प्रेरक कहानी - द्रोणाचार्य ने दी पांचाल नरेश को एक महत्वपूर्ण सीख

* अंहकारी मनुष्य निर्बल होता है: किसी भी कार्य को करने का एक नियत, निश्चित और निर्धारित समय होता है। यदि उस कार्य को उस समय पर किया जाए तो वह कार्य हमारे लिए हितकर हो जाता है और यदि हम उस समय को चूक जाते हैं तो या तो हम उस कार्य को कर पाने में असफल हो जाते हैं या फिर हमें बहुत विशाल क्षति को भी झेलना पड़ जाता है, उठाना पड़ जाता है। एक क्षण होता है, जिस पर की हम पछताते हैं कि  मैंने उस समय को क्यों नहीं संभाल लिया। मैं क्यों अपनी सजगता को खो-कर के बैठ गया। मैंने बुद्धि से, विवेक से उस समय पर निर्णय क्यों नहीं लिया।

      हम सोचते हैं कि हमारे कुछ बहुमूल्य रिश्ते थे, जो हमने खो दिए। कुछ ऐसे लोग थे, जो हमारे साथ में थे, लेकिन आज वो हमारे साथ में नहीं है। आज वो साथ क्यों नहीं है। जब हम निरीक्षण करते हैं तो कहीं ना कहीं हम पाते हैं कि हमारे अंहकार में, हमारे ईगो ने उन सब व्यक्तियों से हमें दूर कर दिया है। हम अहंकार को पोषित करते रह गए और हमने अपनों को खो दिया, यह सौदा बड़ा घाटे का लगता है। अहंकारी व्यक्ति निश्चित रूप से अपने जीवन में वह सब चीजें खो देता है, जो कि उसे सुख दे सकती थी, शांति दे सकती थी, आनंद दे सकती थी, आत्म-मियता और प्रेम दे सकती थी। अहंकारी व्यक्ति उन सब चीजों को खो देता है और परेशान हो जाता है। और फिर अपने परेशानी को भुलाने के लिए वह अनेक प्रकार के अन्य साधनों के माध्यम से, अन्य चीजों के माध्यम से, उन सब चीजों की उन सब रिश्तो की भरपाई करने की कोशिश करता है, लेकिन वह संभव नहीं हो पाता। वह संभव हो ही नहीं सकता; क्योंकि हमारे साथ में वो लोग, हमारे रिश्ते, हमारे प्रियजन, यही तो हमारे जीवन की सुंदरता होते हैं। यही तो हमारे जीवन में रंग भरते हैं। यही तो हमारे जीवन को निखारते हैं, सुधारते हैं और हम एक सुरक्षित माहौल प्रदान करते हैं।

      आपको एक कथा बताता हूं, द्रोणाचार्य अपने शिष्य को शिक्षा देते हैं, पांडवों को भी देते हैं और कौरवों को भी देते हैं। जब गुरु दक्षणा का समय आता है तो गुरु द्रोण कहते हैं, द्रोणाचार्य कहते हैं कि मुझे आपकी गुरु दक्षणा के रूप में पांचाल नरेश की दक्षता चाहिए। पांचाल नरेश से युद्ध कीजिए और उन्हें दास बना करके, बंदी बना करके मेरे सम्मुख प्रस्तुत कीजिए। उनके शिष्य चल देते हैं, पांडव भी चल देते हैं और कौरव भी चल देते हैं। पांडव कहते हैं कि पहले कौरवों को मौका दिया जाए, अगर इनसे पांचाल नरेश को बंदी बनाने का और उन पर विजय बनाने का कार्य सिद्ध नहीं हो पाता तो हम यह कार्य करेंगे। सबसे पहले कौरव जाते हैं, जाकर के युद्ध लड़ते हैं, लेकिन पांचाल नरेश की सेना के सामने टिक नहीं पाते पाते हैं, परास्त हो जाते हैं। उसके बाद पांडव जाते हैं, तो अर्जुन के बाणों के सामने, भीम की गदा के सामने पांचाल नरेश परास्त हो जाते हैं, वो हार जाते हैं, उनको बंदी बना लिया जाता है और बंदी बनाकर के गुरु द्रोणाचार्य के सामने प्रस्तुत किया जाते हैं।

