Story of Wagh Bakri Tea: 100 साल पहले अंग्रेजों की नस्लीय भेदभाव का विरोध करने के लिए शुरू की गई ‘वाघ बकरी चाय’ की कहानी


Story of Wagh Bakri Tea: वाघ बकरी चाय, हमेशा रिश्ते बनाए, ये टैग लाइन तो आपने कई बार सुनी होगी जिसका विज्ञापन टीवी से लेकर अखबार में देखने को मिलता है। हाल ही में वाघ बकरी चाय (Wagh Bakri Tea) भारत में 100 साल लंबा सफर तय कर चुकी है, जो भारत के टॉप थ्री टी ब्रांड्स में से एक है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि वाघ बकरी चाय की शुरुआत कब और कैसे हुई थी, अगर नहीं, तो आज इस ब्रांड की स्थापना से जुड़ी दिलचस्प कहानी (Story of Wagh Bakri Tea) जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। तो आइए जानते हैं वाघ बकरी चाय ने भारत में अपना विशाल साम्राज्य कैसे खड़ा किया था।

कौन थे वाघ बकरी चाय के संस्थापक?
वाघ बकरी चाय की शुरुआत श्री नारणदास देसाई (SHRI NARANDAS DESAI) नामक व्यक्ति से जुड़ी हुई है, जो साल 1892 में दक्षिण अफ्रीका में रहते थे। वहाँ नारणदास देसाई के चाय बागान हुआ करते थे, जो 500 एकड़ की जमीन पर फैले हुए थे। इस दौरान दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेजों का शासन हुआ करता था, जो चाय पीने के काफी शौकीन थे।

ऐसे में नारणदास ने लगभग 20 साल तक दक्षिण अफ्रीका में चाय की खेती की और उसकी पत्तियों से विभिन्न प्रकार के स्वाद वाली चायपत्ती तैयार करने का काम किया था। लेकिन इस दौरान दक्षिण अफ्रीका में नारणदास देसाई अंग्रेज़ों की नस्लीय भेदभाव का शिकार हो गए थे, जिसकी वजह से उन्हें रातों रात अपना चाय का सारा कारोबार छोड़कर साल 1915 में भारत आने पर मजबूर होना पड़ा था।

लेकिन नारदास देसाई भारत अकेले नहीं आए, बल्कि वह अपने साथ कुछ कीमती सामान भी लेकर आए थे। उस कीमती सामान में एक प्रमाण पत्र भी मौजूद था, जो नारणदास को महात्मा गांधी की तरफ से दिया गया था। दरअसल उस प्रमाण पत्र में नारणदास को सबसे ईमानदार और अनुभवी चाय बागान के मालिक के रूप में सम्मानित किया गया था, जो नारणदास के लिए जीवन भर की पूंजी साबित होने वाला था।

1919 में शुरू किया था चायपत्ती का कारोबार (Story of Wagh Bakri Tea)
ऐसे में उसी प्रमाण पत्र के दम पर नारदास देसाई ने भारत में चाय का कारोबार शुरू करने का फैसला किया, जिसके लिए उन्होंने साल 1919 में गुजरात के अहमदाबाद शहर में ‘गुजरात चाय डिपो’ की स्थापना की। इस दौरान नारणदास देसाई ने अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए बेहतरीन चायपत्ती का निर्माण किया, हालांकि उन्हें शहर भर में अपनी चायपत्ती को पहचान दिलाने में 2 से 3 साल का वक्त लग गया था।

लेकिन जैसे-जैसे नारणदास देसाई द्वारा तैयार की गई चायपत्ती का स्वाद लोगों की जुबान पर लगा, उनके कारोबार ने तेज रफ्तार पकड़ना शुरू कर दिया था। इस तरह नारदास देसाई कुछ ही सालों में गुजरात के सबसे बड़े चाय निर्माता के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे, जिन्होंने साल 1934 में अपने चाय ब्रांड का नाम गुजरात चाय डिपो से बदल कर वाघ बकरी कर दिया था।

वाघ बकरी चाय (Wagh Bakri Tea) सिर्फ स्वाद की वजह से ही लोगों के बीच मशहूर नहीं थी, बल्कि यह चाय लोगों के बीच एकता, प्यार और सौहार्द का प्रतीक भी मानी जाती थी। वाघ बकरी चाय को उच्च वर्ग से लेकर मध्यम और निम्न वर्ग से ताल्लुक रखने वाला कोई भी व्यक्ति पी सकता था, क्योंकि इसकी कीमत सबके लिए सुविधाजनक होती थी।

