क्या होता है सात्विक आहार और क्या है इसके लाभ

      सात्विक-राजसी-तामसी आहार


   निरोगिता, शक्तिवर्द्धन, दीर्घायुष्य आदि सतोगुणी शक्तियों की प्राप्ति हेतु सात्विक भोजन लेना चाहिए। सात्विक भोजन क्या है ? यह निम्नलिखित गीता के श्लोक से स्पष्ट हो जाता है।


                 सात्विक आहार

आयुः सत्ववलारोग्य सुखप्रीतिविवर्धनः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्विकप्रियाः ।।

अर्थ :- आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले एवं रसयुक्त चिकने और स्थिर रहने वाले तथा स्वभाव से ही मन को प्रिय हो, ऐसे आहार सात्विक पुरुष को प्रिय होते हैं ।

व्याख्या :- आयु, बुद्धि, बल, आरोग्य और प्रीति को बढ़ाने के लिये चार प्रकार का आहार -
१- रस्याः ।
२- स्निग्धाः ।
३- स्थिरा ।
४- हृद्या ।

   अब इनमें कौन-कौन सी खाद्य वस्तुएँ आती हैं, उन्हें जानना जरूरी है अन्यथा प्रत्येक प्रकार के खाद्य पदार्थों का गलत अर्थ लगाकर तथा गलत ढंग से प्रयोग करने के कारण उपर्युक्त लाभों से वंचित तथा रोग शोक से छुटकारा नहीं प्राप्त ही सकता। अतः इसके लिये निम्न उदाहरण से समझे ।

रस्या : - सब तरह के फल, सब्जियाँ तथा गाजर, टमाटर, सेब, सन्तरा, मौसम्मी, खीरा, ककड़ी इत्यादि। जिनमें प्राकृतिक रस भरा मिलता है, ऐसी रसदार खाद्य वस्तुएं इस श्रेणी में आती हैं ।

स्निग्धा :- दूध, दही, मक्खन, तिल, गरी गोला, बादाम, मूगफली, सोयाबीन आदि पदार्थ। जिनमें चिकनाई की मात्रा होती है, वे वस्तुएं स्निग्धा की श्रेणी में आती हैं।

स्थिरा:- प्रत्येक प्रकार के अन्न गेहूँ चना चावल आदि। जिन पदार्थों को ग्रहण करने के बाद बहुत समय तक उसका सार शरीर के लिये टिकाऊ हों तथा भोजन करने के बाद अधिक देर तक स्थिरता का अनुभव किया जा सके, वे खाद्य पदार्थ स्थिरा हैं।

    वैसे भी इन अनाजों में, फल, सब्जियाँ, तथा दूध, दही, तिल, नारियल आदि की तुलना में अधिक टिकाऊपन है। यह अधिक दिनों तक स्थिर रखे भी जा सकते हैं, जल्दी खराब भी नहीं होते । इसलिए यह स्थिरा की श्रेणी में आते हैं।

हृघाः- जिस खाद्य वस्तु को देखने मात्र से खाने की रुचि उत्पन्न हो तथा साफ सुथरी व पवित्र हो, उसे "हृद्या" कह सकते हैं ।

विश्लेषण :-उपरोक्त चार प्रकार के खाद्य पदार्थ यद्यपि सात्विक हैं, परन्तु इन्हें भी तलने, भूनने, अधिक पकाने, कम पकाने, मात्रा से अधिक खा लेने, व्यक्ति की आवश्यकता एवं प्रकृति  के अनुकूल-प्रतिकूल का विचार किये बगैर खा लेने पर सात्विक होते हुए भी राजस-तामस के प्रभाव वाले ही हो जाते
हैं।

उदाहरणार्थ- दूध सात्विक है और आयु सत्व, बल-बुद्धि निरोगिता, प्रदान करने में अमृत तुल्य ही है, परन्तु किसी हैजा की दशा में पड़े हुए रोगी के लिये क्या वह अमृत सिद्ध हो सकता है ? कदापि नहीं ।

   अतः यहाँ यह विचार करना पड़ेगा, कि वस्तु सात्विक होते हुये भी व्यक्ति की प्रकृति के विपरीत देने से वह राजस-तामस प्रभाव की हो सकती है । खाद्य पदार्थ के उपयोग के तरीके यदि गलत हैं, तो वस्तु सात्विक होते हुये भी उसका प्रभाव (प्रतिक्रिया) सात्विक नहीं हो सकता।

   भारतवर्ष में बाजार की सड़ी गली बासी मिठाइयां, हलुआ, पूड़ी, पकौड़ा आदि गरिष्ठ पदार्थ जो कि ठूस-ठूस कर खाए जाते हैं, वह अधिक हानिकर होते हैं, परन्तु गलत मान्यताओं के कारण लोग इन पदार्थों को खाते हुए अपने को शाकाहारी कहला कर गौरव समझते हैं। प्रत्येक खाद्य पदार्थ को किस प्रकार प्रयोग किया जा सकता है। उसके प्रयोग विधि मात्रा आहार ग्रहण कर पचाने की पात्रता आदि के अनुसार भोजन सात्विक-राजस एवं तामस का प्रभाव वाला बताया जा सकता है।

क्या होता है सात्विक आहार और क्या है इसके लाभ क्या होता है सात्विक आहार और क्या है इसके लाभ Reviewed by Tarun Baveja on September 17, 2020 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.