मन का हो तो अच्छा मन का ना हो तो और भी अच्छा
नमस्कार दोस्तों
अक्सर लोगों को कहते सुना है कि "मन का हो तो अच्छा मन का ना हो तो और भी अच्छा" क्योंकि शायद उस में ऊपर वाले की मर्जी शामिल होती है। बहुत से लोग अपनी असफलताओं को उस ऊपर वाले की मर्जी मान बैठ जाते हैं उसी ऊपर वाले के सहारे कि जब मर्जी उसी की है तो नैया भी वहीं पार लगाएगा। ऐसे लोगों की नैया गोते ही खाती रहती है पार नहीं हो पाती। क्योंकि ऊपर वाले पे भरोसा तो ठीक है लेकिन उसी के भरोसे बैठ जाना ये ठीक नहीं है। लेकिन "मन का हो तो अच्छा और मन का ना हो तो और भी अच्छा" यह कहावत भी किसी ने सोच समझकर ही बनाई है। वो बात अलग है ज्यादातर लोग को यह समझ ही नहीं आई है। चलिए आज आपको इसका मतलब बताता हूं। ये कहावत भी अपनी जगह ठीक है। ये कुछ उदहारण से समझाता हूं।
कॉलेज पूरा करने के बाद मन तो अमिताभ बच्चन साहब का भी ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी पाने का था। कोशिश भी की। लेकिन ऑल इंडिया रेडियो ने उनकी आवाज रेडियो प्रोग्राम के हिसाब से रिजेक्ट कर दी। उनके मन की तो ना हो सकी लेकिन ये रिजेक्शन उन्हें मुंबई ले आया। मुंबई ने उन्हें वो बुलंदी दी कि वो बॉलीवुड के शहंशाह बन गए। वरना मन की होती तो वह शायद ऑल इंडिया रेडियो तक ही सीमित रह जाते। लेकिन आज वो ऑल इंडिया ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में फेमस है। क्योंकि जब मन का ना हो तो शायद ये कायनात आपसे कुछ और बड़ा करवाना चाहती है बशर्ते आप अपनी हार से मन हार कर बैठ ना जाये।
असफल होना आपकी उतनी बड़ी हार नहीं है। जितनी बड़ी हार असफलता के बाद कोशिश ना करना है। हर हार कुछ नया सिखाती है और हर हार जीत के और नजदीक ले जाती है। मजबूत होने में मजा ही तब है जब सारी दुनिया कमजोर कर देने पर तुली हो। "आये हो निभाने जो किरदार जमी पर कुछ ऐसा कर चलो कि जमाना मिसाल दे।" और ऐसे ही मिसाल बनकर दिखाया भारत के मिसाइल मैन भारत के गौरव डॉक्टर 'ए पी जे अब्दुल कलाम साहब' ने। जिनका मन तो इंडियन एयर फोर्स में फाइटर पायलट बनकर देश की सेवा करने का था। लेकिन वो सपना पूरा ना हो सका। क्योंकि इंडियन एयर फोर्स में भर्ती के लिए 25 लोगों में से उन्होंने नोवा स्थान प्राप्त किया। लेकिन इंडियन एयर फोर्स में केवल 8 ही सीट खाली थी।।
लेकिन जब मन का नाम हुआ। तो उन्होंने देश सेवा के दूसरे अफसरों और संभावनाओं को तलाश ना शुरू किया और भारत को डॉक्टर ए पी जे अब्दुल कलाम साहब के जैसा सच्चा देशभक्त, सच्चा सेवक मिला। अगर डॉक्टर साहब के मन की होती तो केवल इंडियन एयर फोर्स उनकी कर्मभूमि बनती। लेकिन शायद ऊपर वाले का मन था कि पूरा देश उनकी कर्मभूमि बने। उन्होंने पूरी कर्मठता और सच्चाई के साथ पूरे देश को अपने कर्म भूमि बनाकर वो उचाई वो सम्मान हासिल किया जो हमारे देश में केवल कुछ ही लोगों को हासिल हुआ है। मन का हो तो अच्छा लेकिन मन का ना हो तो और भी अच्छा। लेकिन मन का ना हो तो उम्मीदे लोगों से मत रखना। क्योंकि यहां मतलब की बातें तो सबको समझ आती है लेकिन बात का मतलब कोई नहीं समझता।
