१. ब्रह्मचर्य के लिए ब्रह्म वंदना

१--ब्रह्म-वन्दना य आत्मदा बलदा यस्य विश्व, उपासते, प्रशिषं यस्य देवाः। यस्यच्छायाऽमृतं यस्य मृत्युः, कस्मै देवाय हविषा विधेम । ( यजु० अ० २५ म० १३)

 जो आत्मज्ञान तथा शारीरिक बल का देने वाला है-जिस की सभी लोग उपासना करते हैं-विद्वान् पुरुष जिसे प्राप्त करते हैं जिसका आश्रय अमृत ( दीर्घ जीवन ) देने वाला है, और जिसके अधिकार में मृत्यु है हम उस दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हैं। किसी भी महत्व-पूर्ण कार्य के प्रारम्भ में उस की समाप्ति के लिये, वन्दना एक आवश्यक तथा शिष्टाचार से सम्बन्ध रखने वाला वैदिक नियम है। अतः हमने भी इस आर्य-धर्म सम्बन्धी ग्रन्थ को उपादेय बनाने की इच्छा से माङ्गलिक प्रार्थना की है। अस्तु । 

ऊपर के मन्त्र में ईश्वर-विनय तो हई है, पर हमारे विचार से इसमें 'ब्रह्मचर्य' की ओर गुप्त रूप से सङ्केत भी किया गया है । उसका आशय निम्नलिखित है:ब्रह्मचर्य से ही मनुज्य का मानसिक ज्ञान स्फुरित होता है। उसके शारीरिक बल का भी सर्वोत्कृष्ट साधन ब्रह्मचर्य ही हैं। सभी लोग ब्रह्मचर्य को श्रेष्ठ मान कर उसकी प्रतिष्ठा करना चाहते हैं । बुद्धिमानों को ब्रह्मचर्य अत्यन्त प्रिय होता भी है। ब्रह्मचर्य से हो मनुष्य दीर्घायु प्राप्त कर सकता है। ब्रह्मचर्य से ही मृत्यु दूर भगाई जा सकती है । इसलिये इस पवित्र वैदिक प्रार्थना में कहे गये 'ब्रह्मचर्य-रूप भगवान' को हृदय में धारण करना योग्य है !
१. ब्रह्मचर्य के लिए ब्रह्म वंदना १. ब्रह्मचर्य के लिए ब्रह्म वंदना Reviewed by Tarun Baveja on November 16, 2021 Rating: 5

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