हमारे यहां सनातन धर्म नाम की एक चीज है। सनातन मतलब, शाश्वत। समय से परे। धर्म का मतलब, हिंदूवादी धर्म नहीं। बल्कि, नियम होता है।
हम जीवन को चलाने वाले शाश्वत नियमों की बात कर रहे थे, और ये कि हम उनके साथ कैसे तालमेल बना सकते हैं। फिलहाल, चाहे आप स्कूल गए हो या नहीं गए हो। आप एक महान वैज्ञानिक हो या ना हो। फिर भी आप इस धरती के सभी भौतिक नियमों का पालन कर रहे हैं। हां या ना.. वरना आप यहां बैठ कर जिंदा नहीं रह सकते तो इसी तरह से अलग प्रकार के नियम है, जिनकी प्रकृतिक भौतिक नहीं है। जो आपके भीतर जीवन की प्रक्रिया को चलाते हैं तो उन्होंने उन चीजों को पहचाना और कहा, "इन नियमों से हमारा जीवन चलता है"।
लेकिन कुछ समय के बाद वो उत्साह से भरपूर इंसान, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पैदा हुए, इसमें अपनी चीजें जोड़ते चले गए। उस समय के हिसाब से या अपने स्वार्थों के हिसाब से। अलग-अलग तरीकों से ऐसा हुआ और लोगों ने कई चीजें जोड़ी।
लेकिन मूल रूप से सनातन धर्म बस यही है। उन्होंने इन चीजों को पहचाना, कि एक इंसान स्थिर नहीं रह सकता। चाहे, वो कुछ भी कर ले, इंसान स्थिर नहीं रह सकता; क्योंकि उसमें अपनी मौजूदा स्थिति से कुछ ज्यादा बनने की गहरी इच्छा है। आप इसे रोक नहीं सकते। आप चाहे, उसे जो फिलॉसफी सिखाइए। आप उसे रोक नहीं सकते। वो जो भी है, वो अपनी मौजूदा स्थिति से कुछ ज्यादा बनना चाहता है। अगर वो थोड़ा ज्यादा हो जाए तो वह कुछ ज्यादा खोजेगा और फिर कुछ और ज्यादा।
अगर आप इस पर ध्यान दें, तो हर इंसान अचेतन रूप से असीम विस्तार की इच्छा रखता है। तो हर इंसान अचेतन तरीक़े से, असीम प्रकृति या अनन्त संभावना की खोज कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो हर इंसान को जानबूझकर या अनजाने में सीमाओं से एलर्जी है।
जब आप उसके अस्तित्व को खतरे में डालते हैं, तो उसकी आत्म सुरक्षा की सहज भावना। उसके लिए आत्मरक्षा की दीवारें खड़ी कर देगी। किसी भारी खत्री के ना होने पर आत्मरक्षा की उन्हीं दीवारों को वो तुरंत ही आत्म कैद की दीवारों की तरह अनुभव करने लगता है। उन्होंने इसे पहचाना और कहा, हर इंसान असीम की चाहत रखता है तो सबसे पहली चीज जो आपको करनी चाहिए। जैसे ही एक बच्चे में ठीक-ठाक जागरूकता आ जाती है। सबसे पहली चीज जो आप उसके दिमाग में डालते हैं, वो ये है; कि उसका जीवन मुक्ति के बारे में है। बाकी सभी चीजें दूसरे नंबर पर है, क्योंकि आप वाकई सिर्फ एक इच्छा रखते हैं; असीम विस्तार की इच्छा।
आपके अंदर कुछ ऐसा है, जिसे सीमाएं पसंद नहीं है। तो आपको उस दिशा में बढ़ने के लिए क्या करना चाहिए। उन्होंने सरल नियम स्थापित किए। जिनका पालन करने से आप स्वाभाविक रूप से उसी दिशा में जाएंगे। आप इसे धर्म नहीं कह सकते। ठीक है.. क्योंकि ये ऐसी जगह है, जहां आपको आजादी दी गई है, जहां आप अपना खुद का ईश्वर बना सकते हैं।