जो लोगों के मतलब की होगी लोग वही कहेंगे और ना करना तुम उम्मीद की वो सही को सही कहेंगे। जापान का एक युवक जिसने अपनी नोकरी के दौरान खाली समय का यूज़ करते हुए, एक नई तरह का इलेक्ट्रिक सॉकेट तैयार किया। उसका मन था कि उसका उस कंपनी का मालिक उस सॉकेट को प्रोडक्शन कर उसे मार्केट में बेचे। लेकिन उस फैक्ट्री के मालिक को वो सॉकेट बेकार लगा और मालिक ने इंकार कर दिया उस सॉकेट को बनाकर बेचने से। युवक का मन तो टूटा लेकिन युवक नहीं टूटा बल्कि उसके इरादे और मजबूत हो गए। उसने अपने सॉकेट को खुद बनाकर मार्किट में बेचने का इरादा कर लिया। इसके लिए उसने अपनी नौकरी छोड़ दी। इस सॉकेट को बनाने के लिए ना केवल घर बल्कि घर का सामान तक बेच डाला। लेकिन मन से हारा नहीं और उस युवक ने सॉकेट से शुरुआत कर, जिस कंपनी की नींव रखी। उसे आप लोग पैनासोनिक के नाम से जानते को हैं।
दोस्तों, जिंदगी में सही लोगों को सही वक्त पर सही कदर नहीं मिलती। इसीलिए अपनी पहचान खुद बनाओ। लोग तुम्हें नहीं समझते इस बात की चिंता बिल्कुल मत करो। क्योंकि अच्छे लोग और अच्छी किताबें हर किसी को समझ नहीं आती। ऐसे ही किसी ने भी नहीं समझा था walt Disney को। जिसका मन तो था कि न्यूज़पेपर में कार्टूननिस्ट बनाना। लेकिन उन्हें हर जगह केवल रिजेक्शन ही मिला। उन्हें ये कहकर रिजेक्ट किया जाता कि तुम्हारे अंदर क्रेटीविटी नहीं है और ना ही कोई खास प्रतिभा। ऐसा कह लोगों ने ना जाने कितनी बार उनका मन तोड़ा। रिजेक्शन से उनका मन टूटा लेकिन मन हारा नहीं। कोशिश जारी रखी उन्होंने और उनकी कोशिश रंग लाई। आज पूरे विश्व में उनके विश्व प्रसिद्ध अनोखे कार्टूनों को और उनकी कंपनी walt Disney को विश्व मे कौन नहीं जानता।
"क्यों हम भरोसा करें गैरों पर। जब चलना है हमें अपने पैरों पर।" और अंत में इतना ही "मन का हो तो अच्छा। मन का ना हो तो और भी अच्छा।" जब मन का ना हो तो उसे ऊपर वाले की मर्जी मान बैठ मत जाना। क्योंकि मन का ना होना में, मर्जी भले ही ऊपर वाले की शामिल हो लेकिन आपका भला आप की कोशिश से ही होगा। क्योंकि "मन के जीते जीत है। मन के हारे हार।" यानी कि जब "मन का ना हो तो मन को ना हार एक और कोशिश कर हर बार।"
दोस्तो, मुझे कमेंट में जरूर बताइएगा कि जब मन का ना हो तो क्या सच में उसमें ऊपर वाले की मर्जी शामिल होती है या खुद की कोशिश में कमी और गलतियों का परिणाम होती है आपकी असफलता। या फिर ऊपर वाले का इशारा की एक और कोशिश करो पहले से बेहतर करो। दोस्तो याद रखो, एक सपने के टूट कर चकनाचूर हो जाने के बाद दूसरा सपना देखने के हौसले को ही जिंदगी कहते हैं। आपकी नसों में ब्लड ग्रुप कोई सा भी हो लेकिन दिलो-दिमाग में बी पॉजिटिव ही रखना। सफलता की संभावनाएं और बढ़ जाएगी।
धन्यवाद।

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