ब्रह्मचर्य पालन है आसान। जानिए कैसे?

* बह्मचर्य, जीवनशैली और दिनचर्या : हमारे भविष्य की गुणवत्ता, हमारा भविष्य कैसा होने वाला है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे आज की क्या गुणवत्ता है, हमारा आज कितना व्यवस्थित है, जैसा हमारा आज होगा, उसी आधार पर ही उसी नींव पर हमारे भविष्य की इमारत खड़ी होने वाली है। तो आज को बेहतर बना करके हम भविष्य के लिए आश्वस्त हो सकते हैं। आज मैं बात कर रहा हूं, ब्रह्मचर्य के विषय में।  क्यों ब्रह्मचार्य रहना हमारे लिए इतना मुश्किल, इतना दुष्कर हो गया है।

      इसका सीधा-सा कारण यही है कि जो वो नियम है, जो वो जीवन शैली है, जो वो सिद्धांत है, वो हमारे जीवन से निकल चुके हैं, जिसके आधार पर जिसकी नींव पर उस जीवन का निर्माण होता है, जो आदर्श होता है, जो ईश्वर के समीप होता है, जो ईश्वर को प्रिय होता है और यदि उस नींव को ही हम मजबूत नहीं करेंगे तो हम आगे नहीं बढ़ पाएंगे, ऐसे छोटे-छोटे से कुछ नियम है, जिनका पालन हम करेंगे तो निश्चित रूप से हम अपने जीवन में विशाल परिवर्तन ला सकते हैं, अपने जीवन को बदल सकते हैं और मैं केवल यह नहीं कहूंगा कि शारीरिक स्तर पर ही, ब्रह्मचर्य का प्रभाव हमारे मानसिक, आत्मिक, आध्यात्मिक और पूरे व्यक्तित्व जीवन पर पड़ता है।

      व्यक्ति का जीवन कैसा है, वह ईश्वर के कितने समीप है, वह ईश्वर में कितनी श्रद्धा रखता है, ध्यान में कितना मग्न हो सकता है, ये पूरा का पूरा निर्भर करता है हमारी जीवनचर्या पर और सही जीवन शैली। सही जीवनचर्या ही ब्रह्मचर्य है। इस चीज को हमें समझना पड़ेगा।

      ब्रह्मचर्य अर्थात ब्रह्मा जैसी चर्या। कैसी चर्या, ईश्वर ने तो खुद आ कर के यह बताया है और यह हमारे शास्त्रों, वेदों के माध्यम से बताया है कि पूरी तरह से कैसा जीवन व्यक्ति का हो। यदि स्वयं ईश्वर के वचनों को भी हम नहीं मानेंगे। यदि उनके बताए हुए मार्ग पर भी हम नहीं चलेंगे तो हमारे पतन को कौन रोक सकता है।

      सबसे पहले एक छोटी-सी बात करता हूं, हमारा प्रातः कालीन जागरण ही अगर सही नहीं होगा तो हम ब्रह्मचर्य पर स्थापित नहीं हो सकते हैं, हम ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर सकते हैं, फिर खंडित हो ही जाएगा। अगर हम किसी दिन 10:00 बजे सो रहे हैं, किसी दिन 12:00 बजे सो रहे हैं और किसी दिन 1:00 सो रहे हैं और उठने की भी कोई सीमा नहीं है, कोई समय नहीं है तो फिर ब्रह्मचर्य का पालन हो पाएगा, फिर स्वपन्न दोष जैसी समस्यांए नहीं आएगी और ऐसा आप बिल्कुल ना सोचे फिर तो ना-ना प्रकार की अनेक प्रकार की भोग विलास से संबंधित समस्याएं आएगी ; क्योंकि हम में अपने जीवन की जो प्रमुख स्तंभ है: आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य। ये तीन ही तो स्तभ बताए गए है, हमारे शास्त्रों में और हमारे विद्वानों के द्वारा।

      अगर इनमें से हमने अपनी निद्रा को ही व्यवस्थित नहीं किया, सोने-उठने के समय को ही व्यवस्थित नहीं किया, तो कैसे हम सिद्ध हो सकते हैं। स्पष्ट रूप से कहा गया है, श्रीमद् भागवत गीता में। सही समय पर उठना और जागना यह तो जरूरी है ही। और अगर आप ब्रह्मचार्य को स्थापित करना चाहते हैं और अगर कोई भी आपका ऐसा एडिक्शन जो आप छोड़ना चाहते हैं तो आपको इस तरफ निश्चित रूप से ध्यान देना होगा। तो पहला यह बिंदु है, इस तरफ ध्यान दें।

