गेंहू के आटे के पोषक तत्व बढ़ाने का प्राकृतिक तरीका

     "हाथ-पिसे आटे का महत्व"

    विज्ञान का उदय मनुष्य की सहायता के लिये हुआ था। जिससे कि वह अपने जीवन को ठीक ढंग से चला सके; परन्तु उचित संतुलन के अभाव में विज्ञान का स्वयं मनुष्य के जीवन पर ही आक्रमण करने लग गया है। इसका एक बहुत छोटा-सा उदाहरण हम यहाँ दे रहे हैं।


   भारतवर्ष में हर घर में हमारे भोजन का सबसे अधिक प्रमुख और स्थूल पदार्थ आटा है, चाहे वह गेहूं का हो, बाजरे, चने, जौ, जवारी या अन्य किसी अनाज का हो। देश के एक सिरे से दूसरे सिरे तक घूम आइये, आदिवासी क्षेत्रों में यह आटा मशीन से पीसा जाता है। कहीं तो यह मशीन बिजली से चलती है, कहीं तेल से, कहीं भाप से और कहीं पानी के तीव्र प्रवाह के वेग से। इसी देश में एक वह जमाना था, जब हर घर में पत्थर की छोटी-बड़ी चक्कियाँ होती थीं और हर सवेरे गांव के हर घर में चक्की की मधुर गूज के साथ गृहिणी का उससे भी मधुर संगीत सुनाई देता था। वह जैसे एक बीते युग की बात हो गई है। चारों ओर मशीन के पीसे आटे का राज्य महामारी की तरह से प्रसारित हो चुका है ।

   सामान्यतः लोग मिल-पिसे और हाथ-पिसे आटे का महत्व नहीं समझते। हमने कई ऐसे लोगों को देखा है, जो वैज्ञानिक प्राकृतिक चिकित्सक होने का दावा करते हैं और कहते हैं, कि मील का आटा यदि मोटा पिसा हो, तो कोई हानि नहीं है। यह ठीक नहीं है। इस वैज्ञानिक अज्ञान के जमाने में सभ्यता की कसौटी ही यह है, कि आप यंत्र के अत्याचार को सहते जाइये, वरना आपको दकियानूसी, पुराणपंथी कह कर आपकी उपेक्षा की जाएगी।

   आटे का महत्व तीन दृष्टियों से है। यहाँ हम कहना चाहते हैं, कि आटे के प्रश्न को हमें तीन दृष्टियों से देखना होगा। पहली दृष्टि है, सर्वोदय विचार की जिसके एक अंग के रूप में प्राकृतिक चिकित्सा प्रतिष्ठित हुई है। दूसरी दृष्टि आहार-शास्त्र की है, जो प्राकृतिक चिकित्सा का मूल आधार है और तीसरी दृष्टि शरीर-विज्ञान की है, जो हमें यह बताती है कि मनुष्य के शरीर के विविध अंग और तत्व किस प्रकार शक्ति-संचय करते हैं।

   सबसे पहले हम यह समझ लें, कि प्राकृतिक चिकित्सा आज के भारत की महात्मा गाँधी की देन है। यह चिकित्सा-पद्धति उनके बताये विकेन्द्रित समाज में ही पनप सकेगी। इसमें मनुष्य और पशु-शक्ति के अलावा दूसरी शक्तियों का प्रयोग वस्त्र आदि आवश्यकताओं की पूर्ति में ही होगा।