हम जीवन को चलाने वाले शाश्वत नियमों की बात कर रहे थे, और ये कि हम उनके साथ कैसे तालमेल बना सकते हैं। फिलहाल, चाहे आप स्कूल गए हो या नहीं गए हो। आप एक महान वैज्ञानिक हो या ना हो। फिर भी आप इस धरती के सभी भौतिक नियमों का पालन कर रहे हैं। हां या ना.. वरना आप यहां बैठ कर जिंदा नहीं रह सकते तो इसी तरह से अलग प्रकार के नियम है, जिनकी प्रकृतिक भौतिक नहीं है। जो आपके भीतर जीवन की प्रक्रिया को चलाते हैं तो उन्होंने उन चीजों को पहचाना और कहा, "इन नियमों से हमारा जीवन चलता है"।
लेकिन कुछ समय के बाद वो उत्साह से भरपूर इंसान, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पैदा हुए, इसमें अपनी चीजें जोड़ते चले गए। उस समय के हिसाब से या अपने स्वार्थों के हिसाब से। अलग-अलग तरीकों से ऐसा हुआ और लोगों ने कई चीजें जोड़ी।
लेकिन मूल रूप से सनातन धर्म बस यही है। उन्होंने इन चीजों को पहचाना, कि एक इंसान स्थिर नहीं रह सकता। चाहे, वो कुछ भी कर ले, इंसान स्थिर नहीं रह सकता; क्योंकि उसमें अपनी मौजूदा स्थिति से कुछ ज्यादा बनने की गहरी इच्छा है। आप इसे रोक नहीं सकते। आप चाहे, उसे जो फिलॉसफी सिखाइए। आप उसे रोक नहीं सकते। वो जो भी है, वो अपनी मौजूदा स्थिति से कुछ ज्यादा बनना चाहता है। अगर वो थोड़ा ज्यादा हो जाए तो वह कुछ ज्यादा खोजेगा और फिर कुछ और ज्यादा।
अगर आप इस पर ध्यान दें, तो हर इंसान अचेतन रूप से असीम विस्तार की इच्छा रखता है। तो हर इंसान अचेतन तरीक़े से, असीम प्रकृति या अनन्त संभावना की खोज कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो हर इंसान को जानबूझकर या अनजाने में सीमाओं से एलर्जी है।
जब आप उसके अस्तित्व को खतरे में डालते हैं, तो उसकी आत्म सुरक्षा की सहज भावना। उसके लिए आत्मरक्षा की दीवारें खड़ी कर देगी। किसी भारी खत्री के ना होने पर आत्मरक्षा की उन्हीं दीवारों को वो तुरंत ही आत्म कैद की दीवारों की तरह अनुभव करने लगता है। उन्होंने इसे पहचाना और कहा, हर इंसान असीम की चाहत रखता है तो सबसे पहली चीज जो आपको करनी चाहिए। जैसे ही एक बच्चे में ठीक-ठाक जागरूकता आ जाती है। सबसे पहली चीज जो आप उसके दिमाग में डालते हैं, वो ये है; कि उसका जीवन मुक्ति के बारे में है। बाकी सभी चीजें दूसरे नंबर पर है, क्योंकि आप वाकई सिर्फ एक इच्छा रखते हैं; असीम विस्तार की इच्छा।
आपके अंदर कुछ ऐसा है, जिसे सीमाएं पसंद नहीं है। तो आपको उस दिशा में बढ़ने के लिए क्या करना चाहिए। उन्होंने सरल नियम स्थापित किए। जिनका पालन करने से आप स्वाभाविक रूप से उसी दिशा में जाएंगे। आप इसे धर्म नहीं कह सकते। ठीक है.. क्योंकि ये ऐसी जगह है, जहां आपको आजादी दी गई है, जहां आप अपना खुद का ईश्वर बना सकते हैं।
सनातन धर्म का वास्तविक अर्थ क्या है?
Reviewed by Tarun Baveja
on
July 06, 2020
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