      उसके बाद  प्रातः कालीन और संध्याकालीन विचार। हमारे शास्त्रों में तत्वबोध और आत्मबोध की साधना का प्रावधान है कि जब हम उठते हैं, तो हम क्या सोचे। सबसे पहला विचार जैसा हमारे मन में आता है, उसके आधार पर हमारे संस्कार बनने शुरू होते हैं और फिर पूरा दिन उसके आधार और उस चिंतन पर ही व्यतीत होता है। तो अगर  प्रातकालः उठते ही नकारात्मक, किसी भी भौतिक पद्धार्थ के या फिर किसी भी विलासिता से पूर्ण विचार हमारे मस्तिष्क में आ गए, तो फिर पूरा दिन हमारा उसी के आधार पर, उसी चक्र पर, उसी धूरी पर घूमता रहेगा।

      जब हम सोते हैं, रात्रि में। सोते समय यदि हमारे विचार गलत होंगे, जो कि अधिकांश आज के समय में फोन इत्यादि का उपयोग बहुत बढ़ गया है और रात्रि में ही व्यक्ति सबसे ज्यादा फोन यूज करता है और हम भी कभी कोई ऐसा विचार इत्यादि पढ़ रहे होते हैं या फिर कोई विशेष चीज हम सर्च कर रहे होते हैं तो रात्रि में इंटरनेट की गति बहुत ही कम हो जाती है; क्योंकि सभी व्यक्ति इतना ज्यादा प्रयोग करते हैं और प्रयोग उसमें से जो उचित प्रयोग बहुत कम हैं और अनुचित प्रयोग का उपयोग बहुत ज्यादा है। तो जब हमारे रात्रि काल में ही विचार सही नहीं होंगे, जब वह संस्कार नहीं बनेंगे, जो रात्रि में होने चाहिए, इसे ही तत्वबोध की साधना कहां गया है। जब हमें अच्छे से अपने पूरे दिन के विचारों का मूल्यांकन करना था, संध्या में तो, सोने से पहले। कि हमने पूरा दिन कैसा व्यतीत किया, उसके स्थान पर हम क्या कर रहे हैं। हम फोन में कुछ भी चीजें देख रहे हैं और यह नहीं देख रहे हैं कि कैसा संस्कार बन रहा है, हम बस देखे जा रहे हैं, उससे प्रभाव पड़ता है। तो प्रातः कालीन और संध्या कालीन विचार, चिंतन हमारा और प्रातकाल जागरण का जो समय है, ब्रह्ममुहूर्त। यदि हम ब्रह्ममुहूर्त में नहीं उठते तो दोनों चीजों पर विशेष ध्यान देंना चाहिए।

      कुछ नियम अपने जीवन में स्टीक बनाए। कुछ नियम ऐसे हो कि मुझे इनका पालन करना ही है। उससे विशेष प्रभाव ये पड़ता है कि हमारा आत्म बल बढ़ता है, हमारे जीवन में दृढ़ता आती है। फिर जब दृढता का जो अभ्यास होता है तो फिर जो वेग होगा, मन का। फिर जो हमारी इंद्रियों का जो वेग होगा तो कहीं ना कहीं हम उसको भी रोक सकेंगे। लेकिन अगर हम स्वछन्दन ही जीवन व्यतीत करते हैं तो फिर जब भी कोई ऐसा विचार आएगा तो हम उसको रोक नहीं पाएंगे, उसके साथ में बहे चले जाएंगे; इसलिए नियमों पर, सिद्धांतों पर, हमें अपने जीवन को जीना होगा, जिससे कि जीवन का वजन बन सके।

      यह बहुत ज्यादा जरूरी है, नित्य स्वाध्याय, सत्संग और नाम जप इत्यादि का अभ्यास हमें करना चाहिए।
      नित्य स्वाध्याय: स्वाध्याय, सबसे पहले तो स्वयं का ही अध्ययन करें इसमें। कहां जीवन कैसा चल रहा है, किस दिशा में जा रहे हैं और भविष्य में हमारा जीवन और आंदते हमें किस दिशा में लेकर के जाएगी, यह सबसे पहले सोचना हैं।

उसके बाद स्वाधाय अष्ठ ग्रन्थों का अध्ययन। जो कि अप्त पुरूषों के द्वारा बताया गया है, जो कि उन पुरूषों के द्वारा बताया गया है, जिनका कोई स्वार्थ नहीं था, हमसे कुछ चाहिए ही नहीं था, हमारे कल्याण में ही आनंद है, ऐसे महापुरुषों ने जो मार्ग निर्देशित किया है उसके आधार पर यदि हम जीते हैं तो यह हमारे लिए हित की बात होगी।

