* ब्रह्मांड कैसे बना: हमारा ब्रह्मांड कैसे पैदा हुआ है, ये एक मिस्ट्री है। यह सवाल हर इंसान के मन में आना नेचुरल है। लाखों सालों से इंसान इस बारे में सोचता आया है। लेकिन अगर, मैं कहूं कि लाखों सालों पहले ही इस सवाल का जवाब वेदों में दिया जा चुका है तो आप क्या कहेंगे।
वेदों में ना सिर्फ यह बताया है, कि ब्रह्मांड कैसे बना है, बल्कि यह भी बताया है कि सबसे पहले क्या था, यह ब्रह्मांड खत्म कैसे होगा, हम सब कहां से आए, आखिर प्रमाण बना ही क्यों, क्या यह ब्रह्मांड पहली बार बना है, या पहले भी ऐसे ब्रह्मांड बने थे, हमारा भविष्य क्या है, हम अंत में कहां जाएंगे, तो आइए हम ब्रह्मांड के निर्माण के साथ इन सब सवालों के जवाब वेदों से देखते हैं। वेद क्या कहते हैं।
महादेव शिव, महर्षि ब्रह्मा क्या कहते हैं। ब्रह्मांड की शुरुआती अवस्था को जानने के लिए, आइए हम इस ब्रह्मांड की फिल्म के जीरों मोमेंट पर चलते हैं। महाभारत में महादेव शिव कहते हैं, कि सृष्टि की शुरुआत में, संपूर्ण ब्रह्मांड अपने मूल कारण यानी पदार्थ की फंडामेंटल मूल अवस्था प्रकृति के रूप में था। जो पदार्थ की प्राकृतिक अवस्था है। इसे महादेव ने "नित्य" बताया, यानी पदार्थ कभी पूरी तरह नष्ट नहीं होता।
तब ऐसा पदार्थ पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ था। उसमें कोई क्रिया नहीं थी। क्रिया के अभाव में तब कोई फोर्स या बल भी नहीं था। उसी पदार्थ से पूरी सृष्टि बनाई जाती है। वह अत्यंत सूक्ष्म था। पूरे अनंत आकाश में फैला हुआ पदार्थ, आकाश के साथ एक जैसा हो गया था। वह हर जगह एक समान था। वह पदार्थ अव्यक्त था।
महादेव कहते हैं, कि उसे पूरी तरह जाना नहीं जा सकता; क्योंकि तब वह पदार्थ सोया हुआ सा रहता है, यानी कि उसके गुण या प्रॉपर्टीज स्लीपिंग मोड में चली जाती है। इसी बात को भगवान "मनु" कहते हैं- यह पूरा ब्रह्मांड सृष्टि के पूर्व गहन अंधकार में था। बिना लक्षणों वाला था, न जानने योग्य था। अर्तकीय यानी वह ऐसा आता था कि उस पर विशेष प्रकार से र्तक नहीं किया जा सकता। वह हर जगह सोया हुआ सा जान पड़ता था यानी कि उसकी प्रॉपर्टीज ही स्लीपिंग मोड में थी।
महर्षि ब्रह्मा कहते हैं, वह सनातन पदार्थ ऐसी अंधकार की अवस्था में होता है। जैसे, अंधकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। सृष्टि की सभी क्रियाएं इसी पदार्थ से उत्पन्न होती हैं। इन सब वचनों से पता चलता है कि सृष्टि की शुरुआत में समूचे ब्रह्मांड, अपने कारण रूप प्राकृतिक अवस्था में पूरे ब्रह्मांड में फैला हुआ था। तब न कोई क्रिया थी और न कोई बल था। समय का व्यवहार नहीं था, ना प्रकाश था, घोर अंधकार था। तापमान बिलकुल जीरो था। उस पदार्थ के सभी गुण व्यक्त नहीं थे, सोए हुए थे। इसलिए तब कुछ भी ना होने जैसा लगता है, लेकिन वास्तव में वह था। वह पदार्थ ना कण रूप में था, ना तरंग रूप में, ना कम्पन्न रूप में, वह अव्यक्त था।