      तब उनसे द्रोणाचार्य कहते हैं कि मैंने आपके पास मित्रता का प्रस्ताव भेजा था, मैं आपकी मित्रता को प्राप्त करना चाहता था, लेकिंन आपने उस समय पर यह कहकर मेरे प्रस्ताव को ठुकरा दिया था कि मित्रता बराबरी के लोगों में होती है। मित्रता सदा बराबरी के लोगों में होती है। आपकी मेरी बराबरी नहीं है। पांचाल नरेश आज आप अपनी स्थिति को देखिए, आप मेरी बराबरी नहीं कर सकते; क्योंकि आप आज मेरे दास हैं, आज आपका सारा का सारा राज्य मेरे अधिकार में है। अब बताइए, मैं आपके साथ क्या सलूक करो।

      तब पांचाल नरेश ध्रुपद कहते हैं कि अब तो मैं आपका दास हूं, आपकी जो भी इच्छा हो वैसा व्यवहार मेरे साथ करें। तब द्रोणाचार्य कहते हैं, कि मित्र आपने मेरा उपहास किया था, आपने मेरी मित्रता को ठुकराया था, लेकिन यह बात सदा ध्यान रखें कि समय किसी की भी वश में नहीं होता। कभी किसी को छोटा ना समझे, कभी किसी को निर्बल ना समझे, कभी अपने आप को इतना बलवान ना समझे; कि आप सभी चीजों पर अपना अधिकार प्राप्त कर चुके हैं। कभी अहंकार से ना भर जाए नहीं तो यह अहंकार निश्चित रूप से वह परमात्मा चकनाचूर कर देता है।

      तब पांचाल नरेश ये कहते हैं कि आपकी मित्रता के लिए, मैं अब आपसे कहता हूं; कि मैं आपका आधा राज्य आपको वापस करता हूं, जिससे कि आप मेरी बराबरी तक आ जाए। मुझे आप आज भी प्रिय हो; क्योंकि मेरी आपसे कोई शत्रुता नहीं, आपका विवेक उतना ही था, जितनी आपने बात की थी। मेरा विवेक उससे अधिक है, मैं अब भी आपको क्षमा करता हूं। आधा राज्य आपको वापस कर देता हूं, अब आप मेरी मित्रता के लायक हो गए हैं।

      इस प्रकार यह दृष्टांत हमें बताता है कि यदि एक समय में हम अत्यधिक सक्षम हैं। हम अच्छी स्थिति में होते हैं, तो वह अवस्था शुक्र के लिए होती है। वह ईश्वर से ये कहने के लिए होती है कि हे प्रभु..  आपने मुझे इतना कुछ दिया, शायद इतने के तो मैं योग्य भी नहीं था, इतनी तो मेरी पात्रता भी नहीं थी, आपने मुझे योग्यताओं और क्षमताओं से बहुत ज्यादा बढ़ कर दिया है। लेकिन इसके विपरीत यदि हम अंहकार करें, उन सब चीजों का तो याद रखें ईश्वर तो न्यायकारी है, जैसा हमारा व्यवहार होगा, जैसी हमारी मनोस्थिति होगी, वैसे ही हमारी स्थिति भी होगी। तो सदा ईश्वर का धन्यवाद करें और सदा अहंकार से मुक्त रहें और एक सुंदर और सुखी जीवन व्यतीत करें।
प्रेरक कहानी - द्रोणाचार्य ने दी पांचाल नरेश को एक महत्वपूर्ण सीख प्रेरक कहानी - द्रोणाचार्य ने दी पांचाल नरेश को एक महत्वपूर्ण सीख Reviewed by Tarun Baveja on July 27, 2020 Rating: 5

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