भोजन में मुख्य स्थान चावल का भी है। कई प्रदेशों में तो रोटी से अधिक महत्व चावल का ही है। जगन्नाथ पुरी में तो चावल का ही प्रसाद बिकता है। सैकड़ों मन चावल नित्य प्रसाद के रूप में बिकता है।
जिन प्रदेशों में चावल का अधिक प्रयोग होता है। वहां पहले हाथ से कूटकर चावल का प्रयोग करते थे। साथ में दूध दही का अधिक प्रयोग करते थे। वर्तमान समय में मशीन का युग है, मशीन के छटे चावल से कन निकल जाता है, जिसमें बी० विटामिन भरपूर होता है। धान के छिलके को हटा कर देखें, चावल के ऊपर लाल, पीला, सफेद पर्त होता है, इसी पर्त में चावल के पोषक तत्व होते हैं। चावल जब मशीन में पालिश कर दिया जाता है, तो यह पतं निकल जाता है। पालिश किया चावल स्वास्थ्य के लिये हानिकर
होता है।
"चावल से मांड़ निकालना"
चावल को पकाते समय उसका पानी फेंक देना भयंकर भूल है। चावल के मांड़ के फेकने से बी० विटामिन के साथ, कैलसियम, ७० प्रतिशत लोहा, ५० प्रतिशत, फासफोरस २० प्र०, छार तत्व २० प्रतिशत कम हो जाता है। इसलिए यह आवश्यक है, कि चावल से माँड़ निकालना बन्द किया जाए। उत्तरी भारत, चीन और जापान में भी प्रधान खाद्य चावल है, परन्तु वह लोग चावल से माँड़ नहीं निकालते हैं। भारतवर्ष गरीब देश है, सात लाख गांवों की आबादी में सब जगह चिकित्सालय खोल कर रोगों के इलाज की सुविधा देना सम्भव नहीं है। यदि सम्भव हो जाए, तो सदा स्वस्थ रहने की समस्या का समाधान नहीं हो सकेगा। क्योंकि जिन स्थानों पर लोगों को चिकित्सालय की सुविधायें प्राप्त हैं। वहां और भी अधिक रोगों की वृद्धि हो रही है।
एक ओर सरकार और समाज का लाखों करोड़ों रुपया चिकित्सालयों में खर्च हो रहा है। दूसरी ओर रोग और रोगियों की संख्या बराबर बढ़ रही है।
इसलिए लाखों करोड़ों रुपया जो अस्पतालों में खर्च हो रहा है। यदि उसे लोगों को सदा स्वस्थ रहने के लिये प्राकृतिक चिकित्सा और प्राकृतिक भोजन करने का ज्ञान दिया जाए, तो मानव जीवन की एक समस्या सदा निरोग रहने की बहुत कुछ अंशों में हल्की की जा सकती है। इस समस्या के साथ-साथ आर्थिक उत्पादन तथा खाद्य की समस्याओं का भी समाधान हो जाएगा।
चावल से कन और मांड निकाल देने से वी० विटामिन का अभाव हो जाता है। बी० विटामिन के अभाव में कब्ज, वेरी वेरी, फायलेरिया, आदि। अनेकों रोगों की उत्पत्ति होती है। इतना ही नहीं भारत जैसे गरीब देश में जहाँ लाखों करोड़ों मन अनाज दूसरे देशों से मंगाना पड़े, वहां चावल से कन और मांड़ निकाल देना बहुत बड़ी मूर्खता नहीं तो और क्या है ।
प्रयोग करके देखा गया है, कि पूर्ण चावल के व्यवहार से १५ से २५ प्रतिशत चावल की बचत होती है। मशीन से एक मन धान से २५ से २६ सेर तक ही चावल
निकलता है। यदि वहीं चक्की से दलकर निकाला जाए, तो २९ सेर चावल निकलता है। मशीन का चावल यदि एक सेर खर्च होता है, तो पूर्ण चावल से
चौदह छटाँक से काम चल सकता है । खर्च भी कम और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। परन्तु पता नहीं बड़े २ बुद्धिमान लोग भी इस सत्य को स्वीकार करने के लिये तैयार नहीं हैं। यही कारण है, कि आज मानव का स्वास्थ्य गिरता जा रहा है। जिस देश का स्वास्थ्य ठीक न होगा, उस देश का उत्पादन कम हो जाएगा। समाज की आर्थिक दशा सदैव खराब रहेगी।
स्वास्थ्य के खराब होने पर मानसिक चिन्ताओं से भी मनुष्य परेशान रहता है। यदि आज समाज को स्वस्थ और सुखी बनाना है, तो सारे समाज को प्राकृतिक
चिकित्सा का तथा प्राकृतिक तरीके से भोजन करने का ज्ञान देना चाहिए। प्रत्येक परिवार में स्वस्थ रहने के लिये जीवन का ज्ञान होना चाहिए।

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