मोक्ष और मुक्ति में अंतर

मोक्ष क्या है, इस बारे में हम वेदों के अनुसार यानी उपनिषदों के अनुसार विस्तार से इस आर्टिकल में जानेंगे, और कई प्रश्न हैं, हमारे मन में जैसे कि:    

*  क्या मुक्ति और मोक्ष दोनों एक हैं या इनमें कोई अंतर है?
*  मोक्ष की आवश्यकता क्यों है?
*  क्यों हम मोक्ष को प्राप्त करें?
*  क्या माया से मुक्ति मोक्ष है?
*  कर्म बंधन से मुक्ति 'मोक्ष' है?

        यह एक ऐसा विषय है। जिसके बारे में लोग विस्तार से नहीं जानते। इसलिए सरल शब्दों में और प्रमाणो के द्वारा विस्तार से जानेंगे।

*   मोक्ष क्या है?

        इसे आसानी से समझने के लिए पहले दुखों को समझना होगा, क्योंकि 'मोक्ष' का आधार सुख और दुख है।   

       संसार में सभी व्यक्ति दुखी हैं। जब हम लोग जन्म लिए, तभी से जीवन में दुख प्रारंभ हो गया। 'कबीरदास जी' इस विषय में लिखते हैं कि "कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हंँसे हम रोये"।

      तुलसीदास जी ने 'श्रीरामचरितमानस' में लिखा "जनमत मरत दुसह दुःख होय"। मतलब हमारे जन्म से लेकर, मरण तक। हमें दुख घेरे हुए हैं। अगर ध्यान देकर सोचे तो व्यक्ति हर वक्त दुखी है, किसी न किसी कारण से। जन्म में दुख बचपन में खिलौने ना मिलने पर दुख, मिल जाने पर थोड़ा सुख, किसे ने छीन लिया फिर दुख। बस यही बचपन का हाल पूरे जीवन चलता गया।

       इस बारे में गीता कहती है कि "विष्णु का चिंतन करने वाले मनुष्यों की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है। आसक्ति से 'कामना' यानी 'इच्छा' उत्पन्न होती है। फिर 'कामना' से 'क्रोध' उत्पन्न होता है।   

      हम जीवन भर इच्छाओं को पूरा करने में लगे रहते हैं। अगर वो हमारी इच्छा पूरी हुई तो थोड़ी सुख और साथ में थोड़ा लोभ। किंतु यदि पूरी नहीं हुई तो दुख। अब यह प्रक्रिया जीवन भर जारी है। अतः हम पूरे जीवन दुख से घिरे हुए हैं, और हर क्षण सुख की आशा किए हुए हैं।

     "बृहदारण्यकोपनिषद्" ने कहा, 'हमारी सभी कामनाएं दूसरों के सुख के लिए नहीं। अपितु अपने सुख के लिए होती है। तो हम दुखी हैं, और सुख चाहते हैं'। यानी दुख से मुक्त होना चाहते हैं और आनंद की अभिलाषा, सुख की अभिलाषा, शांति की अभिलाषा करते हैं। इस निष्कर्ष को आप समझे रहिए; क्योंकि यही आधार है, मोक्ष का।

*  मुक्ति क्या है?

       किसी से छुटकारा पाने को मुक्ति कहते हैं। यह मुक्ति का शाब्दिक अर्थ है। किंतु शास्त्रों ने 'दुख से छुटकारा पाने को मुक्ति का है'। शास्त्रों के अनुसार मुक्ति दो प्रकार की होती है-

      पहला: अनित्य या क्षणिक दुःख निवृत्ति।
      दूसरा: नित्य या आत्यन्तिक दुःख निवृत्ति।

       सर्वप्रथम पहले को समझ लेते हैं, अनित्य या क्षणिक दुःख निवृत्ति में कुछ देर के लिए दुख जाता है। जैसे मनुष्य जब सो जाता है या ध्यान की अवस्था में होता है। तब उसे किसी भी प्रकार का दुख नहीं होता। किंतु जब ध्यान खोलता है। जागृत अवस्था में आता है। तब काम, क्रोध, लोभ आदि दुखों से पुनः घिर जाता है। अतः अनित्य या क्षणिक दुख निवृत्ति को प्रायः 'मुक्ति' कहा जाता है। यानी कुछ पल के लिए दुखों से छुटकारा को मुक्ति कहते हैं।

2.  नित्य या आत्यंतिक दुःख निवृत्ति को मोक्ष कहते हैं। यानी मोक्ष क्या है?

       नित्य यानी सदैव के लिए 'दुखों से मुक्ति' और 'आनंद' दोनों मिल जाने को 'मोक्ष' कहते हैं। यानी मोक्ष एक ऐसी अवस्था है। जिसमें व्यक्ति सदा के लिए दुखों से मुक्त हो जाता है, और सदा के लिए आनंद युक्त हो जाता है।

      "तैत्तिरीयोपनिषद्" ने कहा 'वही' रस है। 'वही' यानी भगवान की बात की जा रही है। "वही रस है, यह जीवात्मा इस रस को प्राप्त करके ही आनंद युक्त होता है"।

      तो सदा के लिए दुख से मुक्ति  और आनंद की प्राप्ति को 'मोक्ष' कहते हैं।
      अब वेदों के शब्दों में समझते हैं, कि मनुष्य दुखी क्यों है।

      वह दुखी इसलिए है, क्योंकि मनुष्य इस माया के लोक में उसके आधीन हैं। मनुष्य माया के लोक में यानी कि संसार में क्यों है। उत्तर है.. अपने कर्मों के कारण। वो कर्म करता है, इसलिए कर्म बंधन होता है। जिसके कारण उसे पुनर्जन्म लेना पड़ता है।

  वेद कहता है-
      "प्रश्नोंपनिषद्" कि 'वह पुण्य कर्मों के द्वारा "पुण्य लोक" में जाता है, पाप कर्मों के द्वारा "नर्क" में और पाप तथा पुण्य के मिश्रित कर्मों से पुनः "मनुष्य लोक" में जाता है। यानी मनुष्य अपने कर्मों के कारण कभी 'पुण्य लोक', कभी 'स्वर्ग लोग', कभी 'नर्क लोक' और कभी 'मनुष्य लोक'। यानी ये संसार में भटकता रहता है अर्थात वह पुनर्जन्म के बंधन में फंस गया, काल के बंधन में फस गया।

       दूसरे शब्दों में , "श्वेताश्वतरोपनिषद्" ने कहा कि 'जीवात्मा' इस जगत के विषयों का भोक्ता बना रहने के कारण, प्रकृति 'माया' के आधीन यानी असमर्थ हो, इसमें बंध जाता है और उस परमेश्वर को जानकर। यहां 'जानकर' का मतलब, पूर्ण रूप से भगवान को वही जानता है, जो उन्हें प्राप्त किया हो। तो परमेश्वर को प्राप्त करके, सब प्रकार के बंधनों से मुक्त हो जाता है। यानी मनुष्य माया के आधीन है, और असमर्थ है, इससे मुक्त होने में। तथा मनुष्य बहुत प्रकार के बंधनों से बंधे हुए हैं। जैसे- माया का बंधन, त्रिकर्म का बंधन, त्रिदोष का बंधन, पंचकोश का बंधन, काल का बंधन इत्यादि। तो इन बंधनों से मुक्ति का नाम 'मोक्ष' है। ये वेदों के शब्दों में हमने समझा। अस्तुः अब तक हम समझ चुके हैं कि कर्म ही मूल कारण है।

      अगर मनुष्य सभी कर्मों से छुटकारा पा लेता है, तो उसे मोक्ष मिल जाए। लेकिन कर्म करने वाले मनुष्य माया के 3 गुण जिसे 'त्रिगुण' कहते हैं, उसके आधीन हैं।  
      सात्विक कर्म, राजस कर्म और तमस कर्म। अतः यदि मनुष्य सभी कर्मों या कर्मो बंधन या दूसरे शब्दों में कहें, 'पुनर्जन्म' से मुक्ति मिलती  है तो 'मोक्ष' की प्राप्ति होती है। अब इस बात को कुछ स्थानों पर बहुत संक्षेप में कहते हैं "कि जो माया से मुक्त हो गया, उसने मोक्ष प्राप्त कर लिया", क्योंकि मनुष्य के कर्म का कारण माया के 3 गुण हैं इसलिए दोनों तरह की बातें सही है।

*  मोक्ष की आवश्यकता क्यों है; क्यों हम मोक्ष को प्राप्त करें ?

       इसका सीधा सा उत्तर है कि हम बिना किसी के कहे ही मोक्ष चाहते हैं, "इसीलिए प्राप्त करना है"। यानी हम दुखों से मुक्त होना चाहते हैं। सभी चाहते हैं, चाहे वो आस्तिक हो या नास्तिक हो, और आनंद की अभिलाषा करते हैं, सुख की अभिलाषा करते हैं, चाहे वो आस्तिक हो या नास्तिक हूं। तो अब ये दोनों ही अगर किसी को मिल जाए तो कहा जाता है कि वह 'मोक्ष' को प्राप्त हो गया। तो कोई भी व्यक्ति दुख नहीं चाहते। सभी आस्तिक, नास्तिक 'आनंद' ही चाहते हैं। इसलिए ऐसा कहना उचित ही है कि सब 'मोक्ष' चाहते हैं।

      ध्यान रहे.. 'मोक्ष' एक अवस्था है। जिसके लिए किसी तरह के शरीर त्याग की जरूरत नहीं है। यह पूर्णतया किसी जीवन में  सशरीर सहित हासिल की जाने वाली स्थिति है। भगवान की प्राप्ति या मोक्ष मरने से पहले प्राप्त करना होता है; क्योंकि मरने के बाद कर्म करने का अधिकार नहीं है। मरने से पहले मोक्ष की अवस्था अगर किसी को प्राप्त हो गई तो वह मरणोपरांत 'परम गति' को प्राप्त होगा।

       उदाहरण हैः तुलसीदास, सूरदास, मीरा, प्रहलाद, परीक्षित आदि भक्तों ने पहले मोक्ष प्राप्त किया। पहले भगवान को प्राप्त किया। फिर संसार को छोड़ने के बाद परम गति को प्राप्त हुए।
मोक्ष और मुक्ति में अंतर मोक्ष और मुक्ति में अंतर Reviewed by Tarun Baveja on July 21, 2020 Rating: 5

3 comments:

  1. अद्भुत ज्ञान

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  2. अद्भुत ज्ञान अद्भुत ज्ञान अद्भुत ज्ञान अद्भुत ज्ञान

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  3. सही रास्ता दिखाने वाला।

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