नौरात्रि के उपवास का महत्व और इसका वैज्ञानिक कारण


              "नौरात्रि के उपवास"

   भारतीय संस्कृति में वर्ष में दो बार लम्बे उपवास नौरात्रि में होते हैं। यह उपवास भी अपनी रुचि और मान्यता के अनुसार ही लोग करते हैं।


 नौरात्रि के उपवास का अर्थ है, पंचकोष और चतुष्टय अन्तःकरण की शुद्धि ।
  
     पंचकोष में -

(१) अन्नमय कोष ( अन्तः करण )
(२) मनोमय कोष ( मन )
(३) प्राणमय कोष ( चित्त )
(४) विज्ञानमय कोष (वृद्धि )
(५) आनन्दमय कोष (अंहकार)

   इन्हीं पांच की शुद्धि करने के लिये वर्ष में दो बार नौरात्रि के उपवास प्रत्येक मानव को करना चाहिए।

   नौरात्रि का प्रथम उपवास चैत्र शुक्ल प्रदिपदा से आरम्भ किया जाता है और चैत्र श्रीरामनवमी के दिन समाप्त होता है। दूसरा क्बार सुदी प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है और क्वार सुदी ९ को समाप्त होता है।

   चैत्र नौरात्रि के उपवास के अन्त में श्रीरामजी का जन्म होता है और क्वांर की नौरात्रि के अन्त में रावण का वध होता है। इसका अर्थ यह है, कि एक उपवास में श्री भगवान का अवतरण यानी भगवान से सम्बन्ध और दूसरे में रावण रूपी सभी दोषों का नाश होता है। मानव जीवन में विजय मिल जाती है।

   यदि सम्भव हो तो नौरात्रि के उपवास किसी तीर्थ में नदी के तट पर किये जाए अथवा किसी आश्रम में रह कर किये जाए। प्रारम्भ में किसी योग्य महापुरुष के सानिध्य में करें तो अति उत्तम होगा।

   यह उपवास धार्मिक विचार धारा को लेकर करना चाहिए। इसलिए उपवास के साथ में सत्संग, साधना और अध्ययन का भी कार्यक्रम रखना आवश्यक है।

   यदि सम्भव हो तो किसी योगी सन्त के आश्रम में रह कर योगासन, प्राणायाम, ध्यान आदि की शिक्षा लेनी चाहिए। जिन लोगों को बाहर जाने का अवकाश न हो, वह घर पर ही रह कर करें। गीता,रामायण आदि के पाठ कर सकते हैं, नवमी तक । इम,अवसर पर भारतीय संस्कृति में विश्वास करने वाले लोग किसी न किसी प्रकार का व्रत उपवास स्वर्ग या मुक्ति, भक्ति के लालच से करते हैं । सभी धर्मों में व्रत उपवास के नियम बनाये गए हैं। परन्तु व्रत और उपवास करने का सही ज्ञान बहुत कम लोगों को है। सही ज्ञान न होने से जो लाभ व्रत उपवास से मिलना चाहिये नहीं मिलना, बल्कि उल्टे उन्हें हानि हो जाती है।

   वर्तमान समाज में जो रोग फैल रहे हैं तथा नित्य नये रोगों की उत्पत्ति होती जाती है, उसका एक कारण व्रत उपवास की अज्ञानता भी है । यदि प्रत्येक व्यक्ति साल में दो बार नौरात्रि के उपवास कर के शरीर की शुद्धि कर ले, तो शरीर स्वस्थ रह सकता है । प्रत्येक परिवार में बच्चों से लेकर वृद्धों तक को नौरात्रि का उपवास करना चाहिए। नौरात्रि के व्रत के साथ-साथ यदि आध्यात्मिक साधना भी करें, तो शरीर शुद्धि के साथ मन की भी शुद्धि होगी।

   "उपवास निरोगी, रोगी, भोगी, और योगी के लिये अमर वरदान है। इसमें किसी को भले ही सन्देह हो, परन्तु लेखक को किंचित भी सन्देह नहीं है। उपवास से निरोगी कभी रोगी नहीं होता, रोगी का रोग चला जाता है, भोगी भोग से मुक्त होकर योग को प्राप्त करता है और योगी परमात्मा के योग से नित्य सास्वत आनन्द को प्राप्त करके कृत कृत्य हो जाता है।"

      "नौरात्रि के उपवास का महत्व"

   सभी उपवासों में नौरात्रि के उपवास का विशेष महत्व है, क्योंकि; इसका समय जब आता है, तब दोनों ही बार प्रकृति का रुख (मौसम) बदलता है । प्रथम नौरात्रि में शीत ऋतु की समाप्ति तथा बसन्त ऋतु एवं ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है । उस समय सभी पेड़-पौधों पर नई-नई कोमल पत्तियां आती हैं, तथा पुराने पत्ते झड़ जाते हैं । इसी प्रकार से इस समय जो नौरात्रि का उपवास विधि के अनुसार कर लेंगे उनके शरीर की सफाई हो जायगी तथा ६ महीने तक वह स्वस्थ रह सकते हैं। इसी प्रकार, दूसरे नौरात्रि में ग्रीष्मऋतु तथा वर्षा ऋतु की समाप्ति होती है तथा शिशिर ऋतु का आगमन होता है । इस समय भी उपवास करने से शरीर की सफाई हो जाती है। मनुष्य अपने जीवन में नवीनता पाता है। अतः प्रत्येक मनुष्य को नौरात्रि के उपवास अवश्य करना चाहिए ।

नौरात्रि के उपवास का महत्व और इसका वैज्ञानिक कारण नौरात्रि के उपवास का महत्व और इसका वैज्ञानिक कारण Reviewed by Tarun Baveja on September 17, 2020 Rating: 5

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