अपने हित की कामना सभी के अंदर होती है। कोई भी काम करना हो सबसे पहले मनुष्य अपना भला देखता है ऐसी भावना सभी रखते हैं। सभी लोग अपना भला देखकर ही कार्य को शुरू करते हैं। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो यह सोचते हैं कि अपना भी अच्छा हो जाए और दूसरे का बुरा भी ना हो। यह बहुत अच्छी आदत है।
लेकिन इससे भी अच्छी आदत यह है कि अपना भी भला हो जाए और दूसरों का भी भला हो। हमें स्वार्थ छोड़कर दूसरों का भला जरूर करना चाहिए दूसरों का ध्यान जरूर रखना चाहिए।
यह बात हमें प्रभु श्री राम जी से सीखने को मिलती है। लंका कांड में भगवान राम अंतिम समय तक प्रयास करते हैं कि रावण के भीतर की बुराई मिट जाए जामवंत के प्रस्ताव के बाद अंगद को दूत बनकर लंका में भेजा जाता है अंगद जी राम जी की सेना के सबसे युवा सदस्य थे।
जब अंगद जी लंका जाने के लिए तैयार थे तो श्री राम जी ने उन्हें एक अद्भुत शिक्षा दी। श्री राम भगवान अंगद जी से कहते हैं कि मैं जानता हूं कि तुम बहुत चतुर हो परंतु रावण से जब बात करना तो पूरी सावधानी बरतना। वैसे ही बात करना। जिससे कि हमारा काम भी हो जाए और उसका कल्याण भी हो जाए।
यह कहने के लिए बहुत ताकत चाहिए। प्रभु राम यही सोच रहे थे कि युद्ध में अकारण ही बहुत से लोगों की हानि होगी। रावण की गलती की सजा पूरी सेना को मिलेगी। इसलिए श्री राम जी ने अंकित को समझाया कि एक बार संधि का प्रस्ताव रखें और रावण को कहें कि हमारी शरण में आ जाए।
अपना भला करें परंतु दूसरे का बुरा ना करें।
Reviewed by Tarun Baveja
on
March 04, 2020
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