किस धातु के बर्तन में भोजन करना चाहिए
नमस्कार मित्रों
आपने कहानियों में या फिर किसी से यह तो सुना ही होगा कि वह लोग सोने के बर्तनों में भोजन करते थे। चांदी के बर्तन में भोजन करते थे या कुछ सिद्ध महात्मा पुरुष होते थे जो काठ के या मिट्टी के बर्तनों में भोजन करते थे। इस प्रकार ये चीजें प्रचलन में चलती रहती हैं और आप लोग विभिन्न प्रकार से आने जाने में या प्रचलन में कभी भी इधर उधर आपको देखने को भी मिलता होगा कि कुछ लोग अलग-अलग प्रकार से बने हुए बर्तनों का उपयोग करते हैं जैसा सोना है ,चांदी है, कांसा है, तांबा है, लकड़ी है, मिट्टी या कांच इस प्रकार के बर्तन बने होते हैं। उनका उपयोग हमारे दिन में दैनिक जीवन में होता है।
खाने में हमें किस धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए
आयुर्वेद में इनका क्या लाभ बताया गया है कि हम किन-किन बर्तनों का उपयोग किस किस प्रकार से करें। वह हमारे शरीर के लिए लाभदायक होगा। आयुर्वेद इसके बारे में क्या कहता है। आज हम बात करेंगे। इसी के बारे में कि भोजन करने का योग्य पात्र कौन सा है?
सोने के पात्र में खाने के फायदे
आयुर्वेद में सोने के पात्र के बारे में क्या कहा गया है। यदि हम सोने के पात्र में खाना खाते हैं। सोने के पात्र में पीते हैं। तो वह हमारे शरीर को किस प्रकार से लाभ पहुंचाएगा। इसके लिए आयुर्वेद कहता है दोष ह्र्दयम यानी हृदय से संबंधित सभी दोषों का नाश करता है। दृष्टि पदम दृष्टि प्रदान करता है। जो भी हमारे चाक्षु की दृष्टि होती है उसको बढ़ाता है। देखने की क्षमता को बढ़ाता है। पथ्य यानी खाने में भोजन को स्वादिष्ट बनाता है और भोजनम भजयम जो भोजन का स्वाद होता है। उसे यह और बढ़ा देता है इस प्रकार यह सोने के गुण थे।
चांदी के पात्र में खाना खाने के फायदे
चांदी के लिए आयुर्वेद क्या कहता है। यदि हम चांदी की प्लेट है, चांदी का गिलास है, चांदी की चम्मच है इसका प्रयोग करते हैं तो आयुर्वेद में क्या इसका उपयोग बताया गया है? आयुर्वेद कहता है। हमारी आंखों के लिए हितकर है। हमारी नेत्र की ज्योति बढ़ाता है। पित्तह्र्दयम पित्त का हरण करता है। पित्त से सम्बन्धित जितने भी विकार होते हैं। शरीर में उन सभी का नाश करेगा। कफ वात कृतं अर्थात कफ और वात को बढ़ाता है। कफ और वात के संबंधी जितने प्रकार के रोग होते हैं उन्हें यह पुष्ट कर देता है।
कांसे के बर्तन में खाना खाने के फायदे
कांसे के लिए आयुर्वेद क्या कहता है यदि हम कांसे के पात्र में भोजन करते हैं या कांसे के पात्र में पानी का सेवन करते हैं। कांसे के लिए आयुर्वेद कहता है कि यदि हम उसमें भोजन करते हैं तो वह हमें हमारे शरीर को बुद्धि प्रदान करता है। हमारे शरीर में मेधा शक्ति को बढ़ाता है। स्मरण शक्ति को बढ़ाता है और रुचियम जो भी भोजन हम खाते हैं उसे और रुचिकर बनाता है। स्वादिष्ट बनाता है। रक्तपित्त के संबंधी जितने भी प्रकार के रोग होते हैं उन्हें शांत करता है। पित्त के संबंधी जितने रोग होते हैं उन्हें शांत करता है।
पीतल के बर्तन के आयुर्वेदिक गुण
पीतल के लिए आयुर्वेद कहता है। पीतल में यदि हम भोजन करते हैं। पीतल में यदि हम जल का सेवन करते हैं। वह हमारे वात जनक रोगों को उत्पन्न करते हैं। जो भी वात से संबंधित रोग होते हैं उन्हें उत्पन्न करता है।रुक्षमता पैदा करता है। हमारे शरीर में कफ का नाश करता है।
लोहा और कांच के बर्तन
इसी प्रकार आयुर्वेद में लोहा और कांच का भी विभिन्न प्रकार से वर्णन किया है। कि आयस कहा जाता है लोहे को संस्कृत में। तो यदि हम कांच का प्रयोग करते हैं तो क्या असर होता है हमारे शरीर में। लोहे का प्रयोग करते हैं तो हमारे शरीर में क्या लाभ होगा।
