गृहस्थ जीवन में संयम व नियम अर्थात ब्रह्मचर्य के लाभ


               "भारतीय गार्हस्थ्य जीवन"

   मनुष्य के कर्तव्यों की पूर्ति गृहस्थाश्रम द्वारा ही होती है। वास्तव में मनुष्य-जीवन के कर्तव्यों की पूर्ति तभी हो सकती है, जब गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर उसके नियमों का पालन करते हुए जीवन व्यतीत किया  जाये। अपना, परिवार का और समाज का कल्याण मनुष्य तभी कर सकता है, जब वह अपना गार्हस्थ्य जीवन सफल बना सके और अन्य आश्रमों की सफलता इसी पर निर्भर करती है। गार्हस्थ्य जीवन जिसने सफलतापूर्वक व्यतीत कर लिया वही धन्य है, क्योंकि; गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते ही मनुष्य पर ना-ना प्रकार के दायित्व और कर्तव्य आते हैं और उन्हीं की पूर्ति ही अन्त में चारों फल को देने वाली होती है।


   इस प्रकार, गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये सर्वप्रथम आवश्यकता यह है, कि मनुष्य सामर्थ्यवान हो तथा उसमें कर्तव्यों की पूर्ति की क्षमता हो। शरीर और मन से जो शक्तिशाली हो, वहीं तो इतना भार सम्भाल सकता है। यह भली-भांति याद रखना चाहिये कि गृहस्थाश्रम कमजोर व्यक्तियों के लिये नहीं है। जिसके शरीर और मन में इतनी शक्ति न हो, कि वह मनुष्य जीवन के कर्तव्यों की पूर्ति करे, वह गार्हस्थ्य जीवन से दूर रहे । बलहीन गृहस्थ समाज को दूषित करता है। वह अपना और अपनी सन्तान का भविष्य सत्यानाश करेगा, यह पहले ही निश्चित है। तो फिर गृहस्थाश्रम में प्रवेश कोन करे ? वह, जिसमें शारीरिक और मानसिक शक्ति परिपूर्ण हो, जो अपना और विश्व का कल्याण करने की क्षमता रखता हो,जो योग्य और पराक्रमी सन्तान उत्पन्न कर सके, जिसके पास यश, विद्या तथा बुद्धि हो और जो अपनी स्त्री के साथ धर्मानुसार आचरण करता हो। ऐसी अवस्था में पहली बात यही सामने आती है कि एक व्यक्ति जब तक कम-से-कम २५
वर्ष तक ब्रह्मचर्य धारण कर अपने उपर्युक्त गुणों को एकत्रित नहीं कर लेता, उसे गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश करने का कोई अधिकार नहीं। अतएव ब्रह्मचर्य गृहस्थाश्रम का मूल है।

   निस्सन्देह अखण्ड ब्रह्मचारी और गृहस्थ में बहुत
अन्तर है। लेकिन इन्द्रियों को अपने वश में रखते हुए तथा अपने कर्तव्यों की पूर्ति करते हुए जो गृहस्थ जीवन व्यतीत करता है वह तेजस्वी, ओजस्वी, मनस्वी, यशस्वी, तपस्वी, लक्ष्मीवान
ब्रह्मचर्य तथा बुद्धिमान हो सकता है, और साथ ही विश्व का कल्याण करते हुए वह ऐसी सन्तान पैदा कर सकता है, जो उसी की भांति पराक्रमी हो। इस प्रकार परिणाम यह निकला कि गृहस्थाश्रम में रहकर भी ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है और इसके द्वारा वह अपना और मानव जाति का कल्याण कर सकता है तथा सन्तान भी उसी प्रकार योग्य उत्पन्न कर सकता है। लेकिन यह योग्यता और शक्ति तभी प्राप्त हो सकती है, जब इसके पूर्व ही ब्रह्मचर्याश्रम के नियमों का पालन किया गया हो,क्योंकि कर्म करने के पूर्व शक्ति आवश्यक है और शक्ति को बनाये रखने से ही कर्म किया जा सकता है। अतः सफल गृहस्थ के लिये यह आवश्यक है, कि वह ब्रह्मचर्याश्रम के नियमों का पालन कर चुका हो और साथ ही अपने गार्हस्थ्य जीवन में भी नियमों का पालन करता रहे, क्योंकि; कल्याण के निमित्त
ही पुरुष विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करता है।

   एक समय था, जब लोग गृहस्थाश्रम में कल्याण के निमित्त प्रवेश करते थे और मानव जीवन सफल बनाते थे और आज युवकों की गृहस्थाश्रम में कितनी दुर्दशा है । विवाह करके ज्योंही आगे बढ़े और उनका मार्ग कण्टकाकीर्ण हो जाता है, पग-पग पर ठोकरें मिलती हैं, मृत्युपर्यन्त वे दुःख झेलते रहते हैं, समाज को रसातलकी ओर ढकेलते रहते हैं और अन्त में अपनी सन्तान को भी वही कुकर्म करने और वही कष्ट झेलने को विवश कर जाते हैं। देश के नौनिहाल तुम्हारी यह दुर्दशा! तुम क्या मानव जाति को उन्नत और विकसित कर सकते हो, जब तुम स्वयं अपना कल्याण करना तो दूर रहा, दुःख भी दूर करने में असमर्थ हो। इसका एकमात्र कारण यही है, कि बचपन से मनुष्य कुमार्ग से चलता है और गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिये जिस तप और शक्ति की आवश्यकता है, उसको वह प्राप्त नहीं कर पाता।