      उसके बाद हम संध्या इत्यादि। जिस भी आप विचारधारा और जीवन शैली का अनुसरण करते हैं, उसके आधार पर संध्या करते हैं, साकार में करते हैं और निरांकार में करते हैं, उसके आधार पर आप अपने ईष्ट में अपने ध्यान को एकाग्र करें। संध्या यानी सन्धि करें ईश्वर के साथ  और उनसे कहे; मैं तो अबोध हूं, मुझे कोई बोध नहीं है, आप ही मेरा मार्गदर्शन कर सकते हैं, आप ही मेरी उंगली पकड़ करके मुझे सुमार्ग गामी बना सकते हैं, ऐसा भाव हमें रखना होगा।

      इन तीनों स्तर पर ही, हमें ध्यान देकर ही, कि मन की भी पवित्रता हो, वाणी की पवित्रता हो और उसके आधार पर भी कर्म भी हमारे वैसे ही हो। ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम कहते कुछ हैं, सोचते कुछ और हैं, और करते कुछ और है।  ऐसा व्यक्ति मिथ्या चारी बताया गया है, शास्त्रों में। ऐसा स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जैसे हम हैं, जैसे हम दिखते हैं, वैसे ही आंतरिक रुप से बनना है, उससे भिन्न नहीं।

      इसके आगे बढ़ते हुए हमें उन व्यक्तियों से दूरी बना लेगी पड़ेगी, जो व्यक्ति हमें इन सब चीजों की तरफ, गलत मार्ग के लिए प्रेरित करते हैं। उन सभी व्यक्तियों से दूरी बना करके और उन व्यक्तियों के साथ आपको आगे बढ़ना है, जो आपके लक्ष्य के लिए, आपके मन के लिए उचित है और जो आपके अच्छे संस्कारों के लिए उत्तरदायी हैं। जिनसे आप कुछ बेहतर सीख सकते हैं, जिनके सान्निध्य में आप सकारात्मकता की अनुभूति हैं। ऐसे व्यक्तियों को खोजिए, ऐसा कुछ नहीं है कि आपको ऐसे व्यक्ति नहीं मिलेंगे। ऐसे बहुत सारे व्यक्ति गुरुजन आपको मिल जाएंगे, जो आपका सही से मार्गदर्शन कर सके। उनके पास बैठे, उनका संग करें, उनके पास बैठने से ही आपको एक विशेष शांति का भी अनुभव होगा। यह चीज आपको विशेष ध्यान रखकर साक्षी भाव से देखें।

      भगवान ने कहा है, जो हमारी चलने वाली इंद्रियां है, जिस भी एक विषय के साथ, इंन्द्री जिस भी एक विषय के साथ जुड़ी रहती है, वही विषय हमारी बुद्धि को नष्ट-भ्रष्ट कर देता है और हमारा जीवन इस प्रकार से नष्ट हो जाता है, जैसे कि हवा का झोंका किसी नाव को बहाए लिए जाता है। तो ऐसा नहीं होने देना है। एक-एक इंद्रियों के प्रति हमें सुक्ष्मता से सोच करके और ये अनुभव करना है कि कैसे हमें इन सब विषयों से अपने आप को प्रथक करना है और सर्जनात्मक सही और उचित मार्ग पर चलना है।

      ये सारे हमारे उत्तरदायित्व और ये केवल एक मार्गदर्शन मिल सकता है, करना आपको ही है। कैसे आप अपने आपको कन्वेंस करते हैं, कैसे जीवन को व्यवस्थित करते हैं, वो आपको देखना होगा। इन सब विषयों पर आप बिंदु दर बिंदु चिंतन करेंगे तो वो आपके लिए बड़ा ही अच्छा होगा।

      आसान्न और प्रणायाम का अभ्यास तो हमारे लिए विशेष सहायक हो ही सकता है। आसान और प्राणायाम का अभ्यास करें, बहुत सारे हठयोग में ऐसी विशेष क्रियाएं होती हैं। निरंतर योग अभ्यास करेंगे तो सभी चीजें आपकी सभी समस्यांए समाप्त हो जाएंगे।
ब्रह्मचर्य पालन है आसान। जानिए कैसे? ब्रह्मचर्य पालन है आसान। जानिए कैसे? Reviewed by Tarun Baveja on July 27, 2020 Rating: 5

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