माता-पिता का ब्रह्मचर्य और उनकी संतान

* ब्रह्मचर्य माता, पिता और संतान में सम्बन्ध: क्या ब्रह्मचर्य एक उत्तम प्रतिभा वाली, उत्तम क्षमता वाली संतान की उत्पत्ति के लिए महत्वपूर्ण है। इस विषय पर हम चर्चा करेंगे,

      आज आप थोड़ा अवलोकन करें अपने जीवन शैली पर। सामान्यतः जो हमारी विचारधारा, जीवन शैली रहती है, वो उतनी पवित्र नहीं रहती, उसमें उतनी सकारात्मकता नहीं रहती। हम बहुत सारी चीजों में लापरवाही कर देते हैं, अपने काम के चलते, अपने व्यवसाय के चलते, हम अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान नहीं देते, योगाभ्यास नहीं करते, अच्छा भोजन ग्रहण नहीं करते, कुछ भी खा लेते हैं, इन सभी कारणों की वजह से हमारे शरीर की एक-एक कोशिका पर प्रभाव पड़ता है और अंत में जो धातु बनता है, वह तक प्रभाव पड़ता है और ये बात सुनिश्चित है, प्रूव है।

      आयुर्वेद शास्त्रों में बताया गया है कि किस प्रकार से हमारे शुक्र के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है, हमारे भोजन का और हमारे विचार का। ब्रह्मचर्य विचारों के ऊपर निर्भर करता है और उसी आधार पर हमारे शुक्राणुओं की जो एक क्षमता होती है, हमारे वीर्य की जो एक वीर्यता होती है, वो भी निर्भर करती है, हमारी जीवन शैली हमारी विचारधारा, हमारे आहार-विहार भोजन के ऊपर। जब एक पिता, एक पुत्र को जन्म देने के लिए सज्ज होता है तो उससे पूर्व, उससे काफी समय पूर्व कहीं महीनों तक या फिर हो सके तो एक वर्ष तक यदि कोई व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन कर लेता है और यदि इतना नहीं भी हो पाता, तो अच्छे भोजन के साथ, अच्छे विचार के साथ, अच्छे स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए कुछ महीनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के बाद फिर जो व्यक्ति उद्धत होता है, एक संतान की उत्पत्ति के लिए तो वह संतान जो जाती है, मां के गर्भ में वह अधिक प्रतिभा वाली होगी; क्योंकि जो हमने बीज बोया है, उसी प्रकार का हम वृक्ष प्राप्त करते हैं, कालांतर में। 

      आप किसानों को बहुत बार देखते हैं कि वो कहते हैं कि अच्छी गुणवत्ता वाला हमें बीज लेकर के आना है, बाजार से। जब धान एक किसान लगाता है तो वो उसी धान को दोबारा नहीं बोता, वो बाजार से जा कर के अधिक मूल्यवान धान लेकर के आता है, अधिक गुणवत्ता वाला जिसको अधिक संरक्षित रूप से तैयार किया जाता है, फिर उसको वो रोपित करता है तो अच्छी फसल का निर्माण होता है। इसी प्रकार से ये जो हमारी संनत्ति है, हम जब अपने परिवार को बढ़ाते हैं तो यह एक बड़े ही दायित्व का काम होता है। यह किसी एक क्षण पर निर्भर नहीं होता,  ये एक योजनाबद्ध तरीके से, एक लंबे समय तक सोच विचार कर करने योग्य कर्म है, यह दायित्व है, यह एक बहुत बड़ा हमारे ऊपर निर्भर होने वाला दायित्व है। तो इसको समझ कर के इसको विधिवत करना महत्वपूर्ण है। तो लंबे समय तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के बाद ही एक संतान को जन्म दिया जाए।

      और उसके बाद जब वह संतान गर्भ में चली जाती है, तब माता का यह दायित्व बन जाता है, उसी दिन से जब यह सूचना प्राप्त होती है, कि हां.. मैं अब माता बनने के लिए तैयार हूं और उसके बाद दायित्व शुरू होता है, माता का।  जब वह यह जान लेती है कि वह माता बनने के लिए तैयार है। फिर वह अपनी विचारधारा, अपनी जीवनशैली, अपने आहार-विहार, अपने व्यायाम आदि ब्रह्मचर्य सभी बातों पर विशेष ध्यान रखें.. उसी क्षण से जब उसे यह पता चल जाता है, तब से उसके जीवन में अमूलचूल परिवर्तन हो जाने अनिवार्य है। उसके बाद जो संस्कार बन रहे होते हैं, उसके बाद जो बच्चा गर्भ से ही सीख रहा होता है। जब उसके मस्तिष्क का निर्माण हो रहा होता है, और तभी आप लापरवाही कर देंगे तो जिस तरीके से किसी मशीन में कोई प्रोडक्ट बन रहा होता है, जो पैकेजिंग हो रही होती है और वो मशीन ठीक प्रकार से काम ना करें तो क्या वो जो प्रोडक्ट तैयार हो रहा है, वो अच्छा बन पाएगा और जब उसकी प्रोडक्शन एक बार हो चुकी है तो उसे कितना भी पॉलिश करते रहे, उसे कितना भी अच्छे से रखते रहे, लेकिन वो जो बना है, वो वही रहेगा। फिर उसे तोड़ मरोड़ के बनाने में वो आनंन्द नहीं रहेगा।

