"फलाहार का महत्व"
सच पूछा जाए, मानव का मुख्य भोजन फलाहार है। प्राचीन काल में ऋषि मुनि हजारों वर्ष फलाहार के बल पर जीवित रहते थे। अन्नाहार और पक्वाहर का प्रचार इसलिए प्रारम्भ हुआ, कि फलों को अधिक दिनों सुरक्षित नहीं रख सकते थे। परन्तु अन्नाहार और पक्वाहार की दिनों दिन बिगड़ती दशा ने मानव को रोगी और दुःखी बना दिया है। वर्तमान समय में भोजन के साथ फलों का प्रयोग करना आवश्यक है।
फल का नाम लेने पर अधिकतर लोग यही अनुमान लगाते हैं कि सेब, सन्तरा, मौसम्मी, अंगूर, अनार आदि फल हैं। गरीब व्यक्ति इन फलों को कैसे खा सकते हैं, परन्तु यह एक बड़ा भ्रम है। अपने आस-पास जो भी मौसम में फल मिले उनका प्रयोग करना अत्यन्त लाभकारी है। अमरूद, टमाटर, आम, खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, आदि फल अत्यन्त उपयोगी हैं।
मौसम के फल ताजे होते हैं। सेव, सन्तरा आदि। फल तो कच्चे बहुत दूर से आते हैं। खीरा, ककड़ी, सेब, अमरूद आदि। जिनके छिलके मुलायम होते हैं। उन्हें छिलके समेत ही खाइये। फलों को भोजन का एक प्रमुख अंग बनाना चाहिए। भोजन के पहले फलों को खाना उत्तम है।
मानव के शरीर में आमाशय और आंत के भीतर असंख्य रोग के कीटाणु पाए जाते है। कभी-कभी इन कीटाणुओं के कारण मल सड़ जाता है। जिससे गैस ट्रेबुल, वायु में बदबू का आना, सिर में चक्कर आना आदि रोग उत्पन्न हो जाते है। इन कीटाणुओं को मारने का सबसे सुन्दर तरीका ताजे फल तथा फलों का रस है। कुछ दिनों तक केवल फलाहार करने से रोग के कीटाणु मर जाते हैं और स्वास्थ्य के कीटाणुओं की उत्पत्ति हो जाती है ।
प्रतिदिन भोजन के साथ फलों का खाना आवश्यक है। फलों के न खाने से कब्ज हो जाना है। कब्ज सारे रोगों की जड़ है। कब्ज को दूर करने के लिए, जो दवाइयाँ ली जाती हैं, उनसे कब्ज नहीं दूर होता है। केवल दस्त होता है। दस्त का होना कब्ज की दवा नहीं हैं। यदि आप चाहते हैं, कि कभी कब्ज न हो या कब्ज बिना दवा के चला जाए। तो भोजन के साथ, बेल अमरूद, खीरा, ककड़ी, सेव, खजूर, किशमिस, मुनक्का, आम, खुवानी, अंगूर, अंजीर, टमाटर, खरबूजा आदि। जो भी फल आपको मिल सकें उनका प्रयोग भोजन के साथ दोनों समय करें। एक चौथाई हिस्सा भोजन में फलों का रहे। गाजर कब्ज को दूर करती है । गाजर सस्ता और उपयोगी पदार्थ है ।
फलों का सबसे अधिक लाभ यह है, कि शरीर के अन्दर जो भी विकार होता है, उसे बाहर निकाल देता है। साथ ही शरीर के लिये अनेकों प्रकार के विटामिन मिल जाते हैं। ताजे फलों की अपेक्षा सूखे फलों में अधिक विटामिन पाए जाते हैं। उपवास के दिनों, फलाहार या फलों का रस लेना उत्तम है, इससे उपवास का पूरा लाभ मिलता है ।
