भोजन बनाने में जो प्राकृतिक भूलें हैं, यदि उनका प्राकृतिक तरीके से सुधार हो जाए, तो मेरा विश्वास है कि मानव समाज स्वस्थ्य रह सकता है। भोजन बनाने के पदार्थ, भोजन बनाने की कला और भोजन करने कराने की जो पुरानी आदतें हैं, वह इतनी गलत हैं। जब तक आप प्राकृतिक चिकित्सा का साहित्य न पढ़े तथा किसी प्राकृतिक चिकित्सालय में रहकर स्वयं अनुभव न करें, तब तक आपको अपनी भूल का ज्ञान ही न होगा। जब तक भूल का ज्ञान न होगा, तब तक आप सुधार करने की बात नहीं सोच सकते हैं। इसलिए यदि आप अपने परिवार को सुखी और स्वस्थ बनाना चाहते हैं, तो मैं आपको शुभ सम्मत्ति देता हूं, कि आप कुछ समय निकालकर किसी प्राकृतिक चिकित्सालय में एक माह रहें, वहाँ पर प्राकृतिक तरीके से भोजन बनाने की कला का ज्ञान प्राप्त करें, जितने दिन वहाँ रहें, उतने दिन उसी प्रकार के भोजन का अभ्यास करें। इससे आपको आर्थिक शारीरिक, मानसिक लाभ होंगे ।
अपने घर पर एक छोटा-सा प्राकृतिक चिकित्सा का पुस्तकालय बनावें, कुछ उपचार के सामान भी रखें। साधारण तौर पर आप एनिमा, मिट्टी पट्टी, कटिस्नान, धूपस्नान, लपेट का ज्ञान प्राप्त कर लें। इतना करने पर आप देखेंगे, कि आप दवा डाक्टर से बचे रहेंगे।
इस पुस्तक में मैंने जो कुछ लिखने का प्रयास किया है। वह अनुभव और प्रयोग के आधार पर ही लिखा है। भोजन बनाने, करने, तथा खाद्य पदार्थों के सम्बन्ध में इस बात का ध्यान रखा गया है, कि वर्तमान प्रणाली में जो प्रथायें चल रही हैं, उनमें थोड़ा सुधार यदि कर दिया जाए, तो मानव का बड़ा उपकार होगा।
"दवा की जरूरत क्यों पड़ती है"
भोजन बनाने की जो प्रचलित प्रथायें हजारों वर्ष से चली आ रही हैं। उनमें यदि विज्ञान से खोज की जाए, तो शरीर संरक्षण के लिए जो पोषक तत्व मिलने चाहिए, उनका अभाव रहता है। जब शरीर में पोषक तत्वों का अधिक अभाव हो जाता है, उस समय शरीर विकार युक्त हो जाता है। विकार युक्त शरीर में रोगों की उत्पत्ति होती है। शरीर से विकार को निकालने का काम जब प्रकृति करती है, उससे जो कष्ट होता है, उसे मानव सहन नहीं कर पाता है। इस कष्ट को शीघ्र दूर करने के लिये व्याकुल हो जाता है और दवाओं का सहारा लेता है।
दवाइयाँ थोड़ी देर के लिये पोषक तत्व देती हैं, जिनका अभाव भोजन करते समय होता है। पोषक तत्वों के मिलने से दवा में जो लाभ होता है, वह तभी तक रहता है, जब तक आप दवा लेते हैं। दवा बन्द की वैसे ही फिर रोग आया। ऐसे लाखों रोगी हैं, जो बराबर दवा खाते रहते हैं, फिर भी उनका रोग नहीं जाता। इसका मूल कारण यह है, कि मनुष्य जो भोजन करता है, वह पोषक तत्व से रहित करता है।
आप स्वयं विचार करें, कि दवा रोज खाना पसन्द करेंगे कि प्राकृतिक तरीके से बनाया हुआ भोजन। यदि आप प्राकृतिक तरीके से नित्य भोजन करने का अभ्यास कर लें, तो फिर दवा लेने की जरूरत ही नहीं है। भोजन में ही दवा मिलती रहेगी।
बहुत से लोगों की यह गलत धारणा बन गई है, कि प्राकृतिक भोजन में स्वाद नहीं रहता है। स्वाद तो जीभ की आदत खराब होने के कारण नहीं आता है। मैं अपने अनुभवों के आधार पर कह रहा हूँ, कि जिन्होंने एक बार भी प्राकृतिक भोजन का अभ्यास किया है। उन्हें उसी में स्वाद आता है। मिर्च-मसाले आदि के भोजन उन्हें उसी प्रकार खराब लगते हैं। जैसे मिर्च-मसाला खाने वालों को प्राकृतिक भोजन बे-स्वाद लगता है। यह जीभ के अभ्यास पर है तथा भूख पर निर्भर है।
जब जोर की भूख लगती है, तब बिना नमक मिर्च-मसाले का भी भोजन अच्छा लगता है। इसलिए यह कहना, कि प्राकृतिक भोजन में स्वाद नहीं है, यह गलत धारणा है। हम अपनी गलत आदतों को बदलना नहीं चाहते। केवल प्राकृतिक चिकित्सा और प्राकृतिक भोजन को दोष देते हैं। मेरा अनुभव है, कि प्राकृतिक भोजन में स्वाद और स्वास्थ्य दोनों मिलेगे। गलत भोजन में केवल स्वाद ही मिलेगा, स्वास्थ्य नहीं। स्वास्थ्य के लिए डाक्टरों के पास जाना पड़ेगा। डाक्टर के पास दवा मिलती है, स्वास्थ्य नहीं मिलता है।
किसी डाक्टर से आप पूछे कि आपकी दवा में क्या है। डाक्टर बतायेगा कि हमारी दवा में फास्फोरस, सलफर, कैलशियम बी०, ए०, सी० विटामिन आदि हैं। अब आप विचार करें, कि इन पोषक तत्वों की शरीर में कमी
क्यों हुई। पोषक तत्वों की कमी का कारण है, कि हमारे भोजन के जो पदार्थ हैं, वह पोषक तत्वों से रहित हैं। आटा से चोकर निकालने से, चावल से कन और माँड़ निकालने से बी० विटामिन की कमी हो जाती है। सब्जी से छिलका निकालने से ए० विटामिन की कमी होती है। दानेदार चीनी खाने से कैलशियम की कमी होती है। धूप का सेवन न करने से डी० विटामिन की कमी होती है।
टमाटर को आग पर पका कर खाने से सी० विटामिन की कमी होती है।
यदि भोजन में इस बात का ध्यान रखा जाए, कि खाद्य पदार्थ के पोषक तत्व नष्ट न होने पाए, तो आपको दवा की जरूरत नहीं रहेगी। इसलिये भोजन बनाने का ज्ञान प्रत्येक परिवार में प्राकृतिक तरीके से होना चाहिए।

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