   आहार-शास्त्र की दृष्टि से हाथ-पिसे आटे का बड़ा महत्व है। हमारे देशवासियों का संकल्प है-जिजीविषेत् शतं समाः। यानी हम सौ वर्ष जियेंगे। जो भी अन्न खाते हैं, उसकी शक्ति को यदि नष्ट कर देंगे, तो कभी भी उनका संकल्प पूरा नहीं होगा। मीलों में गेहूँ की स्निग्धता और उसका विटामिन 'ई' प्रायः नष्ट ही हो जाता है, क्योंकि; प्रायः छोटी मिलों में ही आटा पीसने वाला पत्थर एक मिनट में चार सौ चक्कर लगाता है, जबकि हाथ की चक्की एक मिनट में सिर्फ तीस चक्कर लगाती है। अतः मील की चक्की से गिरते हुये आटे की बोरी में यदि तुरन्त हाथ डाल दिया जाए, तो वह जल जाएगा, फफोले पड़ जाएंगे। उस आटे को फैलाकर ठंडा करना पड़ता है।

   विटामिन 'ई' मनुष्य की देह में रज और वीर्य की पुष्टि करता है। यह बात ध्यान देने की है, कि विटामिन 'ई' गेहूँ के भीतर के तेल में रहता है। इस तेल के जल जाने पर गेहूं वैसे ही बेकार हो जाता है, जैसे कि पानी उतर जाने पर मोती। इस तेल को बनाए रखने के लिये गेहूं की पिसाई में गर्मी पैदा नहीं होना चाहिए। जन्म से ही रोगी और दुर्बल सन्तान यदि पैदा होती है, तो समझ लीजिये कि यह उस सभ्यता का प्रताप है। जिसमें आलस्य का देवता हमें मील का आटा खाने की प्रेरणा देता है। मील-पीसा आटा खाने वाली स्त्रियाँ 'ई' विटामिन से वंचित रहकर श्वेत प्रदर और पुरुष वातुक्षीणता की ओर धीरे-धीरे अग्रसर होते हैं। मील-पीसा आटा खाना निर्जीव खाने जैसा है । सारहीन भोजन से सुखी जीवन की आशा करना मृगतृष्णा है।

   आहार-शास्त्र में रस और स्वाद का भी बड़ा महत्व है। रस और स्वाद की दृष्टि से हाथ पिसा आटा सर्वोत्तम होता है। चोकर सहित हाथ पीसा आटा सेल्यूलोजयुक्त होता है, जो अंतड़ियों को व्यर्थ के भार से बचाता है तथा अत्यन्त स्वादिष्ट और मधुर होता है। हाथ-पीसा आटा तृप्तिदायक भी होता है। वह मील-पीसे निर्जीव भूसे जैसे आटे की अपेक्षा मात्रा में कम खाया जाता है, पर अधिक शक्ति देता है। चोकर भी उसमें नष्ट नहीं जाता। यह स्मरण रहे, कि चोकर में ही विटामिनों का निवास होता है, उसे कभी नहीं फेंकना चाहिए। राष्ट्रीय अर्थ-शास्त्र की दृष्टि से हाथ-पीसा आटा हमें अन्न-संकट से बचाने में सहायक होगा।

   शरीर-विज्ञान की दृष्टि से एक बात समझ लेनी चाहिए, कि मानवशरीर के जिस अंग से काम नहीं लिया जाएगा वह बेकार हो जायेगा। शरीर के हर अंग को व्यायाम मिलना चाहिए। राष्ट्रीय दृष्टि से हमारा व्यायाम उत्पादक भी होना चाहिए। ऐसा सर्वश्रेष्ठ व्यायाम हाथ-चक्की से आटा पीसना है।

   अन्त में कहना यह है, कि स्वाद, तेजस्विता, अक्षय-यौवन, शोषणयुक्त समाज और शत वर्ष का जीवन प्राप्त करना चाहते हो, तो चक्की अपने हाथ से चलाकर अर्थात् हाथ-चक्की से अनाज पीसकर चोकर समेत आटे को प्रयोग में लाइये और स्वस्थ रहिए।

गेंहू के आटे के पोषक तत्व बढ़ाने का प्राकृतिक तरीका गेंहू के आटे के पोषक तत्व बढ़ाने का प्राकृतिक तरीका Reviewed by Tarun Baveja on September 20, 2020 Rating: 5

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