"दाल बनाने की प्राकृतिक विधि"
भोजन में दाल को दलकर खाने की जो प्रथा है, उसमें प्रोटीन की कमी हो जाती है। अरहर, मूग, उरद, मसूर की दाल ही खाई जाती हैं। सबसे अधिक अरहर की दाल का प्रयोग होता है, जिसमें छिलका रहता ही नहीं है। भोजन में प्रोटीन के अभाव के कारण ही अनेक रोगों की उत्पत्ति होती है ।
दालों में जो प्रोटीन होती है, उसका लाभ तभी मिल सकता है। जब समूची दाल को रात को पानी में (१२ से २४ घन्टे तक) भिगो दें और उसी पानी में धीमी आंच से एक घन्टे तक पकाए। दालों को पकाते समय पालक, लौकी, टमाटर, तरोई (नेनुआ) टिन्डा, लाल साग, सेम, गाजर, आदि डाल देने से दाल में अन्य विटामिन तथा धात व लवण मिल सकते हैं।
दालों के पक जाने पर उसमें पालक, गाजर, टमाटर का रस मिला देने से पोषक तत्व अधिक मिलते हैं।
दाल में आम की खटाई, सूखी इमली, नींबू डाल कर खाने से प्रोटीन जल्दी पचती है।
दाल में सुपारी डाल देने पर जल्दी गलती है। भोजन के बाद एक टुकड़ा सुपारी खाने से प्रोटीन पच जाती है।
दाल के पक जाने पर उसे लकड़ी से अच्छी तरह घोट देने से दाल अच्छी हो जाती है। दाल में अधिक मसाला मिर्च डालकर नहीं खाना चाहिए। नमक, हल्दी, जीरा डालना काफी होता है। दाल की बटलोई के ऊपर पानी भर कर रख दें, जिससे दाल की भाप बाहर न जाए। जिन लोगों को मिर्च खाने की आदत है, उन्हें हरी मिर्च खाना चाहिए।
गर्भवती तथा दूध पिलाने वाली महिलाओं को प्रोटीन की अधिक
आवश्यकता होती है। प्रोटीन की कमी से शरीर का विकास रुक जाता है। स्मरण शक्ति कमजोर पड़ जाती है। अगर सात साल की आयु तक प्रोटीन की कमी पूरी नहीं की गयी, तो हमेशा के लिये उनके शरीर को शारीरिक विकास की क्षति पहुँचती है। शरीर का नव निर्माण करने के लिये प्रोटीन की आवश्यकता होती हैं। प्रतिदिन १०० ग्राम प्रोटीन बच्चों की मां को मिलना ही चाहिए। छोटे बच्चों के शरीर का निर्माण प्रोटीन पर ही निर्भर है।

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