"भ्रम निवारण"
फलों के खाने के विषय में लोग यह शिकायत करते है, कि फल बहुत महंगे पड़ते हैं। परन्तु यह बात भ्रमात्मक हैं। फल तभी महंगे दिखते हैं, जब हम उन्हें बिना मौसम के खाना चाहते हैं अथवा जो फल हमारे आस-पास उत्पन्न होते हैं, उन्हें न खाकर दूसरे प्रदेशों से आने वाले फल खाना चाहते हैं। अंगूर को लीजिये, पंजाब, देहली, दक्षिण भारत में जहाँ अंगूर उत्पन्न होता है, दो रुपया किलो बिक्ता है। नागपुर में सन्तरा मौसमी सस्ती मिलती है। इसी प्रकार अमरूद, गाजर, टमाटर, पपीता आदि फल जहाँ उत्पन्न होते हैं, काफी सस्ते मिलते हैं। खीरा, ककड़ी, खरबूजा आदि तो गाँवों में भी काफी सस्ते मिलते हैं। यदि लोग थोड़ा भी श्रम करें, तो अपने आस-पास फल और सब्जी पैदा कर सकते हैं। थोड़ा श्रम भी होगा और फल सब्जी भी ताजे मिल जाएगें।
एक ओर फलों को महंगा बताकर नहीं खाते हैं। दूसरी ओर लोग मिठाई, चीनी, बिस्कुट, ब्रड, चाय, बीड़ी, सिगरेट, काफी आदि में काफी पैसा खर्च करते हैं। जिससे स्वास्थ्य खराब होता है। किसी छोटे-बड़े शहर का निरीक्षण कीजिए, तो पता लगेगा कि जितने रुपये की बीड़ी, सिगरेट शहर में बिक जाती हैं, उतने रूपये के फल नहीं बिकते हैं।
यदि फलों के खाने में कुछ पैसा अधिक भी खर्च करना पड़े, तो भी कोई हर्ज नहीं। जो पैसा दवा और डॉक्टरो में खर्च होता है, वही फलों में खर्च होगा। फलों के खाने से सबसे बड़ा लाभ होगा, कि आप बीमार होने से बच जाएगे। यदि फल नहीं खाएगे तो पैसा तो उतना ही खर्च होगा, परन्तु बीमार भी होंगे। फलों का पैसा डॉक्टर और दवा में खर्च हो जाएगा।
धनी लोगों के यहाँ दो-चार सौ रुपये प्रति माह डॉक्टर और दवा में खर्च होता है। यदि ऐसे परिवार में फलों का प्रयोग होने लग जाए, तो पूरा परिवार स्वस्थ हो जाए। परन्तु दुःख की बात है, कि प्रातः काल के नाश्ते में लोग चाय, नमकीन, बिस्कुट, ब्रड, टोस, डबल रोटी खाना पसन्द करते हैं। यदि नाश्ते में केवल फल और फलों के रस का प्रयोग करें, तो परिवार का अत्यन्त उपकार होगा।
अपने आस-पास उत्पन्न होने वाले और मौसम में पैदा होने वाले फलों को ही प्रयोग कीजिये।
नारियल, केला, मखाना, चिरौंजी, किशमिस, बेल, आम, अमरूद, आदि। अनेकों फल देवताओं की पूजा में चढ़ाये जाते हैं। इससे यह बात सिद्ध होती है, कि फल देवताओं को प्रिय हैं। इसका अर्थ है कि फलों के खाने से दैवी प्रकृति बनती है। इसीलिए ऋषि मुनि फल खाकर साधना करके जीवन मुक्ति का आनन्द लेते थे।
करहि आहार साक फल कन्दा ।
सुमिरहिं ब्रह्म सच्चिदानन्दा ॥

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