इसलिए वेद कहते हैं। वेद के मंत्र में बताया गया है, कि सृष्टि से पहले शुरुआत में सबसे पहले ना सत था, ना असत। सत यानी कि यह जगत, ब्रह्मांड गैलेक्सी, ग्रह, तारे, एटम, मॉलिक्यूल, न्यूट्रॉन, प्रोटॉन ये सब नहीं थे। असत भी नहीं था यानी की शून्य या वेक्यूम स्पेस भी नहीं था; क्योंकि पूरे खाली स्थान को, वैक्यूम स्पेस को, सृष्टि से पहले प्रकृति ने हर जगह धर रखा था। इसलिए खाली स्थान भी नहीं रहा। वह पदार्थ अव्यक्त था।
महर्षि वशिष्ठ, महाभारत में इस पदार्थ को "अविद्या" कहते हैं; क्योंकि यह विद्यमान होते हुए भी है, अविद्यमान जैसा था। इसीलिए कहते हैं, सबसे पहले सोच कर देखें, कि क्या ऐसा पदार्थ जिसमें कोई गति ही नहीं। जो खुद सोया हुआ है। वह क्या अपने आप ब्रह्मांड को पैदा कर सकता है, नहीं.. इसलिए ब्रह्मांड को पैदा करने वाली एक और चेतन सत्ता होती है। जिसे ईश्वर कहते हैं। यहां ईश्वर की सत्ता सिद्ध होती है, ना कि यह किसी की जबरन कल्पना है।
फिर यह सृष्टि कैसे पैदा होती है, क्या होता है कि सृष्टि उत्पन्न हो जाती है। तब ईश्वर में काम करने की इच्छा उत्पन्न होती है कि वह जीवो के लिए सृष्टि की रचना करें। तब वो ईश्वर जो 'सर्वव्यापक' है। उस सोयी हुई प्रकृति को 'काल तत्व' के माध्यम से जगाता है। उस प्रकृति की साम्य अवस्था को भंग कर देता है। उसमें अत्यंत सूक्ष्म हलचल उत्पन्न कर देता है। जिससे सोयी हुई प्रकृति के गुण प्रकट होने लगते हैं।
सबसे पहले अन्नत आकाश में फैली हुई प्रकृति में हर जगह, हर क्षण एक सूक्ष्म लहर जैसी रश्मि उत्पन्न होती है। जिसे 'ओम रश्मि' कहा जाता है। यह 'ओम रश्मि' 'काल तत्व' का जागृत रूप होती है। यह प्रकृति की अवस्था को निरंतर बदलती रहती है। जिससे प्रकृति अलग-अलग रूपों में परिवर्तित होती रहती है। अब संपूर्ण अनंत आकाश में हर जगह सूक्ष्म स्पंदन रूप में ब्रह्मांड की अवस्था होती है। लाखों सालों तक ब्रह्मांड इस कंपन रूपी अवस्था में रहता है।
* ब्रह्मांड कब, कैसे और कौन सी अवस्था में पहुंचता है। उसके बारे में सांख्य दर्शन में मर्हष 'कपिल' कहते हैं- शुरुआत में प्रकृति के साम्य अवस्था के भंग होते ही, वह प्रकृति महत तत्व में बदलती है। महत तत्व से अहंकार, अहंकार से पंचतंत्र मात्रा और फिर पंचमहाभूत उत्पन्न होते हैं। भगवान मनु के अनुसार 'पंचमहाभूत' में सबसे पहले ब्रह्मांड में आकाश तत्व की उत्पत्ति होती है, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से पृथ्वी। यानी की मॉलिकल्स की अवस्था में, ब्रह्मांड पहुंच जाता है। जो ब्रह्मांड सबसे पहले प्रकृति के रूप में था। वही लाखो वर्ष तक कंपन रूप में रहता है।
फिर कंपन रूप से अग्नि रूप में यानी ब्रह्मांड डबल नेचर का हो जाता है और फिर उस अग्नि अवस्था से जल और पृथ्वी यानी पार्टिकल नेचर में उसका परिवर्तन होता है। यह ब्राह्मड अलग-अलग अवस्थाओं में ट्रांजैक्शन करता है। पूरे ब्रह्मांड को इन अवस्थाओं में परिवर्तित करने वाले 'ओम रश्मि' होती है। इसलिए उपनिषद में कहा गया है कि यह संपूर्ण ब्रह्मांड ओम का ही विस्तार है।