इसके साथ ही वाघ बकरी चाय के साथ जुड़ी टैग लाइन भी काफी आकर्षक थी, जो लोगों को रिश्ते बनाने और उन्हें निभाने के लिए प्रोत्साहित करती थी। इस तरह एक चायपत्ती ब्रांड ने ‘वाघ बकरी चाय हमेशा रिश्ते बनाए’ नामक टैग लाइन के साथ लोगों को सामाजिक संदेश देने का काम किया था।

पैकेट में चायपत्ती बेचने वाली पहली कंपनी
वाघ बकरी चाय (Wagh Bakri Tea) के साथ लोगों का जुड़ाव इसलिए भी बढ़ता जा रहा था, क्योंकि यह भारत की पहली ऐसी कंपनी थी जो चायपत्ती को पैकेट में बेचा करती थी। उससे पहले भारत में जितनी भी चाय निर्माता कंपनिया थी, वह चायपत्ती को किलोग्राम के हिसाब से खुला बेचा करती थी।

लेकिन वाघ बकरी चाय ने भारत में पैकेट सिस्टम शुरू किया था, जिसके तहत कंपनी ने साल 1980 में गुजरात टी प्रोसेसर्स एंड पैकर्स लिमिटेड नाम से नई कंपनी लॉन्च की थी। इसके साथ ही कंपनी ने पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में एक कार्यालय की शुरुआत की थी, जो चायकी खरीद और जांच आदि कार्यों पर निगरानी रखता था।

40 देशों में फैला है वाघ बकरी चाय का व्यापार (Story of Wagh Bakri Tea)
इस तरह साल 1919 से गुजरात से शुरू हुई वाघ बकरी चाय का कारोबार धीरे-धीरे पूरे भारत में फैलता चला गया, जिसके तहत साल 2003 तक यह कंपनी गुजरात का सबसे बड़ा चाय का ब्रांड बन चुका था। हालांकि वाघ बकरी चाय सिर्फ भारत में ही मशहूर नहीं हुई, बल्कि इसका व्यापार यूरोप, अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया और सिंगापुर समेत अन्य 40 देशों तक भी फैल चुका

इस कंपनी के मैन्युफैक्चरिंग प्लांट में रोजाना 2 लाख किलोग्राम चायपत्ती का उत्पादन किया जाता है, जबकि यहाँ सालाना 4 करोड़ किलोग्राम चायपत्ती तैयार की जाती है। वाघ बकरी चाय का मैन हेडक्वार्टर अहमदाबाद में है, जिसके डायरेक्टर खुद चाय को टेस्ट करके उसकी जांच करते हैं।

विभिन्न फ्लेवर की चाय और टी कैफ की स्थापना
वाघ बकरी चायपत्ती को बनाने के लिए भारत के तकरीबन 15, 000 से ज्यादा अलग-अलग चाय बागानों से चाय की पत्तियाँ तोड़ी जाती है, जिनका इस्तेमाल करके गुड मॉर्निंग टी, वाघ बकरी-नवचेतन टी, वाघ बकरी-मिली टी और वाघ बकरी-प्रीमियम लीफ टी का निर्माण किया जाता है। इसके साथ ही यह कंपनी आइस टी, ग्रीन टी समेत ऑर्ग्रेनिक टी और दार्जिलिंग टी का भी उत्पादन करती है।

वर्तमान में वाघ बकरी चाय देश की तीसरी सबसे बड़ी चाय निर्माता कंपनी है, जिसका व्यापार भारत के 20 से ज्यादा राज्यों में फैला हुआ है। इतना ही नहीं वाघ बकरी ब्रांड ने देश के अलग-अलग शहरों में 30 से ज्यादा टी लाउन्ज और कैफे भी खोले हैं, जहाँ ग्राहकों को सबसे स्वादिष्ट चाय सर्व की जाती है।

इस तरह भारत में 100 साल पहले स्थापित किया गया ‘वाघ बकरी चाय’ (Wagh Bakri Tea) आज देश में जाना माना ब्रांड बन चुका है, जिसका सालाना टर्नओवर 1, 500 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। यह कंपनी देश के 5 हजार लोगों को रोज़गार प्रदान करती है, जिसकी चाय का एक घुंट आपकी सुबह को तरो ताजा कर देगा।
Story of Wagh Bakri Tea: 100 साल पहले अंग्रेजों की नस्लीय भेदभाव का विरोध करने के लिए शुरू की गई ‘वाघ बकरी चाय’ की कहानी Story of Wagh Bakri Tea: 100 साल पहले अंग्रेजों की नस्लीय भेदभाव का विरोध करने के लिए शुरू की गई ‘वाघ बकरी चाय’ की कहानी Reviewed by Rashmi Rajput on April 14, 2022 Rating: 5

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