   संयम और नियम के साथ रहना ही गार्हस्थ्य जीवन में ब्रह्मचर्य है। बतलाया गया है कि 'सन्तानार्थंव मैथुनम्' सन्तान की कामना करके ही स्त्री सम्भोग किया जाये अन्यथा नहीं। स्त्री को केवल भोग्य सामग्री समझना मूर्खता है और पशु जीवन से भी बुरा है। ऋतुकाल में अपनी स्त्री के साथ नियमानुसार केवल सन्तान की कामना लेकर ही समागम करने वाला व्यक्ति गार्हस्थ जीवन में भी ब्रह्मचारी है।

   गार्हस्थ्य जीवन में स्त्री और पुरुष दोनों का समान अधिकार है। स्त्री सहधर्मिणी, अर्धाङ्गिनी और जीवनसहचरी है। शास्त्रानुसार दोनों एक ही शरीर के दो अङ्ग हैं। अतः सुखी गृहस्थ बनने के लिये दाम्पत्य जीवन पर ध्यान देना आवश्यक है, दम्पति का दुर्व्यसनी और विपयासक्त होना नाशकारी है। वेद में कहा गया है, कि जैसे शब्दों से अर्थोंका साथ, वाक्यका वाचक से तथा सूर्य और पृथ्वी का सम्बन्ध है, उसी प्रकार पति और पत्नी का सम्बन्ध है। विवाह होते ही दोनों एक हो जाते हैं, इसलिये एक को अपने से निकृष्ट या भोग्य सामग्री समझना भारी गलती है। कोई भी कार्य करना हो दोनों का सहयोग आवश्यक है।

   केवल ऋतुकाल में स्त्री समागम करना ब्रह्मचर्य के समान है। सारांश यह हुआ, कि गार्हस्थ्य जीवन में ब्रह्मचर्य व्रतका पालन नितान्त आवश्यक है।क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है, कि-'व्यर्थीकारण नियमित सहवास शुक्रस्य ब्रह्महत्या मवाप्नुयात्।' वीर्य को बेकार नाश करने से ब्रह्महत्या के समान पाप लगता है। फिर गृहस्थ सुखी कैसे रहें ? इसका परिणाम यह होता है, कि मनुष्य में दुर्बलता आ जाती है। विषयासक्तं रहने से विचार शक्ति लोप हो जाती है और फिर निरन्तर दुःख भोगना पड़ता है। विद्या, धन आदि रहने पर भी यदि मनुष्य स्वस्थ और सुखी नहीं है तथा रोगी सन्तान उत्पन्न होती है, तो उसका जीवन ही व्यर्थ रहा। संयम नहीं रहने से स्त्री बहुधा रोगों का शिकार हो जाती है और उसकी सुन्दरता और स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है। परिणाम यह होता है, कि परिवार दुःख का केन्द्र बन जाता है और मनुष्य कह बैठता है, 'घर स्त्री जंजाल है। यदि अपने में शक्ति न हो, तो खड़े होना और बैठना भी कठिन हो जाता है, गृहस्थाश्रम के कर्तव्यों की पूर्ति तो कठिनाइयों से भरी रहेगी ही।

   पहले कहा जा चुका है, कि गृहस्थाश्रम उन लोगों के लिये नहीं है, जो दुर्बलेन्द्रिय हैं। साथ ही यह भी बतला दिया गया है, कि ब्रह्मचर्याश्रम से गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उद्देश्य यह नहीं है कि मनुष्य वीर्यपात करना आरम्भ कर दे और थोड़े ही दिनों में २५ वर्षों को लगातार तपस्या को नष्ट कर दे। ब्रह्मचर्य व्रत का बराबर पालन करने से ही मनुष्य जीवन के उद्देश्य की पूर्ति हो सकती है। जैसा कि ऊपर कहा गया है, केवल योग्य सन्तान की उत्पत्ति की कामना लेकर ही ऋतु प्राप्त होने पर ही पति-पत्नी को सहवास करना चाहिये और फिर जब तक बच्चा ५ वर्ष का न हो जाये, दूसरी सन्तान की कामना न करे । इससे मा, बाप और बच्चे तीनों स्वस्थ और सानन्द रहेंगे। जो व्यक्ति इन्द्रियों के वशीभूत होकर कर्म करते हैं, वे लक्ष्मी, स्वास्थ्य, स्त्री तथा सन्तान से विहीन हो जाते हैं और फिर उनकी बड़ी दुर्गति होती है, ऐसा हमारे
ग्रन्थों में बतलाया गया है।

गृहस्थ जीवन में संयम व नियम अर्थात ब्रह्मचर्य के लाभ गृहस्थ जीवन में संयम व नियम अर्थात ब्रह्मचर्य के लाभ Reviewed by Tarun Baveja on October 31, 2020 Rating: 5

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