* लालची और अंहकारी व्यक्ति सदैव हानि को ही प्राप्त करते हैं: हमें कितना ज्ञान है, इससे भी महत्वपूर्ण यह है, कि जब हम उस ज्ञान का प्रयोग अपने जीवन में किस प्रकार से करते हैं, कितनी बुद्धिमत्ता के साथ करते हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण है। एक छोटे से दृष्टांत के माध्यम से आपको बताता हूं, एक बार एक अंधेरी रात में चंद्रमा का हल्का प्रकाश था। एक व्यक्ति अपने गधे को लिए जा रहा था, उसी राह पर एक जोहरी भी जा रहा था, सुनार जा रहा था।
वह सुनार देखता है कि जो व्यक्ति गधा लिए जा रहे हैं, उस व्यक्ति के गधे के गले में कोई चीज चमक रही है, वह नजदीक जाकर के देखता है तो जोहरी को पता चलता है कि वह बहुमूल्य हीरा उस गधे के गले में लटक रहा है। वह जाता है, उस व्यक्ति के पास जो गधा लिए जा रहा था और उससे पूछता है; कि तुमने इस गधे के गले में जो लटकाया हुआ है, यह पत्थर जो लटकाया हुआ है, इसका क्या मूल्य है। वह गधे वाला व्यक्ति कहता है, कि भैया मुझे क्या पता, मुझे तो इसी प्रकार से पड़ा हुआ मिला, तो मैंने सोचा गधे का गला खाली रहने से बेहतर है तो इसको मैं जो पत्थर है, इसको डाल दो।
तो वो जोहरी उससे कहता है, कि क्या बेचोगे, आप इसे। तो गधे वाला व्यक्ति कहता है कि बिल्कुल बेच देंगे। क्या मूल्य लोगे। गधे वाला व्यक्ति कहते हैं, कि दे दीजिए, आप आठ आन्ने तो मैं आपको दे दूंगा, अपने घर पर कुछ मिठाई लेता जाऊंगा, बच्चे खा लेंगे, गधे की तरफ से मिठाई अपने घर वालों को बच्चों को खिला दूंगा, तो अच्छा ही है।
तो जोहरी के मन में पाप आ जाता है। खोंट आ जाता है, वो सोचता है कि मैं इसे चार आन्ने से भी कम में ले लूं ; जबकि उसको पता था कि यह तो लाखों का है। वह कहता है कि भैया मैं तो इसके चार आन्ने दे सकता हूं। गधे वाला व्यक्ति उसे इंकार कर देता है कि नहीं चार आन्ने में तो कुछ भी नहीं आता, अब चार आन्ने का मैं ही क्या क्या करूंगा। आठ आन्ने में तो यह है कि मैं कुछ तो मिठाई लेता जाऊंगा घर। तो वह उसे मना कर देता है।
जोहरी आगे बढ़ जाता है और सोचता है कि ये पीछे से आवाज लगाएगा; लेकिन वह आवाज नहीं लगाता है। जोहरी वापस आता है, कुछ देर बाद और कहता है कि वह पत्थर मुझे आप दे दीजिए, मैं आपको उसका आठ आन्ने ही दे देता हूं। तो गधे वाला व्यक्ति उसे बताता है कि भैया कोई सज्जन व्यक्ति आए थे और उन्होंने ने तो मुझे ₹1 दे दिया और मैंने 1 रुपए में वह पत्थर उन्हें दे दिया।
जोहरी जो था, वो बड़ा परेशान हो जाता है और मन में उसके विघिन्नता छा जाती है और वो सोचता है कि आज तो बड़े घाटे का काम हो गया है और वो उस गधे वाले व्यक्ति को कहता है, कि अरे मूर्ख तूने यह क्या कर दिया, वह तो लाखों का रतन था और तूने उसे ₹1 में दे दिया। तो गधे वाला व्यक्ति उस व्यक्ति से कहता है, कि चलो मैंने तो उसे ₹1 में दिया है, मुझे तो पता ही नहीं था, मुझे तो गधा ही समझो, मैं तो अनभिज्ञ था; लेकिन आप तो मुझसे भी बड़े मूर्ख हैं, क्योंकि आपको पता होते हुए भी उसका सही मूल्य नहीं लगाया और उसे नहीं खरीदा। आपने जो घाटा खाया है, वो आपने अपनी मूर्खता, लालच और मन के खोंट में खाया है और अगर मैंने कोई घाटा खाया भी है तो वो मैंने अपनी अन्भिज्ञता और अनजानेपन में खाया है, तो मुझसे बड़े मूर्ख आप हैं।
