कौन सा आटा खाना चाहिए


                        "अन्नाहार"

 भारत में ऋषियों का भोजन दूध और फल ही रहे हैं। सभ्यता के आरंभ में मानव कच्चे गेहूँ और कच्चे चने इत्यादि खाकर रहा करते होंगे। कच्चे अन्न में सबसे अधिक पौष्टिक तत्व वर्तमान में रहते हैं। अन्न को भिन्न-भिन्न तरीकों से पीसने, कूटने, छानने और उनका छिलका दूर करने में प्राणशक्ति कम हो जाती है। बाजार में बिकने वाले अन्न यों भी सड़े गले, भीजे हुए और घुन लगे हुए होते हैं। उनका प्राणतत्व कीड़े पहले से ही चट कर लेते हैं। अतः पौष्टिक अन्न खरीदिए और यह जाँच कर लीजिए कि गेहूँ, ज्वार, चना, बाजरा इत्यादि में कुछ लगा हुआ तो नहीं है ? वे सड़े, घुने और बास वाले तो नहीं हैं ? आटा या तो स्वयं घर पर हाथ की चक्की से तैयार कीजिए अथवा कराइए। बिजली की चक्की में पिसा आटा प्राणशक्ति से शून्य हो जाता है। आटा बारीक न हो और उसमें से भूसा या दाल में से चोकर न निकाली जाए। दालें- उरद, मूंग, मसूर, अरहर इत्यादि छिलकेदार साबुत बनाई जाएँ तो पौष्टिक होती हैं। उबाले हुए गेहूँ, भूसी युक्त दलिया, कच्चे जौ, कच्चे गेहूँ श्रेष्ठ आहार हैं। चोकर और कनों के निकल जाने पर अन्न का बहुमूल्य भाग नष्ट हो जाता है। जो भूसी छिलके, चूरी इत्यादि पशुओं को खिलाई जाती है, वह पौष्टिक तत्व है।


   अत्र में चावल का स्थान महत्वपूर्ण है। चावल का दाना कोमल होने के कारण प्रकृति ने उसके ऊपर एक आवरण रखा है, इसलिए उसे हटाना पड़ता है। लेकिन कूटना इतना ही चाहिए, कि भूसी और चावल के मध्य का कन न निकल जाए। मशीन के द्वारा बनाए जाने वाले चावलों से बहुमूल्य तत्व नष्ट हो जाता है। अतः वे प्राणशक्ति से शून्य होते हैं।

  हिंदू के भोजन में दाल ही पौष्टिक पदार्थ है। महात्मा गांधी जी ने दाल के विषय में लिखा है, "बिना दाल की खुराक को अधूरी मानते हैं। मांसाहारी भी दाल खाता है। जिन्हें मजदूरी करनी पड़ती है और जिन्हें जरूरत भर को या बिल्कुल दूध नहीं मिलता उनका काम दाल के बिना नहीं चल सकता। दाल हमारा पौष्टिक आहार है।"

   निम्नलिखित खुराक में उपर्युक्त सब तत्व प्राप्त हो सकते हैं- गेहूँ दो छटांक, चावल दो छटांक, दूसरे अन्न दो छटाक - कुल ६ छटांक, तेल एक छटांक, गुड़ एक छाक, साग और हरी तरकारियाँ १ पाव, दाल डेढ़ छटांक, दूध एक पाव तथा कुछ नमक मसाले। प्रतिदिन दो ढाई सेर जल ।

   डा० एन० आर० धर ने आहार संबंधी आधुनिक विचारधारा का उल्लेख करते हुए लिखा है, कि "भोजन में प्रोटीन की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक और श्वेतसार की मात्रा कम होनी चाहिए। आधुनिक सभ्य समाज अब कम से कम अन्न जैसे- चावल, गेहूँ, जौ, बाजरा और यहाँ तक कि आलू भी, जो वास्तव में एक लाजवाब भोजन है, ग्रहण करना चाहते हैं। हमारे भोजन का आधा अंश तो गेहूँ इत्यादि हो, शेष तरकारियों, फलों, शाक भाज़ियों का हो। हमारे शरीर का रक्त एवं तंतु कुछ क्षार धर्मी होते हैं, इसलिए सागभाजियां हमारे लिए उपयोगी होती हैं। चीनी के बजाय गुड़ का प्रयोग कहीं अधिक लाभदायक है, क्योंकि; गुड़ में श्वेतसार, कैलशियम, पोटेशियम, लोहा, फासफोरस आदि खनिज पदार्थ भी पाए जाते हैं।

   साधारण जनता के पास शरीर के पोषण के लिए
चर्बी ( चिकनाई ) पाने के साधन मक्खन, घी इत्यादि हैं। यदि उन्हें प्राप्त न कर सकें, तो तिल, सरसों या अलसी के तेल इत्यादि भी उतने ही पुष्टिकारक हैं। तेल पौष्टिक पदार्थ हैं, इनसे शरीर में चर्बी की कमी पूरी होती है। वनस्पति तेल बेकार है। उसमें कोई जीवन-शक्ति नहीं उलटे हानि है। वनस्पति को दिये में जलाना चाहिए और तिल, सरसों के तेल को खाना चाहिए।

कौन सा आटा खाना चाहिए कौन सा आटा खाना चाहिए Reviewed by Tarun Baveja on October 31, 2020 Rating: 5

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