* जीवन रक्षक पदार्थ तथा उनका विवेक पूर्ण उपयोग :--
आप भोजन प्रयोग में ला रहे हैं, उसमें जीवन रक्षक तत्व मौजूद हैं, या नहीं ? आपका भोजन केवल जिह्वा की तृप्ति मात्र के लिए तो नहीं होता? अत्यंत खेद के साथ कहना पड़ता है, कि इसमें से अधिकांश भोजन सामग्री के विवेक पूर्ण चुनाव की ओर समुचित ध्यान नहीं देते। जो व्यक्ति भोजन के चुनाव में गलती करता है, वह अपने शरीर की हड्डियों, मांस पेशियों एवं रुधिर को पर्याप्त बल नहीं प्रदान कर सकता ।
हम मानते हैं, कि प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव और आदतें, भोजन इत्यादि एक प्रकार का नहीं हो सकता। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार उसमें आवश्यक परिवर्तन चलते रहते हैं, शरीर की बनावट में अंतर होता है और प्रत्येक व्यक्ति का स्वास्थ्य देखकर ही उसके भोजन के विषय में अंतिम निर्णय होना चाहिए। किंतु फिर भी हम ऐसा भोजन चुन सकते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए हितकारी सिद्ध हो। जिस पदार्थ से जीवन रक्षा होती है, वही शरीर के लिए उपयुक्त हैं। शेष सभी त्याज्य है।
भोजन का निर्णय मनुष्य के कार्य की दृष्टि में रखकर होना उचित है। जो व्यक्ति बौद्धिक परिश्रम में संलग्न रहते हैं, उनके निमित्त पौष्टिक पर हल्का सरल सुपच भोजन अपेक्षित है। इसके विपरीत शारीरिक श्रम करने वालों के लिए गरिष्ट, कार्बोज प्रधान, घी, दूध युक्त भोजन की आवश्यकता है। मानसिक परिश्रम करने वालों के लिए सबसे आवश्यक तत्व है-.वसा और प्रोटीन।
जीवन रक्षक भोजन में मुख्य ये तत्व हैं- शाक, तरकारियाँ, दूध, शुद्ध मक्खन और ताजे या सूखे फल। आटा आप कोई ले सकते हैं। प्रतिदिन भोजन में एक सलाद का क्रम अवश्य रहे। फल और तरकारियां छिलका सहित ही प्रयोग में लानी उत्तम हैं ।
यह मत समझिए, कि उपरोक्त रक्षात्मक भोजन मँहगा है, कदापि नहीं। इसमें व्यय अधिक नहीं है। अधिक खर्च तो उन वस्तुओं का होता है, जिनको हम स्वाद तथा क्षणिक प्रलोभन के वशीभूत होकर खाते हैं । कीमती चीजें हैं- मिठाई, नमकीन, चाट-पकौड़ी, विविध मांस, हलुवा, पनीर, अंडा, चाय इत्यादि। क्या जरूरत है, कि आपके सुबह के नाश्ते में चाय, बिस्कुट या नमकीन, मिठाइयां इत्यादि हों या दोपहर के खाने में दो अचार, मुरब्बे, पापड़, गोश्त इत्यादि हों। उत्तम पौष्टिक भोजन में आटा, दूध, घृत, तरकारियाँ, दाल-चावल चाहिए। यदि ये चीजें भी मँहगी हैं तो इन्हें फिजूल बर्बाद न करें। आवश्यकता के अनुसार उतना ही पकावें और खरीदें जितनी चाहिए। स्वास्थ्य को बिना खराब किए, ये चीजें सस्ती ही बैठेंगी। फल और तरकारियाँ, विशेषकर हरी पत्तीदार तरकारियाँ सबसे आवश्यक हैं। आप सस्ती तरकारियाँ- मेथी, पालक, मूली, शलजम लीजिए, सस्ते फल खूब खाइए। मँहगे फलों के स्थान पर अमरूद, टमाटर, नाशपाती, खीरा, गन्ना, ककड़ी खाइए। सूखे मेवों के स्थान पर सस्ते मेवे अखरोट, मूंगफली, खोपरा, किशमिश लीजिए ।