जिन लोगों को हमेशा सर्दी रहती हो, वर्षों से नजला सताता हो, नाक बन्द रहती हो, कभी-कभी ज्वर भी आ जाता हो। खाँसी,कफ, आता हो। टाइफाइड से शरीर कमजोर हो गया हो, उन्हें कुछ महीनों तक अनाज छोड़ कर केवल फलों का आहार लेना चाहिए। परन्तु मनुष्य के मन में एक डर घुस गया है, कि रोटी नहीं खाएगे तो कैसे जिएगें। भोजन में सबसे प्रधान स्थान रोटी, चावल और दाल को मिला हैं। रोटी, चावल, दाल का भोजन उस समय लाभ करता था, जब घर-घर में चक्की चलती थी, धान कूटे जाते थे, मट्ठा बिलोया जाता था, पानी भरना पड़ता था, दूध, दही और छाछ की मात्रा अधिक रहती थी। उस समय कोई रोटी, चावल, दाल को खाकर पचा सकता था।
वर्तमान समय तो पुराने सभी काम बन्द हो गए है। अब तो जिस कमरे में सोते हैं, उसी में शौचालय और स्नानघर है। रसोईघर में ही पानी नल लगा हुआ है। जब शरीर से श्रम नहीं होता है। तब रोटी, चावल, दाल का पचाना कठिन होता है। इसलिए जो श्रम नहीं करते, उन्हें भोजन के साथ सब्जी और फलों का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
एक प्रसिद्ध चिकित्सक ने फलों के प्रयोग के सम्बन्ध में लिखा है, कि मुझे प्रायः सर्दी रहती थी, मेरे परिवार में सदैव रोग अपना कब्जा किए रहते थे। अनेकों प्रकार की दवाइयों के करने से भी रोग नहीं गया। हारकर सब प्रकार की दवाइयाँ बन्द कर दी गई और फलों को भोजन का मुख्य भंग बनाया गया। दिन में काफी जल पीने की व्यस्था की गई। धीरे-धीरे घर से सभी रोग चले गए। फलों का आश्चर्यजनक लाभ देखकर मैंने अपने
अस्पताल में १६६ रोगियों पर फलों का प्रयोग किया। जिसमें सभी को लाभ हुआ।
फलों का प्रयोग केवल रोगों की निवृत्ति में करना ही यथेष्ठ नहीं है। भोजन का प्रमुख अंग ही बनाना चाहिए। भारतवर्ष में अनेकों प्रकार के सस्ते और उपयोगी फल प्रत्येक मौसम में उत्पन्न होते हैं। खीरा, ककड़ी, अमरूद, टमाटर, गाजर आदि फल अत्यन्त लाभकारी हैं।
बहुतों को यह शिकायत है, कि फल खाने वाले दुबले होते हैं। यह फल का दोष नहीं है, प्रभावकारी गुण है। शरीर का मोटा होना स्वास्थ्य का थर्मामीटर नहीं है। न जाने कितने मोटे रोगी, हाई ब्लडप्रेसर, शुगर, दमा आदि अनेकों रोगों से दुःखी हैं। दुबला या मोटा होना दोनों ही स्वास्थ्य की कुंजी नहीं है। शरीर में कोई रोग न हो, काम करने में थकावट न हो, अच्छी भूख लगती हो, गहरी नींद आती हो, खुलकर शौच होता हो। कार्य करने में बराबर उत्साह रहता है। गर्मी-सर्दी का भी स्वस्थ व्यक्ति के ऊपर कम प्रभाव पड़ता है। फलों की शर्करा, केपचाने में प्रकृति को अधिक श्रम नहीं करना पड़ता
है।
शुगर के रोगी को भी फल की सर्करा नुकसान नहीं करती है। श्री रामनारायण जी गुप्त कानपुर वालों को शुगर थी, शरीर मोटा था। उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा की पुस्तकें पढ़कर प्रतिदिन तीन पाव अंगूर खाते थे और उनकी डाइबटीज ठीक हो गई। शरीर दुबला हो गया, परन्तु धूप में भी कार्य करने की क्षमता बढ़ गई। ऐसे सैकड़ों उदाहरण दिये जा सकते हैं, जिन्होंने केवल फलों का प्रयोग करके जीवन का लाभ उठाया है।

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