यही वास्तविकता हमारें जीवन की है। यदि आपने बहुत सारा ज्ञान अर्जित कर लिया हो, यदि आप अपने आप को विद्वान समझते हो, यदि आप समझते हो कि आप विद्वान है, समझदार हैं। आप अपने परिवार का प्रतिनिधित्व करते हैं, समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं; लेकिन अगर आपने अपने चरित्र में, अपने व्यक्तित्व में वो सब चीजें धारण नहीं की हुयी है, जो कि आप अनियंत्रित व्यक्ति से बताते हैं, जिनका आप गुणगान करते हैं और जिनको लेकर के आप हर्षित होते हैं, प्रसन्न होते हैं, अभिमानी हो जाते हैं, अभिमान से भर जाते हैं। यदि उन सब चीजों को आपने अपने व्यक्तित्व में धारण नहीं किया है, तो आपका ज्ञान इस प्रकार का है, जिस प्रकार से उस जोहरी को ज्ञान तो था; लेकिन वो उसका प्रयोग नहीं कर पाया। इसी कारण उसनें इतना बड़ा नुकसान खाया और बाद में वह परेशान रहा, चिंतित रहा।
इसी प्रकार से यदि हमें अपने जीवन में नुकसान से बचना है तो जो ज्ञान आपके पास है, उसको अपने जीवन में प्रतक्षण अभी से, आज से ही प्रतिस्थापित कर दीजिए और एक संयमित सुंदर और ज्ञान से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करियें। उसमें ही शोभा भी है और उसमें ही आपका आनंद भी।
वह सुनार देखता है कि जो व्यक्ति गधा लिए जा रहे हैं, उस व्यक्ति के गधे के गले में कोई चीज चमक रही है, वह नजदीक जाकर के देखता है तो जोहरी को पता चलता है कि वह बहुमूल्य हीरा उस गधे के गले में लटक रहा है। वह जाता है, उस व्यक्ति के पास जो गधा लिए जा रहा था और उससे पूछता है; कि तुमने इस गधे के गले में जो लटकाया हुआ है, यह पत्थर जो लटकाया हुआ है, इसका क्या मूल्य है। वह गधे वाला व्यक्ति कहता है, कि भैया मुझे क्या पता, मुझे तो इसी प्रकार से पड़ा हुआ मिला, तो मैंने सोचा गधे का गला खाली रहने से बेहतर है तो इसको मैं जो पत्थर है, इसको डाल दो।
तो वो जोहरी उससे कहता है, कि क्या बेचोगे, आप इसे। तो गधे वाला व्यक्ति कहता है कि बिल्कुल बेच देंगे। क्या मूल्य लोगे। गधे वाला व्यक्ति कहते हैं, कि दे दीजिए, आप आठ आन्ने तो मैं आपको दे दूंगा, अपने घर पर कुछ मिठाई लेता जाऊंगा, बच्चे खा लेंगे, गधे की तरफ से मिठाई अपने घर वालों को बच्चों को खिला दूंगा, तो अच्छा ही है।
तो जोहरी के मन में पाप आ जाता है। खोंट आ जाता है, वो सोचता है कि मैं इसे चार आन्ने से भी कम में ले लूं ; जबकि उसको पता था कि यह तो लाखों का है। वह कहता है कि भैया मैं तो इसके चार आन्ने दे सकता हूं। गधे वाला व्यक्ति उसे इंकार कर देता है कि नहीं चार आन्ने में तो कुछ भी नहीं आता, अब चार आन्ने का मैं ही क्या क्या करूंगा। आठ आन्ने में तो यह है कि मैं कुछ तो मिठाई लेता जाऊंगा घर। तो वह उसे मना कर देता है।