यदि विवेकपूर्वक आप भोजन का चुनाव करें, तो वह सस्ता और पौष्टिक हो सकता है। स्वाद तथा चटोरी आदतों वाला भोजन त्याग दीजिए। क्रीम, हलुवे तथा होटल की प्लेट लेना छोड़ दीजिए। चाट, पकौड़ी की ओर दृष्टि न कीजिए।
जीवन रक्षक भोजन के लिए इन चीजों की व्यवस्था कर रखिए। गेहूँ, चावल, पाँच तरह की दालें, अच्छा साफ गुड़, घी या मक्कखन, दूध, शाक, तरकारियां और कुछ सूखे मेवे। मौसम के फल खाया कीजिए। ऊँचे दर्जे के शक्ति उत्पादक पदार्थ ये हैं- अखरोट, बादाम, काजू, नारियल, चिरौंजी, पिस्ता, मूंगफली, किशमिश, खजूर, मुनक्का से उत्तम चीनी प्राप्त होती है। मुनक्का, किशमिश, अंजीर से उत्तम लोहा मिलता है।
मिर्च का प्रयोग त्याग दीजिए। यह उत्तेजक और पाचन शक्ति को निर्मल करने वाला मसाला है। यदि आप चाय, सिगरेट, पान, होटल, सिनेमा, चाट, पकौड़ी, मित्रों के साथ चटोरे भोजन छोड़ देंगे, तो रक्षात्मक भोजन खरीदने के निमित्त यथेष्ट धन बचा सकेंगे। अभक्ष्य पदार्थ खाकर आप क्यों आत्म-हत्या करते हैं, पौष्टिक अन्न लीजिए, जिनसे शरीर में बल, उत्साह और स्फूर्ति होती है, रोग दूर भागते हैं और कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। विलास, आरामतलबी और मिथ्या दर्प की वस्तुओं से रुपया बचाना आपके विवेक पर निर्भर है।
यदि संभव हो, तो जीवन रक्षक पदार्थों की मात्रा अधिक कर दीजिए और अधिक ऊंचे दर्जे की चीजें खरीदिए। साधारण भोजन के स्थान पर दूध, घी और ऊँचे प्रकार के मेवों से युक्त भोजन कीजिए। फलों की मात्रा में वृद्धि कर दीजिए। दूध दो बार पीजिए। भोजन में दही भी सम्मिलित कर लीजिए। अच्छा अन्न, भिन्न-भिन्न प्रकार की दालें, फल, मेवे खरीदिए।
द्रव्य खर्च करने का उत्तम तरीका यह है, कि आपको अपने प्रत्येक पैसे का अधिकतम लाभ, आनंद, मजा आए, शरीर और आत्मा प्रसन्न हो, आपके बच्चे, पत्नी और स्वयं आप शरीर से पुष्ट रहें। इसके लिए प्रत्येक पैसे का सदुपयोग कीजिए। ऐश-आराम, विलासता, फैशन, खान-पान में असंयम करना दूरदर्शिता और बुद्धिमानी नहीं है। शराब, गांजा, चाय, मांस में पैसा व्यय करना अपव्यय है।
मि० काबडेन ने सत्य ही निर्देश किया है -"दुनियां में अमीर-गरीब का भेद नहीं है। अमीर-गरीब का यथार्थ नाम मितव्ययी और अपव्ययी है। जो विवेकशील बचाने के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं, वे एक न एक दिन अवश्य समृद्ध बन जावेंगे और जिन्हें फूंकने उड़ाने का चस्का है, वे गरीब रहेंगे। खर्च के विषय में सावधान रहने वालों ने मिल, कारखाने और जहाज बनवाये हैं। एक तुम हो, जो शराब पीने और दूसरी बेवकूफियों में पैसे समाप्त कर देते हो।"
बेवकूफियों से केवल भोजन की ही नहीं, वस्त्र, मकान, मनोरंजन सबकी असावधानियों से बचिए। बेवकूफी हमारा सबसे बड़ा शत्रु है ।

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