" खाद्य पदार्थ पकाने की प्राकृतिक कला"
प्राकृतिक नियम के अनुसार प्रत्येक खाद्य पदार्थ सूर्य की गर्मी में धीरे-धीरे पकता है। यदि इस प्राकृतिक विज्ञान की कला को ठीक से समझे, तो हमें भी प्रत्येक खाद्य-पदार्थ को धीमी आंच में ही पकाना चाहिए। आयुर्वेद में कई औषधियां धीमी आंच में पकाई जाती हैं, जिनका गुण अधिक होता है। प्राचीन काल में दूध कन्डे की आग में मिट्टी के बर्तन में दिन भर पकाया जाता था। भोजन भी लकड़ी या कन्डं की आग में पकाया जाता था। वर्तमान के भौतिक विज्ञान ने ऐसे अविष्कार किए हैं, जिनके पकाने में समय तो कम लगता है, परन्तु उनकी इतनी तेज प्रक्रिया होती है, जिसका प्रभाव खाद्य पदार्थ पर अच्छा नहीं पड़ता है।
स्वयं विचार करें, कि कम गर्म पानी से स्नान करने से शरीर को लाभ मिलता है। तेज गर्म से शरीर में छाले पड़ जाते हैं। जिस प्रकार मानव शरीर सजीव यंत्र है, उसी प्रकार खाद्य पदार्थ भी जब तक अपनी प्राकृतिक अवस्था में रहते है। तब तक उनमें जीवन तत्व रहता है। किसी अनाज को कच्चा बोने पर वह उगता है, यदि उसे उबाल या भून दिया जाए, तो वह उगेगा नहीं। यही बात पकाए गए भोजन के सम्बन्ध में भी हो सकती है। अतः भोजन को बिना पकाए खाए, तो अच्छा है। यदि पकाना ही पड़े, तो उसे धीमी आंच में पकाए, तो बहुत अच्छा होगा। नीचे खाद्य-पदार्थों के पकाने के तरीके लिखे जाते हैं।
* भोजन बनाने की प्राकृतिक कला सीखें-
(१) गेहूं, चना, मूग, चावल आदि अनाजों को धोकर बर्तन में रखें उसमें मात्रा के अनुसार खूब गरम पानी, ऊपर से डालकर के अच्छी तरह बन्द कर दें। ४ से ८ घन्टे के बाद उसे खाना चाहिए। यदि कुछ कच्चा रहे, तो थोड़ी देर धीमी आंच में पकाया जा सकता है। खाते समय स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक,हरी मिर्च, टमाटर, पालक,नींबू, अदरक आदि मिला सकते हैं ।
(२) हर प्रकार की सब्जियों को काट करके बर्तन में रख कर ऊपर बताई
गई विधि से बनाकर प्रयोग करना चाहिए।
(३) ऐसी सब्जियां जो कच्ची खायी जा सकती है अथवा हरी पत्ती की भाजियों को गर्म पानी में केवल ५ मि० रख कर के निकाल लें और उनमें नमक, हरी मिर्च, अदरक आदि मिलाकर कच्चा ही खाइये।
इस प्रकार सब्जी में जो छोटे-छोटे कीटाणु होते हैं, वह नष्ट हो जाते हैं।

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