी होता है। महात्मा गाँधी जी ने "आरोग्य की कुंजी" पुस्तक में स्वस्थ रहने के लिए एक पाव पकी और आधी छटाँक कच्ची तरकारी नित्य खाना आवश्यक बताया है। किंतु इनका अधिक प्रयोग कब्ज दूर करने में विशेष सहायक होता है।
* सलाद तैयार करें :--
कच्ची तरकारियों को खाने के लिए साग भाजियों को सलाद बना कर लेने की प्रथा पाश्चात्य देशों में चल रही है। अनेक सब्जियाँ ऐसी हैं, जिन्हें कच्चा ही खाया जा सकता है। पकाने से उनकी जीवनी-शक्ति नष्ट हो जाती है या जल भुनकर कम हो जाती है। इन सब्जियों में गाजर, मूली, लौकी, खीरा, अदरक, टमाटर, हरी मिर्च, हरा धनियाँ, प्याज, सलाद, पत्तागोभी, फूल गोभी, इत्यादि हैं। इनमें से प्रत्येक को कच्चा ही काटकर नीबू या टमाटर के साथ मिश्रित कर नमक मिर्च इत्यादि लगाकर खाया जा सकता है।
गाजर, मूली, अदरक तथा नीबू या टमाटर की खटाई सर्वोत्तम है। इनको बारीक-बारीक काट लीजिए अथवा कद्दूकस में कस लिजिए और सुविधानुसार मिर्च नमक मिश्रित कर लिजिए। फिर भोजन के साथ आध पाव जरुर लिया कीजिए।
तरकारियों और फलों के मिश्रित सलाद बड़े स्वादिष्ट होते हैं । ककड़ी, खीरा, अमरुद, केला, नाशपाती, पालक, हरा धनियाँ और नीबू टमाटर सब मिलाकर काम में लें बड़ा स्वादिष्ट होता है। इनमें खनिज लवण, चूना, लोहा, पारा, विटामिन अधिक होते हैं। प्रत्येक मौसम में कुछ न कुछ फल तरकारियाँ मिल सकते हैं, उन्हीं की सहायता से सलाद तैयार करने चाहिए।
रायते भी गुणकारी हैं। दही में जो सब्जियाँ जैसे कसा हुआ घीया, ककड़ी, खीरा, कचनार, बथुआ इत्यादि मिलायी जाएं, वे या तो बिल्कुल ही न उबाली जाएं या हल्की सी उबाल ली जाएं। दही में केला, 'सेब, नाशपाती इत्यादि भी मिला कर रायते तैयार किए जा सकते हैं।
नीबू प्राकृतिक लवण का खजाना है। इसकी खटाई में ठंडक उत्पन्न करने का विशेष गुण है। यह गर्मी से बचाता है। सलाद में इसका प्रयोग गुणकारी है। नीबू का रस पानी में मिलाकर पीने से कब्ज दूर होता है। नीबू विटामिन 'सी०' का भंडार है। इसी प्रकार टमाटर में पौष्टिक तत्व भरे हुए हैं। इसमें विटमिन 'सी०' बहुत होता है। विटामिन ‘ए०' भी होता है, जो घी, दूध, मक्खन में होता है। दो तीन छटांक टमाटर प्रतिदिन खाने से शरीर को पोषक तत्व मिलते रहते हैं। इसमें प्राकृतिक लवण भी बहुत होते हैं। लोहे की मात्रा दूध से दूनी होती है, जो सेब, केले और चावल से श्रेष्ठ ठहरता है। पोटाश में इसकी समता करने वाले दूसरे फल नहीं हैं। यह रक्त को स्वच्छ एवं मजबूत बनाता और हृदय दौर्बल्य को दूर करता है। इसके सेवन से क्षुधा तीव्र होती है और पाचन शक्ति सजीव बनती है।
आपका नित्य का भोजन कुछ इस प्रकार का हो सकता है। नाश्ते में मौसम का कोई अच्छा फल जैसे- आम, केला, नारंगी, अंगूर, टमाटर, ककड़ी, खरबूजा, बेर इत्यादि। जब ये वस्तुएं उपलब्ध न हो सकें, तो किशमिश, मुनक्का, खजूर सा कोई मीठा फल हो सकता है। दूध पाव भर और दस-पंद्रह बादाम अथवा मट्ठा, दही इत्यादि लिया जा सकता है। नाश्ता हल्का रहे और शीघ्र पाची हो अन्यथा दोपहर खुलकर क्षुधा प्रतीत न होगी। बिना क्षुधा खाने से विकार वृद्धि होगी।
दोपहर के भोजन में गेहूँ, बाजरा या मकई की रोटी, थोड़ा चावल, पावभर हरा सलाद और पकी तहरी, मठा या दही तथा मक्खन। दाल छिलकों सहित रहे, कच्ची तरकारियाँ भी खाई जा सकती हैं। जैसे- गाजर, मूली, खीरा, ककड़ी, प्याज, टमाटर, पालक, पातगोभी इत्यादि। इनमें खटाई के लिए नारंगी, नीबू, सिरका, रसभरी इत्यादि का रस मिश्रित किया जा सकता है। दही में केला, किशमिश, लौकी, बथुआ, खीरा इत्यादि मिलाकर रायता बना लिया करें।
सायंकाल का भोजन हल्का रहे। एक हरी, एक पकी तरकारी, रोटियाँ, दही और रसदार कुछ फल। रात्रि में सोने से पूर्व आध सेर दूध, जो अधिक गर्म न हो।

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