इसके लिए आयुर्वेद में कहा गया है। लोहा और कांच का बना हुआ पात्र है। यदि हम उस में भोजन करते हैं। तो वह हमारे शरीर के लिए दृष्टि के लिए शुभ होता है। हमारी दृष्टि बढ़ती है। चक्षुओ के संबंधी जितने भी रोग होते हैं उसे यह नाश करता है। सिद्धि कार्यक्रम अर्थात शरीर को इस प्रकार से निर्माण करता है कि वह हर कार्य करने में संपूर्ण होता है। इसका इस प्रकार से कौन-कौन से रोग है जिनमें यह लाभकारी होगा।
इसके लिए आयुर्वेद कहता है यदि हम लोहे और कांच का प्रयोग करते है खाने में या बर्तनों के रूप में। तो कहते हैं पांडू रोग होता है। उसका नाश करता है। पांडु रोग यानी आयरन डिफीसेंसी हो जाती है। एनीमिया जैसी प्रॉब्लम क्रिएट होती है जिनमें बल कम हो जाता है। उन सभी में बल बढ़ाता है। जिन्हें एनीमिया की कमी होती है आयरन की कमी होती है। उनमें आयरन बढ़ाता है।
पत्थर और मिट्टी के बर्तन
पत्थर और मिट्टी से विभिन्न प्रकार से बने हुए बर्तन आज भी प्रचलन में है। कुछ लोग हैं जो पत्थर के बने हुए कुछ भोजन पात्रों का प्रयोग करता है। कुछ लोग मिट्टी के बर्तनों का आज भी उपयोग करते हैं। प्राय हमारे ग्रामीण संस्कृति में आज भी हमें यह देखने को मिलता है कि मटका है घड़ा है।
आजकल तो ऐसा प्रचलन में चल रहा है कि सभी मिट्टी के पात्रों का ही प्रयोग कर रहे है। तो मिट्टी के पात्रों के लिए आयुर्वेद में हमें क्या बताया गया है। आयुर्वेद कहता है यदि हम पत्थर के बने हुए किसी भी प्रकार के भोजन पात्र का प्रयोग करते हैं। वह हमारे धन और लक्ष्मी का नाश करते हैं।
काठ लकड़ी के बर्तन
यदि हम काठ का प्रयोग करते हैं जो काठ का बना हुआ हो लकड़ी का बना हुआ हो। वो भोजन को रुचि पैदा करता है। कफ का नाश करता है। हमारे शरीर को समपुष्ट रखता है।
मिट्टी के बर्तनों के लिए आयुर्वेद क्या कहता है
मिट्टी के बर्तनों के लिए आयुर्वेद कहता है कि यह हमारे तीन रोगों का नाश करता है। जो पथय कार्यक्रम अर्थात जो हमारे शरीर मे हर प्रकार का भोजन होता है वह सदा स्वादिष्ट बनता है। हमारे शरीर मे जो मेध बढ़ जाता है । हमारे शरीर मे जो कफ बढ़ जाता है। उसका नाश करता है। मिट्टी के बर्तनों के लिए सर्वाधिक उपयोग बताए गए हैं। इसीलिए मिट्टी के बर्तनों को सब से श्रेष्ठ भी कहा गया है। यदि हम पत्तो पर भोजन करते हैं।
केले के पत्तों का प्रयोग बर्तनों के रूप में
केले और सागवान के पत्तों का भारतीय संस्कृति में प्रयोग किया जाता है भोजन के पत्तरों के रूप में। दक्षिण भारत में आज भी केले के पत्तो का प्रयोग करते हैं। इससे हमारा भोजन और भी रुचिकर बन जाता है। विभिन्न प्रकार के पात्र जो हम उपयोग में लेते उनके गुण तो आते ही हैं साथ में वनस्पति और इस प्रकृति का वरदान भी हमें मिलता है। इसे तो पुण्य कारक बताते है।
इस भारतीय संस्कृति में ऐसा कहा गया है यदि हम केले के पत्तों पर कदली के पत्तों पर भोजन करते हैं वह हमारे सभी पापों का नाश करता है और हमें पुण्य प्रदान करता है। तो इस प्रकार से आयुर्वेद में विभिन्न विभिन्न के पात्रों का उपयोग बताया गया है कौन-कौन से लाभ है हमारे शरीर को पहुचते है। इन सभी का वर्णन आयुर्वेद में किया गया। यह जानकारी हमें विभिन्न गर्न्थो में मिलती हैं। आयुर्वेदिक की इसी प्रकार शुद्ध जानकारी जानने के जुड़े रहिए हमारे साथ।
धन्यवाद।
किस धातु के बर्तन में भोजन करना चाहिए
Reviewed by Tarun Baveja
on
August 06, 2021
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