* प्राचीन काल में भारत की सीमा कहां तक थी: प्राचीन आर्यों की भूमि आर्यव्रत, जो आगे चलकर 'भारत' के नाम से जानी गई और आज जिसे हम 'इंडिया' कहते हैं। रामायण, महाभारत के समय में जिसे 'आर्यव्रत' कहा जाता था। वह आर्यों का देश कहां तक फैला था, उसका विस्तार कहां तक था, कौन कौन देश प्राचीन आर्यव्रत की सीमा में आते थे, आज वो कौन से देश है, जो कभी आर्यव्रत के अधिकार में थे, जो आर्यव्रत की भूमि के नाम से जाने जाते थे।
यूं तो रामायण और महाभारत के अनुसार उस समय संपूर्ण पृथ्वी पर ही भारत देश का राज्य था। लेकिन यह पृथ्वी हमारे अधिकार में होने के बाद भी आर्यव्रत की सीमा के बाहर के देशों को स्वतंत्र ही रखा जाता था।
दुनिया के सभी देश इसी भारत देश के मित्र बने हुए थे। लेकिन जिसे हम 'आर्यव्रत' कहते हैं, उस देश का विस्तार कहां तक था। इसे जानने के लिए हमें आज से 1 अरब 96 करोड़ वर्ष पहले जाना पड़ेगा; क्योंकि उस समय आर्यव्रत की नींव पड़ी थी।
आर्य यानी 'श्रेष्ठ लोग', 'अच्छे और पवित्र लोग', जिस देश में जाकर बसे उस देश का नाम 'आर्यव्रत' हुआ और यहीं से अनेकों लोग पृथ्वी के अलग-अलग भू-भाग पर जाकर बसने लगे और अन्य देशों का निर्माण हुआ। आर्यव्रत के सबसे पहले राजा महर्षि "मनु" से लेकर, महाभारत काल तक राजा "युधिष्ठिर" तक अनेकों राजा इस देश का पालन करते रहे। महाभारत के युद्ध के बाद ही यह देश अनेकों भागों में बट गया और आर्यव्रत कहीं खो गया।
असल में आर्यव्रत की सीमा कहां तक थी और आज वो कौन से बड़े-बड़े देश है, जो आर्यव्रत की सीमाओं में आते थे; इस बारे में मनु स्मृति में महर्षि मनु ने, आर्यव्रत देश का वर्णन करते हुए बताया है कि 'देव' यानी 'दिव्य गुण' और आचरण वाले विद्वानों के निवास से युक्त सरस्वती और द्विष्ट गति नदी प्रदेशों के बीच का जो स्थान है। उस सुशोभित देश को ब्रह्माव्रत या आर्यव्रत कहा गया है।
इसे आगे एक्सप्लेन करते हुए, ऋषि दयानंद ने लिखा है; कि उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विंध्यांचल, पश्चिम में अटक नदी, पूर्व में द्विष्ट गति नदी। जो नेपाल के पूर्व भाग के पहाड़ से निकल कर बंगाल के आसाम के पूर्व और ब्रह्मा के पश्चिम और होकर दक्षिण के समुंद्र में मिलती है, जिसे ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। जो कि उत्तर के पहाड़ों से निकलकर, दक्षिण के समुंद्र की खाड़ी में मिलती है, यानी इन नदियों की सीमाओं और इनके बीच का प्रदेश आर्यव्रत था।
क्षेत्रफल की दृष्टि से आर्यव्रत पूरी दुनिया में सबसे अधिक था। जिस तरह आज अमेरिका, चीन और रूस। जैसे- देश विश्व के बड़े पावरफुल देशों में आते हैं, उस तरह आर्यव्रत पूरी पृथ्वी में सबसे धनवान, सबसे पावरफुल देश था। इस देश से पूरी दुनिया में लोग जाकर बसें, इसी देश से पूरी दुनिया के लोगों ने बोलना, चलना सीखा है। इस देश को 'स्वर्ण भूमि' भी कहा जाता था।
दुनिया के सभी देश इसी भारत देश के मित्र बने हुए थे। लेकिन जिसे हम 'आर्यव्रत' कहते हैं, उस देश का विस्तार कहां तक था। इसे जानने के लिए हमें आज से 1 अरब 96 करोड़ वर्ष पहले जाना पड़ेगा; क्योंकि उस समय आर्यव्रत की नींव पड़ी थी।
आर्य मान्यता के अनुसार इंसान की उत्पत्ति इतने वर्षों पहले 'र्तीष्णटक' यानी 'तिब्बत' में हुई थी और तब तिब्बत के अलावा पूरी पृथ्वी पर जल ही जल था। संपूर्ण पृथ्वी जलमग्न थी। मनुष्यों के उत्पन्न होने तक ईश्वर ने वेदों का ज्ञान 4 ऋषियों को दिया। जब धीरे-धीरे पृथ्वी पर जल का स्तर कम होता गया, तब तिब्बत में बसी मनुष्य जाति जिस देश में आकर बसी उसका नाम 'आर्यव्रत' था।