जोहरी आगे बढ़ जाता है और सोचता है कि ये पीछे से आवाज लगाएगा; लेकिन वह आवाज नहीं लगाता है। जोहरी वापस आता है, कुछ देर बाद और कहता है कि वह पत्थर मुझे आप दे दीजिए, मैं आपको उसका आठ आन्ने ही दे देता हूं। तो गधे वाला व्यक्ति उसे बताता है कि भैया कोई सज्जन व्यक्ति आए थे और उन्होंने ने तो मुझे ₹1 दे दिया और मैंने 1 रुपए में वह पत्थर उन्हें दे दिया।
जोहरी जो था, वो बड़ा परेशान हो जाता है और मन में उसके विघिन्नता छा जाती है और वो सोचता है कि आज तो बड़े घाटे का काम हो गया है और वो उस गधे वाले व्यक्ति को कहता है, कि अरे मूर्ख तूने यह क्या कर दिया, वह तो लाखों का रतन था और तूने उसे ₹1 में दे दिया। तो गधे वाला व्यक्ति उस व्यक्ति से कहता है, कि चलो मैंने तो उसे ₹1 में दिया है, मुझे तो पता ही नहीं था, मुझे तो गधा ही समझो, मैं तो अनभिज्ञ था; लेकिन आप तो मुझसे भी बड़े मूर्ख हैं, क्योंकि आपको पता होते हुए भी उसका सही मूल्य नहीं लगाया और उसे नहीं खरीदा। आपने जो घाटा खाया है, वो आपने अपनी मूर्खता, लालच और मन के खोंट में खाया है और अगर मैंने कोई घाटा खाया भी है तो वो मैंने अपनी अन्भिज्ञता और अनजानेपन में खाया है, तो मुझसे बड़े मूर्ख आप हैं।
यही वास्तविकता हमारें जीवन की है। यदि आपने बहुत सारा ज्ञान अर्जित कर लिया हो, यदि आप अपने आप को विद्वान समझते हो, यदि आप समझते हो कि आप विद्वान है, समझदार हैं। आप अपने परिवार का प्रतिनिधित्व करते हैं, समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं; लेकिन अगर आपने अपने चरित्र में, अपने व्यक्तित्व में वो सब चीजें धारण नहीं की हुयी है, जो कि आप अनियंत्रित व्यक्ति से बताते हैं, जिनका आप गुणगान करते हैं और जिनको लेकर के आप हर्षित होते हैं, प्रसन्न होते हैं, अभिमानी हो जाते हैं, अभिमान से भर जाते हैं। यदि उन सब चीजों को आपने अपने व्यक्तित्व में धारण नहीं किया है, तो आपका ज्ञान इस प्रकार का है, जिस प्रकार से उस जोहरी को ज्ञान तो था; लेकिन वो उसका प्रयोग नहीं कर पाया। इसी कारण उसनें इतना बड़ा नुकसान खाया और बाद में वह परेशान रहा, चिंतित रहा।
इसी प्रकार से यदि हमें अपने जीवन में नुकसान से बचना है तो जो ज्ञान आपके पास है, उसको अपने जीवन में प्रतक्षण अभी से, आज से ही प्रतिस्थापित कर दीजिए और एक संयमित सुंदर और ज्ञान से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करियें। उसमें ही शोभा भी है और उसमें ही आपका आनंद भी।
प्रेरक कहानी - वास्तविक ज्ञान क्या है?
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 27, 2020
Rating:
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 27, 2020
Rating:
No comments: