★अमीर आदमी को गुरु नानक देव जी का अनूठा संदेश- गुरु नानक देव जी पैदल गांव-गांव घूमते हुए लोगों को उपदेश दे रहे थे। एक बहुत ही दयालु और साहसी व्यक्ति, दोनों ही चीजें हैं और हम उन्हें पसंद करते हैं; क्योंकि वो हर समय मुस्कुराते रहने वाले उन सोम्य संतों में नहीं हैं। वो जानते हैं कि कब सख्त होना है और कब नरम। असली गुरू...
तो एक दिन वो मेहमान थे। उस इलाके के एक बहुत अमीर आदमी के घर। जब वो कुछ दिन वो उसी घर में रहे तो जाते वक्त, उन्होंने उस आदमी को एक सुई दी, सिलाई वाली सुई। सुई देते हुए उन्होंने कहा, इसे तुम अपने पास रखो। जब तुम दोबारा मुझसे मिलो, तब ये मुझे लौटा देना। तब तक इसे तुम अपने पास रखो।
सुई, सोने की नहीं मामूली सी सुई। उस आदमी ने उसे लेकर अपने पास रख ली। गुरु के जाने के बाद उसने पत्नी से कहा कि "गुरु ने मुझे एक सुई दी है", जो मुझे संभाल कर रखनी है और बाद में उन्हें वापस करनी है। उसकी पत्नी जो उससे थोड़ी ज्यादा समझदार थी। अक्सर उन्हें ऐसा ही लगता है। वो बोली तुम बड़े मूर्ख हो, तुमने गुरु से सुई क्यों ली। अगर तुम ऐसे इंसान से कुछ लेते हो और मान लो.. वो बहुत बुढ़े हैं, अगर वो मर गए, तुम उसे सुई वापस नहीं कर पाए तो क्या करोगे। तुम हमेशा के लिए कर्जदार हो जाओगे।
तो वो गुरु के पीछे निकल पड़ा। गुरु तेज चलते हैं। लेकिन धीरे-धीरे डेढ़-दो महीनों के बाद वो आदमी आखिर गुरु के पास पहुंच ही गया और बोला। हे गुरुदेव.. मैं इस सुई को अपने पास नहीं रखना चाहता क्योंकि वैसे भी आप बहुत बुढ़े हैं, अगर आप मर गए तो मैं हमेशा के लिए कर्जदार हो जाऊंगा और मुझे पता है कि मैं इस सुई को स्वर्ग ले जाकर, आपको वहां नहीं लोटा सकता।
आदमी को बात समझ में आ गई, वो उनके पैरों में गिर गया और अपने घर लौट गया। वो जो कुछ बेच सकता था, उसने बेच दिया। बस उतना रखा जो उसके और उसके परिवार के लिए जरूरी था; क्योंकि पूरा समाज गरीबी से पीड़ित था। इसलिए उसने अपने आसपास के लोगों के लिए कल्याणकारी कामों में खुद को लगा दिया। इतने वक्त लोग गरीबी की मार झेल रहे थे और वो धन दौलत जमा करने में लगा था।
ये दुनिया बहुत छोटी है। ये धरती एक सीमित संसाधन है। अगर हर व्यक्ति लगातार जमा करने पर उतारू हो जाए तो सिर्फ झगड़ा ही हो सकता है, सिर्फ दर्द ही मिल सकता है। जब तक हर इंसान अपने अंदर तय नहीं कर लेता कि मुझे कितने की जरूरत है। मैं इससे आगे नहीं जाऊंगा। अपनी बाकी काबिलियत का इस्तेमाल, मैं लोगों के कल्याण के लिए करूंगा।
अगर किसी इंसान में ये समझ नहीं है तो वो अपने लिए और दुनिया के लिए तबाही है। धरती पर तबाही, भूकंप, ज्वालामुखी या सुनामी नहीं है। असली तबाही इंसान की अज्ञानता है। सिर्फ ये ही एक तबाही है। अज्ञानता ही एकमात्र तबाही है। ज्ञानोदय की एकमात्र समाधान है। वाकई.. कोई और समाधान नहीं है।
तो अगर आध्यात्मिक प्रक्रिया को जीवित होना है। बात रिननसिएशेन की नहीं है, बात है समझदारी से जीवन जीने की। विदेशी लोगों ने गलत शब्दों का इस्तेमाल किया है। भारतीय भाषाओं में रिननसिएशन जैसा कोई शब्द नहीं है।अगर आपको पता न हो। हां..