अब तक हमने जान लिया कि ब्रह्मांड सबसे पहले कैसे था, यह कैसे बना, अब यह ब्रह्मांड कैसे नष्ट होगा। इस ब्रह्मांड के पैदा होने की जो प्रक्रिया हमने जानी है। यदि उसी को उल्टा करें तो वह इस ब्रह्मांड के नष्ट होने की प्रक्रिया है यानी कि यह ब्राह्मड धीरे-धीरे उसी प्रकृति पदार्थ में फिर से विलीन हो जाता है। जब इसका विनाश होता है। अपने कारण में विलीन होना ही नाश है। ब्रह्मांड के नष्ट होने की प्रक्रिया भी लाखों-करोड़ों सालों में होती है।
इस संपूर्ण प्रक्रिया को एक साथ यदि देखा जाए, तो ऐसा लगेगा कि जैसा संपूर्ण ब्रह्मांड में स्वयं को ही निगल लिया हो। प्रत्येक वर्तमान ब्रह्मांड की फिल्म जीरो सेकेण्ड से शुरू होकर फिर से जीरो सेकंण्ड पर ही खत्म होती है। यह ब्रह्मांड, पहला ब्रह्मांड नहीं है। इससे पहले अनेंको, असंख्य ब्राह्मण बन चुके हैं और आगे भी ऐसे अनंत ब्रह्मांड बनते रहेंगे। प्रकृति का ब्रह्मांड में परिवर्तन और ब्रह्मांड का पुनः प्रकृति में परिवर्तन एक साइक्लिक प्रोसेस है। जो हमेशा से चलती आ रही है।
लेकिन हम कहां से आए, हमारा भविष्य क्या है, क्या हम यानी आत्माएं ब्रह्मांड की शुरुआत के मोमेंट पर भी थे। 'नासिदय सूत्र' के 'पांचवे मंत्र' में भी बताया गया है कि सबसे पहले प्रकृति अवस्था के समय आत्माएं भी थी। किन्तु वे निष्क्रिय अवस्था में थी। अब तक के विवरण से यह पता चल गया कि सबसे पहले तीन वस्तुएं थी। अव्यक्त प्रकृति, ईश्वर और आत्मांए। कुछ आत्मा 'मोक्ष' में होती हैं। कुछ आत्माओं के पूर्व सृष्टि के कर्म फल को देने के लिए, फिर से नई सृष्टि बनती है। इसलिए सबसे पहले प्रकृति अवस्था के समय में जो आत्माएं थी, उनके पूर्व सृष्टि के कर्मफल बाकी थे। जिसके लिए नई सृष्टि बनाई जाती है। इसलिए यह सृष्टि हमारे लिए बनाई गई, ताकि हम कर्म कर सके और कर्म फल हमें प्राप्त हो।
* हमारा भविष्य क्या है: वेदों के अनुसार अपने कर्मों के बंधनों से छूटना ही हमारा लक्ष्य है। लेकिन इसके लिए हमें ब्रह्माड और सृष्टि के विज्ञान को जानना ही पड़ेगा। इसीलिए वेद कहते हैं, कि जो लोग सिर्फ ब्राह्मड और भौतिक पदार्थ के विज्ञान को ही समझते रहते हैं, उनका भविष्य अंधेरे में है। लेकिन जो लोग ब्रह्मांड को छोड़कर सिर्फ भगवान या अध्यात्म में लगे रहते हैं। उनका भविष्य और भी ज्यादा गहन अंधकार में है। तो वेद कहता है, कि दोनों को साथ में लेकर चलना चाहिए। बिना ब्रह्मांड के ईश्वर को नहीं समझ सकते और बिना ईश्वर के ब्रह्मांड को पूरी तरह नहीं समझ सकते। इसीलिए यदि हमें कर्म के बंधन से मुक्त होना है, तो पूरे ब्रह्मांड को समझने के साथ ईश्वर को भी समझना होगा। दोनों की पैरारल स्टडी करनी होगी। तभी हमारा भविष्य अच्छा रहेगा।
शुरुआत में पूरी तरह ब्रह्मांड कैसे अलग-अलग अवस्थाओं में बदलकर उत्पन्न होता है। यह सब वेदों के 'अत्रे ब्राह्मण ग्रंथ' में बताया गया है। इस ग्रंथ पर वैदिक विज्ञान 'आचार्य अग्निवृत' जी ने 10 साल तक रिसर्च करके पूरी एक नई थ्योरी दी है, जिसे वैदिक रश्मि थ्योरी कहा जाता है। जिसे बीएचयू वाराणसी के साइंटिफिक कॉन्फ्रेंस में प्रेजेंट किया गया था।
वेदों के अनुसार ब्रह्मांड कैसे बना
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 27, 2020
Rating:
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 27, 2020
Rating:
Verry good
ReplyDelete