आर्य यानी 'श्रेष्ठ लोग', 'अच्छे और पवित्र लोग', जिस देश में जाकर बसे उस देश का नाम 'आर्यव्रत' हुआ और यहीं से अनेकों लोग पृथ्वी के अलग-अलग भू-भाग पर जाकर बसने लगे और अन्य देशों का निर्माण हुआ। आर्यव्रत के सबसे पहले राजा महर्षि "मनु" से लेकर, महाभारत काल तक राजा "युधिष्ठिर" तक अनेकों राजा इस देश का पालन करते रहे। महाभारत के युद्ध के बाद ही यह देश अनेकों भागों में बट गया और आर्यव्रत कहीं खो गया।
असल में आर्यव्रत की सीमा कहां तक थी और आज वो कौन से बड़े-बड़े देश है, जो आर्यव्रत की सीमाओं में आते थे; इस बारे में मनु स्मृति में महर्षि मनु ने, आर्यव्रत देश का वर्णन करते हुए बताया है कि 'देव' यानी 'दिव्य गुण' और आचरण वाले विद्वानों के निवास से युक्त सरस्वती और द्विष्ट गति नदी प्रदेशों के बीच का जो स्थान है। उस सुशोभित देश को ब्रह्माव्रत या आर्यव्रत कहा गया है।
इसे आगे एक्सप्लेन करते हुए, ऋषि दयानंद ने लिखा है; कि उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विंध्यांचल, पश्चिम में अटक नदी, पूर्व में द्विष्ट गति नदी। जो नेपाल के पूर्व भाग के पहाड़ से निकल कर बंगाल के आसाम के पूर्व और ब्रह्मा के पश्चिम और होकर दक्षिण के समुंद्र में मिलती है, जिसे ब्रह्मपुत्र नदी कहा जाता है। जो कि उत्तर के पहाड़ों से निकलकर, दक्षिण के समुंद्र की खाड़ी में मिलती है, यानी इन नदियों की सीमाओं और इनके बीच का प्रदेश आर्यव्रत था।
इस वर्णन के अनुसार दक्षिण दिशा कि पश्चिमी और पूर्वी समुद्री बीच का क्षेत्र आर्यव्रत की सीमा में आता था। यानी कि श्रीलंका भी हमारी सीमा में था। वही उत्तर में नेपाल, तिब्बत और चीन देश भी आर्यव्रत की सीमा में थे। उत्तर में पश्चिमी देशों में अफगानिस्तान और ईरान भी आर्यव्रत की सीमा में आते थे और उत्तर पूर्वी दिशा में 'बर्मा' तक आर्यव्रत देश बसा था। इस तरह आज के अफगानिस्तान, ईरान, चीन और श्रीलंका, कजाकिस्तान जैसे देश भी आर्यव्रत देश की सीमा में थे। आपको जानकर आश्चर्य होगा, महाभारत में 'चीन देश' का प्राचीन नाम भी 'चीन' ही बताया गया है।
क्षेत्रफल की दृष्टि से आर्यव्रत पूरी दुनिया में सबसे अधिक था। जिस तरह आज अमेरिका, चीन और रूस। जैसे- देश विश्व के बड़े पावरफुल देशों में आते हैं, उस तरह आर्यव्रत पूरी पृथ्वी में सबसे धनवान, सबसे पावरफुल देश था। इस देश से पूरी दुनिया में लोग जाकर बसें, इसी देश से पूरी दुनिया के लोगों ने बोलना, चलना सीखा है। इस देश को 'स्वर्ण भूमि' भी कहा जाता था।
आर्यव्रत देश का ही पूरी पृथ्वी पर राज्य था। अन्य देशों में छोटे-छोटे मांडलिक राजा रहते थे। वे सब इस देश के अनुसार चलते थे। इसलिए पूरी पृथ्वी को चारों ओर से जीतने से, यहां अनेंको चक्रवर्ती राजा हुए। सृष्टि के सबसे पहले 'स्वयंभुह मनु' से लेकर 'पांडवो' तक, इस देश का संपूर्ण पृथ्वी पर राज्य रहा।
लेकिन महाभारत के युद्ध के बाद, यह देश धीरे-धीरे अलग-अलग खंड में बांटता गया और आज ये 'आर्यव्रत' से 'इंडिया' बन चुका है। जिसकी सीमा काफी कम हो चुकी है। प्राचीन आर्यव्रत की सीमाओं को जानने के बाद सवाल यह उठता है, कि क्या यह देश फिर से आर्यव्रत बन सकता है। यह देश फिर से विश्व गुरु कैसे बन सकता है।
महाभारत के समय भारत की सीमाएं कहां तक थी
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 24, 2020
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