      इसी प्रकार से अगर किसी माता ने, अगर किसी पिता ने यह ध्यान रख लिया कि ब्रह्मचर्य को किस प्रकार से प्रतिष्ठित करके और किन संस्कारों को बच्चों को देते हुए, गर्भ से ही देते हुए, हमें आगे बढ़ना है तो यह हमारे राष्ट्र के लिए एक बड़ा ही सुंदर और विशाल कदम होगा; क्योंकि हमारी संस्कृति में स्पष्ट रूप से शास्त्रों में भी बताया गया है कि क्या नियम है, किस प्रकार से केवल ऋतुकालगामी होना चाहिए, पुरुष को। किस प्रकार से उपकृपाणु बह्मचर्य और नैष्ठिक ब्रह्मचर्य के विषय में बताया गया है। नैष्ठिक ब्रह्मचर्य अर्थात जो पूरे जीवन तक ब्रह्मचर्य रहते हैं। उपकृपाणु ब्रह्मचर्य अर्थात जो ऋतुकालगामी होते हैं, जो केवल और केवल संतान उत्पत्ति के लिए ब्रह्मचर्य का खंडन करते हैं या फिर जो  नियम बताए गए हैं,आयुर्वेद शास्त्रों में। जिससे शरीर और मन पर गलत प्रभाव नहीं पड़ता, उसके आधार पर वो स्त्री संग करते हैं। तो इन सब विषयों को जानकर करके, समझकर करके के व्यवहार करना।

      और इससे आगे बढ़ते हुए, जब एक बच्चे का जन्म हो जाता है, जो वो सीखता है, प्रथम कुछ वर्षों में, उसी नींव पर उसका पूरा जीवन खड़ा हुआ होता है। प्रथम कुछ वर्षों में अगर अच्छे संस्कार दे दिया जाए, विशेष संस्कार दे दिया जाए, एक ऐसा व्यक्तित्व बना दिया जाए, जो कि आदर्श हो। तो उसके बाद कुछ विकृती भी आती है तो घूमकर के वहीं पर आ-जाना बड़ा ही स्वाभाविक बात है, जो संस्कार बचपन में उसको मिल चुके हैं; क्योंकि उससे पूरी तरह से हटना बड़ा ही मुश्किल है।

      यह आधुनिक विज्ञान भी कहता है, साइकोलॉजी भी कहती है और हमारे धर्म शास्त्रों भी कहते हैं कि प्रथम कुछ संस्कार जो होते हैं, वही महत्वपूर्ण होते हैं और अगर वही बिगाड़ दिए जाते हैं, तो बच्चे की नींव ही खराब हो जाती हैं।

     अगर आप बहुत ज्यादा पढ़ा रहे हैं, बहुत ज्यादा केवल पढ़ाई-पढ़ाई का जोर डाल रहे हैं, उतना ठीक मैं नहीं कहूंगा, पढ़ाना जरूरी है, सब चीजें जरूरी है, एक सम स्थिति बने इसके साथ। लेकिन इसके साथ अच्छे संस्कार, अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण, अच्छी आदतें, स्वाध्याय की आदत, संध्या उपासना की आदत, ईश्वर में अडिग विश्वास। अगर ये चीज़ें नहीं होगी तो कितनी भी कोशिश कर ले, आप अपने बच्चों को आने वाले भौतिकतावादी समय से बचाकर नहीं रख पाएंगे। वो इतने नष्ट हो जाएंगे, वहां पर संस्कार उनके, फिर अगर आप उन्हें दोबारा समझाना चाहेंगे तो वह आपके बस की बात नहीं होगी। अगर आपने वो बीज़ शुरू में रोपित कर दिया कि क्या हमारे घर के, परिवार के, आत्मियों जनों के प्रति सम्मान का भाव और वो सारी की सारी एक समुचय जो होता है, एक व्यक्ति को अच्छा बनाने के लिए वो सारी चीजें अगर डाल दी तो अवश्यम भावी आपकी संताने उज्जवल भविष्य की अधिकारी भी होंगी और उनका उज्जवल भविष्य बनेगा भी।

      इन सभी चीजों पर ध्यान दें और ऊर्जा, जो एक विशेष होती है, बच्चों में। जब वो युवा हो रहे होते हैं, जवान हो रहे होते हैं, तो जो उर्जा होती है, वो कहीं ना कहीं तो लगेगी ही, अब उसे कहां लगाना ये आपके ऊपर निर्भर करता हैं। आपको वो गाइडेंस देनी है। आपको लक्ष्य के प्रति बड़े ही सजग, लक्ष्य के प्रति पूरे समर्पित बच्चें को बनाना है, ना कि आज ये, और कल वो कर लिया। संकल्पहीन, संकल्प शक्तिहीन मतलब जब ठहराव नहीं है,  व्यक्ति के जीवन में, वो कैसे कुछ सृजानात्मक बेहतर और कुछ प्रेरणात्पद  कर सकता है, जीवन में। ऐसा अपने मस्तिष्क के ऊपर भी थोड़ा जोर देकर देखिए और इन बिंदु, दर बिंदु को अगर हम समझते हैं तो यह हमारे लिए जरूरी है। ब्रह्मचर्य हमारे जीवन के पहले से शुरू होता है। हमारा ब्रह्मचर्य हमारे माता-पिता पर भी निर्भर करता है, अगर वहां से ब्रह्मचर्य नहीं रखा गया तो आगे बढ़ा कष्ट होने वाला है। यह जान लेना चाहिए। अगर इन कुछ नियमों का पालन कर लिया जाए तो किस प्रकार की संताने होगी और क्या भारतवर्ष का भविष्य होगा वो बड़ा ही स्वर्णिम होगा और वो बड़ा ही सुखद होगा।
माता-पिता का ब्रह्मचर्य और उनकी संतान माता-पिता का ब्रह्मचर्य और उनकी संतान Reviewed by Tarun Baveja on July 27, 2020 Rating: 5

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