कर्म योग में है सफलता का रहस्य है। जानिए कैसे

* जीवन को सफल बनाने का तरीका:  
      अनेकों घटनाएं इस प्रकार से घटित होती है कि फला बच्चे ने परेशान होकर पढ़ाई के बोझ से आत्महत्या कर ली या फिर उनके रिजल्ट आए, जिनकी वजह से वो परेशान हुए। उनके अंक परीक्षा में कम आए, उसकी वजह से परेशान होकर उन बच्चों ने आत्महत्या कर ली, इत्यादि, इत्यादि। इस प्रकार की बहुत सारे न्यूज़, बहुत सारी सूचनाएं प्राप्त होती रहती हैं। बहुत सारे लोग मुझे भी ऐसे मिलते हैं, जो कहते हैं हम अपने काम से बहुत परेशान हैं। हमें अपेक्षित जो परिणाम है, वो प्राप्त नहीं हो रहे हैं अनेकों प्रकार की इस प्रकार की बातें। कारण क्या है, क्यों व्यक्ति इतना परेशान होता जा रहा है, क्यों छोटी-छोटी कारणों से, छोटी-छोटी वजह से वह परेशान हो जाता है, व्यथित हो जाता है और आपने ऐसा भी देखा होगा कि दूसरा व्यक्ति उन्हीं परिस्थितियों से बड़ी आसानी से बाहर निकल जाता है। वो अपने मस्तिष्क पर ज्यादा बोझ भी नहीं डालता। क्या कारण है,

      श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि कर्मों की कुशलता के विषय में बात कही गई है, कर्मों की कुशलता है क्या।
      कर्मों की कुशलता वही है, जब व्यक्ति कर्म करता है लेकिन अनाशक्त भाव से कर्म करता है। वह कर्म करता है, लेकिन बहुत ज्यादा अपेक्षांए कर्म से नहीं रखता। कर्म करना उसका दायित्व बन जाता है, उसकी प्राप्ति वह ईश्वर के अधीन छोड़ देता है। ईश्वर प्राणीधान हमारें शास्त्रों में कहा गया है कि जब हम अपने कर्मों को, अपने जीवन को, पूर्णतया ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देते हैं, उस स्थिति को ईश्वर प्राणीधान का जाता है। जब हम ईश्वर प्राणीधान की स्थिति में अपने आपको ले जाते हैं, हम कर्मों की कुशलता को समझते हैं कि कर्मों पर हमारा अधिकार है, लेकिन उसके परिणामों पर हमारा अधिकार नहीं है। हमें क्या प्राप्त होगा, वो ईश्वर के अधीन हैं।

      तो उसके बारे में चिंता क्या करना,  उसके बारे में परेशान क्या होना जो हमारे अधिकार में है उसे पूर्ण मनोयोग से, पूर्ण सशक्ता के साथ, पूर्ण उत्तम तरीके से किया जाए, वो बिल्कुल सही बात है। लेकिन परेशान होना, व्यथित होना, वो  हमारी मूर्खता ही होगी। तो इस बात को समझना जरूरी है; कि हमें अनाशक्त भाव से कर्म करना है, हमें इस सांसारिक वस्तुओं को, इस सांसारिक भोगों को, भोगना है। लेकिन इनमें लिप्ट नहीं होना। हमें इस प्रकार की आसक्ति नहीं रखनी है, किसी भी वस्तु से कि अगर वो मुझे प्राप्त होगी, तभी मैं सुखी रह पाऊंगा। अगर वो मुझे प्राप्त नहीं होगी तो मैं दुखी हो जाऊंगा; क्योंकि एक के बाद दूसरी, दूसरे के बाद तीसरी, और तीसरी के बाद चौथी इस प्रकार से आपकी अभिलाषांए बढ़ती चली जाएंगी, अभिलाषाओं का कभी अंत नहीं होगा और आप जीवन में शांति को, आनंद को, कभी भी प्राप्त नहीं कर पाएंगे, यह आपके लिए मात्र स्वपन के जैसा रह जाएगा।

      अतः आवश्यकता है, तो इस बात को समझने की। श्री कृष्ण फिर कहते हैं कि सिद्ध परिस्थिति में भी और असिद्ध  परिस्थिति में भी, सुख में भी और दुख में भी, जब परिस्थितियां हमारे पक्ष में हो और जब हमारे विपक्ष में हो, जब हम आनंद का अनुभव कर रहे हो और जब हम दुखी हो, व्यथित हो दोनों प्रकार की स्थितियों में हमें अपने मन के भाव को एक जैसा बना करके रखना है, हमें अपने मन को परेशान नहीं करना, व्यथित नहीं होना, हमें एक जैसे अनुभव को प्राप्त करते रहना है। प्रत्येक स्थिति में जब हम एक प्रकार की अपने मन की स्थिति को रखते हैं, जब सुख आए तो अत्यधिक सुखी भी ना हो, जब सुख आए तो इस प्रकार का व्यवहार भी ना करें; कि आप अपने आपे से बाहर हुए जा रहे हैं। आप अपनी सोचने समझने की क्षमतांए खोते जा रहे हैं। जब सुख आए तो उन्हें धैर्य से स्वीकार करें, उस स्थिति में भी ईश्वर का धन्यवाद करें और अपने सुखो को स्वीकार करें। अपने जीवन में अंगीकार करें, लेकिन जब दुख आए तो उन्हें भी ईश्वर की मर्जी समझते हुए स्वीकार करें।
कर्म योग में है सफलता का रहस्य है। जानिए कैसे कर्म योग में है सफलता का रहस्य है। जानिए कैसे Reviewed by Tarun Baveja on July 27, 2020 Rating: 5

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