संस्कृत में रिननसिएशन जैसा कोई शब्द नहीं। विदेशी लोगों ने यहां आकर इस आदमी ने रिननसिएशन कर दिया हैं। नहीं.. उसने पूरे ब्रह्मांड को गले लगा लिया और आपको लगता है कि उसने रिननसिएशन किया है। ये आपकी समझ हैं; क्योंकि आप जीवन के बारे में सोच ही नहीं सकते, कुछ चीजों पर हक जतांए बिना।
तो एक दिन वो मेहमान थे। उस इलाके के एक बहुत अमीर आदमी के घर। जब वो कुछ दिन वो उसी घर में रहे तो जाते वक्त, उन्होंने उस आदमी को एक सुई दी, सिलाई वाली सुई। सुई देते हुए उन्होंने कहा, इसे तुम अपने पास रखो। जब तुम दोबारा मुझसे मिलो, तब ये मुझे लौटा देना। तब तक इसे तुम अपने पास रखो।
सुई, सोने की नहीं मामूली सी सुई। उस आदमी ने उसे लेकर अपने पास रख ली। गुरु के जाने के बाद उसने पत्नी से कहा कि "गुरु ने मुझे एक सुई दी है", जो मुझे संभाल कर रखनी है और बाद में उन्हें वापस करनी है। उसकी पत्नी जो उससे थोड़ी ज्यादा समझदार थी। अक्सर उन्हें ऐसा ही लगता है। वो बोली तुम बड़े मूर्ख हो, तुमने गुरु से सुई क्यों ली। अगर तुम ऐसे इंसान से कुछ लेते हो और मान लो.. वो बहुत बुढ़े हैं, अगर वो मर गए, तुम उसे सुई वापस नहीं कर पाए तो क्या करोगे। तुम हमेशा के लिए कर्जदार हो जाओगे।
गुरु से तुमने सुई ली ही क्यों? "उनके जैसे इंसान से तुम्हें कुछ भी नहीं लेना चाहिए। हम कुछ दे वो ठीक है। लेकिन उनके जैसे व्यक्ति से कभी कुछ मत लेना। अगर वो मर गए, तो तुम ये सुई स्वर्ग नहीं ले जा सकते, उन्हें देने के लिए। सुई को स्वर्ग में लेकर जाना और वंहा देना असंभव है तो तुम हमेशा के लिए कर्जदार हो जाओगे और उस कर्ज से तुम मुक्त नहीं हो पाओगे, और तुम्हें हजारों जन्म लेने पड़ सकते हैं।" ये कोई अच्छी बात नहीं है। फौरन जाकर किसी तरह उन्हें ढूंढो और ये सुई उन्हें लौटा दो।
तो वो गुरु के पीछे निकल पड़ा। गुरु तेज चलते हैं। लेकिन धीरे-धीरे डेढ़-दो महीनों के बाद वो आदमी आखिर गुरु के पास पहुंच ही गया और बोला। हे गुरुदेव.. मैं इस सुई को अपने पास नहीं रखना चाहता क्योंकि वैसे भी आप बहुत बुढ़े हैं, अगर आप मर गए तो मैं हमेशा के लिए कर्जदार हो जाऊंगा और मुझे पता है कि मैं इस सुई को स्वर्ग ले जाकर, आपको वहां नहीं लोटा सकता।
तो गुरु नानक देव जी बोले, "तो तुम्हें पता है तुम ये सुई स्वर्ग नहीं ले जा सकते। तुम्हें ये पता है, है ना.." वो बोला, हां.. जब तुम जानते हो कि तुम सुई भी नहीं ले जा सकते तो तुम इतनी सारी चीजें क्यों जमा कर रहे हो। तुम उसमें से कुछ भी नहीं ले जा पाओगे। अगर तुम सुई नहीं ले जा सकते तो निश्चित रूप से कुछ भी नहीं ले जा सकते।
आदमी को बात समझ में आ गई, वो उनके पैरों में गिर गया और अपने घर लौट गया। वो जो कुछ बेच सकता था, उसने बेच दिया। बस उतना रखा जो उसके और उसके परिवार के लिए जरूरी था; क्योंकि पूरा समाज गरीबी से पीड़ित था। इसलिए उसने अपने आसपास के लोगों के लिए कल्याणकारी कामों में खुद को लगा दिया। इतने वक्त लोग गरीबी की मार झेल रहे थे और वो धन दौलत जमा करने में लगा था।
ये दुनिया बहुत छोटी है। ये धरती एक सीमित संसाधन है। अगर हर व्यक्ति लगातार जमा करने पर उतारू हो जाए तो सिर्फ झगड़ा ही हो सकता है, सिर्फ दर्द ही मिल सकता है। जब तक हर इंसान अपने अंदर तय नहीं कर लेता कि मुझे कितने की जरूरत है। मैं इससे आगे नहीं जाऊंगा। अपनी बाकी काबिलियत का इस्तेमाल, मैं लोगों के कल्याण के लिए करूंगा।
अगर किसी इंसान में ये समझ नहीं है तो वो अपने लिए और दुनिया के लिए तबाही है। धरती पर तबाही, भूकंप, ज्वालामुखी या सुनामी नहीं है। असली तबाही इंसान की अज्ञानता है। सिर्फ ये ही एक तबाही है। अज्ञानता ही एकमात्र तबाही है। ज्ञानोदय की एकमात्र समाधान है। वाकई.. कोई और समाधान नहीं है।
तो अगर आध्यात्मिक प्रक्रिया को जीवित होना है। बात रिननसिएशेन की नहीं है, बात है समझदारी से जीवन जीने की। विदेशी लोगों ने गलत शब्दों का इस्तेमाल किया है। भारतीय भाषाओं में रिननसिएशन जैसा कोई शब्द नहीं है।अगर आपको पता न हो। हां..
संस्कृत में रिननसिएशन जैसा कोई शब्द नहीं। विदेशी लोगों ने यहां आकर इस आदमी ने रिननसिएशन कर दिया हैं। नहीं.. उसने पूरे ब्रह्मांड को गले लगा लिया और आपको लगता है कि उसने रिननसिएशन किया है। ये आपकी समझ हैं; क्योंकि आप जीवन के बारे में सोच ही नहीं सकते, कुछ चीजों पर हक जतांए बिना।
पृथ्वी का एक हिस्सा मेरा है, इसके बिना अब जी नहीं सकते। किसी ने पूरे ब्रह्मांड को गले लगा लिया है। इसलिए उसे ऐसा लगा ही नहीं कि उसने कुछ इकट्ठा करना चाहिए; क्योंकि सभी सितारे उसके हैं। पूरी आकाशगंगा उसकी है, उसे कुछ भी इकट्ठा करके अपने झोले या बैंक में रखना जरूरी नहीं लगता, उसे ऐसा लगा ही नहीं।
गुरु नानक देव जी ने दिया अमीर आदमी को एक अनोखा संदेश
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 21, 2020
Rating:

No comments: